समर्थ रामदासस्वामी की क्षात्रवृत्ति दर्शानेवाली कथा

१. महाराष्ट्र में अत्याचारी मुगल शासन के अधिकारियोंद्वारा धर्माचरणी हिंदुओं की घोर प्रताडना

समर्थ रामदासस्वामी के शिष्य धर्मप्रचार के लिए सर्वत्र भ्रमण करते थे । इसी काल में शिवाजी महाराज का उदय हो रहा था । महाराष्ट्र में स्थान-स्थानपर अत्याचारी मुगल अधिकारी उपद्रव कर रहे थे । सातारा क्षेत्र वीजापुर के आदिलशाह के नियंत्रण में था । उसका एक मुगल थानेदार संगम माहुली में रहता था । यह थानेदार अत्यंत अत्याचारी था । वह हिंदुओं को प्रताडित करता था । वह सदैव भोलेभाले ब्राह्मण, गोसाई, बैरागी, संन्यासियों को अत्यंत पीडित करता था । उसने ब्राह्मणों की स्नान-संध्या, होम-हवन, यज्ञ-याग बंद करवा दिए थे । पुराण-वाचन तथा कीर्तन बंद करवा दिए थे ।

२. मुगल थानेदारद्वारा श्रीसमर्थ के शिष्य उद्धवस्वामी तथा उनके साथ के लोगों को मारपीटकर अंधेरी कोठरी में डाला जाना

उसी समय श्री समर्थ के शिष्य उद्धवस्वामीजी ने माहुली में बसेरा किया । उन्होंने अपनी मंडलीसहित स्नान, संध्या, पूजा प्रारम्भ की । कृष्णा नदी के घाटपर प्रवचन प्रारम्भ किया । थानेदार को इसकी सूचना मिलते ही, उसने उद्धवस्वीमी को पकड कर मारा-पीटा । उसने स्वामीजी तथा उनके साथ के चार लोगों को बंदी बनाकर अंधेरी कोठरी में डाल दिया । सभी लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे । समर्थ रामदास स्वामीजी का एक शिष्य अवसर मिलते ही वहांसे भाग गया ।

३. शिष्यपर हुए अन्याय से क्रुद्ध समर्थ रामदासस्वामीद्वारा अत्याचारी थानेदार को सबके समक्ष अधमरा होनेतक मारा जाना

उस समय श्री समर्थ चाफल गांव में थे । शिष्य भागता हुआ दूसरे दिन सबेरे चाफल पहुंचा । उसने घटना का समाचार श्री समर्थ महाराज को सुनाया । समर्थ क्रोध से लाल हो गए । उनकी आंखें आग उगलने लगीं । उन्होंने कल्याणस्वामी से बेंत मंगवाई तथा आसन से उठकर चल पडे । उन्हें कौन रोकता ?

समर्थ बिना खाए-पिए चलते जा रहे थे । सूर्यास्त से एक घंटापूर्व वे माहुली पहुंचकर सीधे थानेदार के घर में घुसे । उस समय थानेदार बैठकर हुक्का पी रहा था । उन्होंने थानेदार की गरदन पकडकर उसे खींचा तथा हाथ की छडी से अधमरा होनेतक पीटा । समर्थ उसे खींचकर मारते हुए मार्गपर ले आए । थानेदार की चीखें वातावरण में गूंज रही थीं । थानेदार के सेवक मुंह में उंगलिया दबाए खडे थे । समर्थ स्वामीजी का उग्र नरसिंह रूप देखकर सभी भयभीत थे । थानेदार को छुडाने का सामर्थ्य किसी में नहीं था ।

४. श्रीसमर्थ महाराजजी से प्रभावित थानेदारद्वारा उनके चरण पकडकर क्षमा मांगना तथा कुरानपर हाथ रखकर, भविष्य में किसी को भी प्रताडित नहीं करने की अथवा अन्याय से किसी का धर्मपरिवर्तन नहीं करने की शपथ लेना ।

थानेदार के शरीर से रक्त बह रहा था । वह दया की भीख मांगते हुए समर्थ महाराज के चरणोंपर गिर पडा । श्री समर्थ महाराज ने गर्जना की कि अंधेरी कोठरी के बंदियों को प्रथम बाहर निकाल । थानेदार ने अपने नौकरों को आदेश दिया । अंधेरी कोठरी खोली गई । उद्धवस्वामी एवं उनकी मंडली समर्थ के चरणों पर गिर पडी । थानेदार श्रीसमर्थ महाराजजी से अत्यंत प्रभावित हुआ । उसने समर्थ महाराजजी के चरण पकडकर क्षमा मांगी तथा कुरानपर हाथ रखकर शपथ ली कि भविष्य में किसी को प्रताडित नहीं करेगा । भजन-कीर्तन तथा पुराण-वाचन नहीं रोकेगा तथा अन्यायकर किसी का धर्मपरिवर्तन नहीं करवाएगा ।

५. दयालु समर्थ महाराजजी्द्वारा थानेदार को क्षमाकर उसके घावोंपर उपचार किया जाना

इसके पश्चात, दयालु अन्तःकरण के श्रीसमर्थ रामदासस्वामी ने उस थानेदार को क्षमा करने के साथ-साथ उसके घावोंपर वनस्पति का लेप लगाकर उपचार भी किया । श्री समर्थ का दिनभर उपवास है, यह ज्ञात होते ही, गांव के लोगों ने समर्थ एवं उद्धवस्वामी तथा अन्य सभी लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की ।

६. सभी के साथ समतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए, इस विषयपर समर्थ महाराज का प्रवचन करना

उस रात्रि श्री समर्थ महाराज ने माहुली के घाटपर, विविध दृष्टांत तथा उदाहरण के साथ सुश्राव्य प्रवचन किया कि सर्व प्राणी ईश्वर की संतान हैं तथा सबके साथ समतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए । यह प्रवचन सुनकर माहुली की जनता तृप्त हो गई ।

– श्री. श्रीपाद मोकाशी (संदर्भ : मासिक धार्मिक, मार्च १९८५)

मित्रो, इस उदाहरण से ज्ञात होता है कि संत ईश्वर के केवल तारक रूप की नहीं, मारक रूप की भी साधना करते हैं । अत्याचार का दयालु संत भी प्रतिकार करते हैं, मूकदर्शक नहीं होते । इससे बोध लेकर हमें भी, जागृत होकर वैध मार्गसे, अत्याचारका प्रतिकार करना चाहिए । इस कार्य में सहायता मिलने हेतु देवता के तारक तथा मारक दोनों रूपों की उपासना करनी आवश्यक होती है । कालानुसार वर्तमान में, क्षात्रधर्म साधना का अधिक महत्व है ।

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