अन्‍तर्मन से ईश्‍वर से जुडे रहने का आनंद !

बालमित्रो, यह कथा संत कबीरदासजी की है । संत कबीरदासजी एक कवि भी थे । वह अंतर्मन से सदैव ईश्‍वर से जुडे रहते थे और आनंद में रहते थे । एक गांव में एक निर्धन व्‍यक्‍ति रहता था । वह अपनी निर्धनता से ग्रस्‍त होकर बहुत दु:खी रहता था । वह सदैव दुःख को दूर करने की चिंता में डूबा रहता था । उसने संत कबीरदासजी का बहुत नाम सुना था । संत कबीरदासजी एक महान संत थे तथा उन्‍होंने अपने मार्गदर्शन से अनेक व्‍यक्‍तियों के दु:खों को दूर किया था । उस व्‍यक्‍ति को लगा कि, संत कबीरजी के मार्गदर्शन से उसके भी दु:ख दूर हो जाएंगे । वह अपना दु:ख उन्‍हें बताने के लिए उनके पास गया । वहां जाकर उस व्‍यक्‍ति ने देखा कि, संत कबीरदासजी का घर तथा उनका रहन सहन अत्‍यंत साधारण था । यह देखकर वह व्‍यक्‍ति चकित रह गया । उसे लगा कि इतनी साधारण स्‍थिति में भी संत कबीरदासजी आनंद में कैसे रहते हैं । जब संत कबीरदासजी उसके सामने आए, तब कबीरदासजी को वंदन किया और नम्रता से उसने कहा कि, ‘‘महाराजजी मैं अपनी गरीबी और निर्धनता से बहुत दुःखी हूं, कृपया मेरे दु:खों को दूर करने के लिए आप मेरा मार्गदर्शन करें ।

संत कबीरदासजी ने उस व्‍यक्‍तिको अपने साथ आने के लिए कहा । उस व्‍यक्‍ति को यह समझ नहीं आ रहा था कि मैं तो यहां मार्गदर्शन लेने आया हूं । परंतु कबीरदासजी मुझे घुमाने क्‍यों लेकर जा रहे हैं । फिर भी वह उनसे कुछ नहीं बोला । वह चुपचाप कबीरदासजी के पीछे चलता रहा । घूमते-घूमते संत कबीरदासजी एक कुएं के निकट जाकर रुके । उस समय पानी के नल नहीं होते थे । लोगों को कुएं अथवा नदी से पानी भरना पडता था । सडकें भी ऊबड खाबड, गड्ढोंवाली अथवा पथरीली होती थीं । उस कुएंपर कुछ महिलाएं कपडे धो रही थीं, तो कुछ महिलाएं मिट्टी के छोटे-छोटे घडों को पानी से भर रही थीं । घडे पानी से भरने के बाद उनमें से कुछ महिलाओं ने अपने सिर पर एक के ऊपर एक पानी से भरे तीन घडे रखे तथा घर की ओर निकल पडीं । मार्ग में वे आपस में बातें भी कर रही थीं । कबीरजी ने उस व्‍यक्‍ति को यह दृश्‍य दिखाया और बोले, ‘‘सिर पर पानी से भरे तीन घडे होते हुए भी वे महिलायें कैसे बातें करती हुई जा रही हैं । उन्‍हें इस बात का भय नहीं है कि घडे नीचे गिरकर फूट जाएंगे । चलो, हम उनसे इसका कारण पूछते हैं ।’’

संत कबीरदासजी उन महिलाओं के पास पहुंचे और उन्‍होंने उनसे पूछा, ‘‘बहनो, तुम सिर पर घडे रखकर इस प्रकार हाथ छोडकर बातें करते हुए जा रही हो, तुम्‍हें सिर से घडे गिरकर फूट जाने का डर नहीं लगता क्‍या ? इसपर एक स्‍त्री ने हंसते हुए कहा, ‘‘घडा कैसे गिरेगा ? हम बातें तो कर रही हैं, परंतु हमारा संपूर्ण ध्‍यान तो उन घडों पर ही बना रहता है ।’’ यह कहकर सारी महिलाएं आगे चली गईं ।

यह सुनकर वह व्‍यक्‍ति समझ गया कि कबीरदासजी उससे क्‍या कहना चाहते हैं । बाह्यरूप से हम कुछ भी कर रहे हों, परंतु अंतर्मन से हमें ईश्‍वर से जुडे रहना चाहिए । जिस प्रकार वे महिलाएं बातें तो कर रही थीं; किंतु उनका पूरा ध्‍यान उनके सिर पर रखे घडों की ओर था । निरंतर ईश्‍वर का नाम लेने से हमारा प्रत्‍येक कृत्‍य ईश्‍वर की इच्‍छा के अनुसार हो रहा है, ऐसा विचार मन में रहना चाहिए । हमारा सारा दु:ख दूर होकर हमें शांति तथा संतुष्‍टि मिलेगी । वह यह भी समझ गया कि इतनी प्रतिकूल परिस्‍थिति में भी संत कबीर आनंद में कैसे रहते हैं । जीवन की सच्‍चाई का ज्ञान पाकर उसे सही राह समझ में आ गई और उस व्‍यक्‍ति के मुखपर प्रसन्‍नता आ गई । उस व्‍यक्‍ति का आनंदी मुख देखकर कबीरदासजी भी संतुष्‍ट हो गए ।

बच्‍चो, हम बाह्य रूप से कोई भी काम कर रहे हों, तब भी हम अंतर्मन से निरंतर भगवान का चिंतन अर्थात नामस्‍मरण ही करते रहें । निरंतर नामजप करने से हमारा प्रत्‍येक कृत्‍य भगवान की इच्‍छा के अनुसार होता है तथा हमारे मन को शांति एवं संतुष्‍टि मिलती है ।

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