अर्पण का महत्त्व !

यह उस समय की बात है जब श्री टेंबेस्‍वामीजी नृसिंहवाडी में थे । गांव में रामदास नाम का एक दर्जी रहता था । रामदास बहुत अच्‍छा कारीगर था, परंतु कोई भी उसके यहां कपडे सिलवाने के लिए नहीं आता था । कई बार ऐसे भी होता था कि कोई ग्राहक उसके दुकान की सीढी तक आता था और वहीं से वापस लौट जाता था । Read more »

चराचर में भगवान का अस्‍तित्‍व !

संत नामदेव महाराजजी गांव-गांव जाकर प्रवचन करते थे । एक दिन महाराज अपने शिष्‍यों को ज्ञान-भक्‍ति का प्रवचन दे रहे थे । उस समय श्रोताओं में बैठे एक शिष्‍य ने पूछा, ‘‘गुरुदेव, आप कहते हैं कि ईश्‍वर सृष्‍टि के कण कण में ईश्‍वर का वास होता है; परंतु वह हमें कभी दिखाई क्‍यों नहीं देते?’, ‘हम कैसे मान लें कि ईश्‍वर सचमुच हैं’ और यदि हैं, तो ‘हम उन्‍हें कैसे प्राप्‍त कर सकते हैं ? Read more »

सत्‍य बोलने का महत्त्व !

एक दिन एक चोर संत नामदेव महाराज के पास गया और उसने कहा, ‘महाराज, मुझे चोरी करने की बहुत बुरी आदत है और इस चोरी करने की आदत से मैं मुक्‍त होना चाहता हूं । इसके लिए मैं क्‍या करूं कृपया आप मेरा मार्गदर्शन कीजिए ।’ नामदेव महाराज ने कहा, ‘तुम किसी भी परिस्‍थिति में सदैव सत्‍य ही बोलना ।’ Read more »

अन्‍तर्मन से ईश्‍वर से जुडे रहने का आनंद !

एक गांव में एक निर्धन व्‍यक्‍ति रहता था । वह अपनी निर्धनता से ग्रस्‍त होकर बहुत दु:खी रहता था । उसने संत कबीरदासजी का बहुत नाम सुना था । उस व्‍यक्‍ति को लगा कि, संत कबीरजी के मार्गदर्शन से उसके दु:ख दूर हो जाएंगे । वह अपना दु:ख उन्‍हें बताने के लिए उनके पास गया । Read more »

गंगास्नान से पावन होने के लिए तीर्थयात्रियों में खरा भाव आवश्यक !

काशी में एक बडे तपस्वी शान्ताश्रम स्वामी का ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज से निम्नांकित सम्भाषण प्रस्तुत कथा से हम देखेंगे | Read more »

संत सखू

संत सखू का ईश्वर के प्रति जो अपार भक्तिभाव था और उनसे मिलने की जो तीव्र लगन थी यह देखकर स्वयं ईश्वर ही उससे मिलने आए । उसके मुख में सदैव श्रीविठ्ठल का ही नाम रहता था । Read more »

सन्त ज्ञानेश्वर आैर चांगदेव महाराज

चांगदेव महाराज सिद्धि के बलपर १४०० वर्ष जीए थे । चांगदेव को उनके सिद्धि का गर्व था । यह गर्व सन्त ज्ञानेश्वर महाराजजी ने कैंसे दूर किया, इस कथा से देखेंगे । Read more »

समर्थ रामदासस्वामी की क्षात्रवृत्ति दर्शानेवाली कथा

संत ईश्वर के केवल तारक रूप की नहीं, मारक रूप की भी साधना करते हैं । अत्याचार का दयालु संत भी प्रतिकार करते हैं, मूकदर्शक नहीं होते । यह बोध प्रस्तुत कथा से देखेंगे । Read more »

गुरु का कार्य है शिष्य को उसका वास्तविक स्वरूप दिखाना !

गुरु की कृपा होनेपर किसी का भय नहीं रहता । आप कौन हैं और आपका स्वरूप क्या है, यह सर्व आपको गुरु दिखाएंगे । यह बोध हमे प्रस्तुत कथा से मिलेगा । Read more »