होलीकी शास्त्रानुसार रचना एवं होली मनानेकी उचित पद्धति

सारणी

१. त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदु धर्मका एक अविभाज्य अंग
२. होलीके पर्वपर अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका कारण
३. होली मनानेका कारण
४. भविष्यपुराणकी कथा
५. होलीका महत्त्व
६. शास्त्रानुसार होली मनानेकी पद्धति
७. होलीकी रचना की पद्धति
८. होलिका-पूजन एवं प्रदीपन हेतु आवश्यक सामग्री
९. भावपूर्ण रीतिसे होलीका पूजन करनेसे सूक्ष्म स्तरपर क्या परिणाम होता है ?
१०. होली प्रज्वलित करते समय होलीमें कैसे स्पंदन अनुभव होते हैं ।
११. पूजाविधिके उपरांत होली प्रज्वलित करनेसे होनेवाले परिणाम
१२. होलीमें अर्पण करनेके लिए मीठी रोटी बनानेका शास्त्रीय कारण


१. त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदु धर्मका एक अविभाज्य अंग

         त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत हिंदु धर्मका एक अविभाज्य अंग है । इनको मनानेके पीछे कुछ विशेष नैसर्गिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण होते हैं तथा इन्हें उचित ढंगसे मनानेसे समाजके प्रत्येक व्यक्तिको अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवनमें अनेक लाभ होते हैं । इससे पूरे समाजकी आध्यात्मिक उन्नति होती है । इसीलिए त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत मनानेका शास्त्राधार समझ लेना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।

         होली भी संक्रांतिके समान देवी हैं । षड्विकारोंपर विजय प्राप्त करनेकी क्षमता होलिका देवीमें है । विकारोंपर विजय प्राप्त करनेकी क्षमता प्राप्त होनेके लिए होलिका देवीसे प्रार्थना की जाती है । इसलिए होलीको उत्सवके रूपमें मनाते हैं ।

२. होलीके पर्वपर अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका कारण

         होली यह अग्निदेवताकी उपासनाका ही एक अंग है । अग्निदेवताकी उपासनासे व्यक्तिमें तेजतत्त्वकी मात्रा बढनेमें सहायता मिलती है । होलीके दिन अग्निदेवताका तत्त्व २ प्रतिशत कार्यरत रहता है । इस दिन अग्निदेवताकी पूजा करनेसे व्यक्तिको तेजतत्त्वका लाभ होता है । इससे व्यक्तिमेंसे रज-तमकी मात्रा घटती है । होलीके दिन किए जानेवाले यज्ञोंके कारण प्रकृति मानवके लिए अनुकूल हो जाती  है । इससे समयपर एवं अच्छी वर्षा होनेके कारण  सृष्टिसंपन्न बनती है । इसीलिए होलीके दिन अग्निदेवताकी पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । घरोंमें पूजा की जाती है, जो कि सुबहके समय करते हैं । सार्वजनिक रूपसे मनाई जानेवाली होली रातमें मनाई जाती है ।

३. होली मनानेका कारण

         पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वोंकी सहायतासे देवताके तत्त्वको पृथ्वीपर प्रकट करनेके लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वीपर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समयके प्रथम त्रेतायुगमें पंचतत्त्वोंमें विष्णुतत्त्व प्रकट होनेका समय आया । तब परमेश्वरद्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियोंको स्वप्नदृष्टांतमें यज्ञके बारेमें ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञकी सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनिके मार्गदर्शनानुसार यज्ञका आरंभ हुआ । मंत्रघोषके साथ सबने विष्णुतत्त्वका आवाहन किया । यज्ञकी ज्वालाओंके साथ यज्ञकुंडमें विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वीपर विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंको कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्टका कारण समझमें नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूपसे प्रकट हुए । ऋषि-मुनियोंके साथ वहां उपस्थित सभी भक्तोंको श्रीविष्णुजीके दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुगके प्रथम यज्ञके स्मरणमें होली मनाई जाती है । होलीके संदर्भमें शास्त्रों एवं पुराणोंमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।

४. भविष्यपुराणकी कथा

         भविष्यपुराणमें एक कथा है । प्राचीन कालमें ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी एक गांवमें घुसकर बालकोंको कष्ट देती थी । वह रोग एवं व्याधि निर्माण करती थी । उसे गांवसे निकालने हेतु लोगोंने बहुत प्रयत्न किए; परंतु वह जाती ही नहीं थी । अंतमें लोगोंने सर्वत्र अग्नि जलाकर उसे डराकर भगा दिया । वह भयभीत होकर गांवसे भाग गई । इस प्रकार अनेक कथाओंके अनुसार विभिन्न कारणोंसे इस उत्सवको देश-विदेशमें विविध प्रकारसे मनाया जाता है । प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमासे पंचमी तक पांच-छः दिनोंमें, कहीं तो दो दिन, तो कहीं पांचों दिनतक यह त्यौहार मनाया जाता है ।

५. होलीका महत्त्व

        होलीका संबंध मनुष्यके व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवनसे है, साथ ही साथ नैसर्गिक, मानसिक तथा आध्यााqत्मक कारणोंसे भी है । यह बुराई पर अच्छाईकी विजयका प्रतीक है । दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारोंका नाश कर, सद्प्रवृत्तिका मार्ग दिखानेवाला यह उत्सव है। अनिष्ट शक्तियोंको नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करनेका यह दिन है । आध्यात्मिक साधनामें अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करनेका यह अवसर है । वसंत ऋतुके आगमन हेतु मनाया जानेवाला यह उत्सव है । अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका यह त्यौहार है ।

६. शास्त्रानुसार होली मनानेकी पद्धति

         कई स्थानोंपर होलीका उत्सव मनानेकी सिद्धता महीने भर पहलेसे ही आरंभ हो जाती है । इसमें बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं । पूर्णमासीको होलीकी पूजासे पूर्व उन लकडियोंकी विशिष्ट पद्धतिसे रचना की जाती है । तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करनेके उपरांत उसमें अग्नि प्रदीप्त (प्रज्वलित) की जाती है । होली प्रदीपनकी पद्धति समझनेके लिए हम इसे दो भागोंमें विभाजित करते हैं, १. होलीकी रचना तथा २. होलीका पूजन एवं प्रदीपन

७. होलीकी रचना की पद्धति

७ अ. होलीकी रचनाके लिए आवश्यक सामग्री

        अरंड अर्थात कैस्टरका पेड, माड अर्थात कोकोनट ट्री, अथवा सुपारीके पेडका तना अथवा गन्ना ।  ध्यान रहें, गन्ना पूरा हो । उसके टुकडे न करें । मात्र पेडका तना पांच अथवा छः फुट लंबाईका हो । गायके गोबरके उपले अर्थात ड्राइड काऊ डंग, अन्य लकडियां ।

७ आ. होलीके रचनाकी प्रत्यक्ष कृति

        सामान्यत: ग्रामदेवताके देवालयके सामने होली जलाएं । यदि संभव न हो, तो सुविधाजनक स्थान चुनें । जिस स्थानपर होली जलानी हो, उस स्थानपर सूर्यास्तके पूर्व झाडू लगाकर स्वच्छ करें । बादमें उस स्थानपर गोबर मिश्रित पानी छिडवे । अरंडीका पेड, माड अथवा सुपारीके पेडका तना अथवा गन्ना उपलब्धताके अनुसार खडा करें । उसके उपरांत चारों ओर उपलों एवं लकड़ियोंकी शंकुसमान रचना करें । उस स्थानपर रंगोली बनाएं । यह रही होलीकी शास्त्रके अनुसार रचना करनेकी उचित पद्धति ।

७ इ. होलीकी रचना करते समय उसका आकार शंकुसमान होनेका शास्त्राधार

१. होलीका शंकुसमान आकार इच्छाशक्तिका प्रतीक है ।

२. होलीकी रचनामें शंकुसमान आकारमें घनीभूत होनेवाला अग्निस्वरूपी तेजतत्त्व भूमंडलपर आच्छादित होता है । इससे भूमिको लाभ मिलनेमें सहायता होती है । साथ ही पातालसे भूगर्भकी दिशामें प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंसे भूमिकी रक्षा होती है ।

३. होलीकी इस रचनामें घनीभूत तेजके अधिष्ठानके कारण भूमंडलमें विद्यमान स्थानदेवता, वास्तुदेवता एवं ग्रामदेवता जैसे क्षुद्रदेवताओंके तत्त्व जागृत होते हैं । इससे भूमंडलमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंके उच्चाटनका कार्य सहजतासे साध्य होता है ।

४. शंकुके आकारमें घनीभूत अग्निरूपी तेजके संपर्कमें आनेवाले व्यक्तिकी मनःशक्ति जागृत होनेमें सहायता होती है । इससे उनकी कनिष्ठ स्वरूपकी मनोकामना पूर्ण होती है एवं व्यक्तिको इच्छित फलप्राप्ति होती है ।

७ र्इ. होलीकी एक पुरुष जितनी ऊंचाई होना क्यों आवश्यक है ?

१. होलीके कारण साधारणतः मध्य वायुमंडल एवं भूमिके पृष्ठभागके निकटका वायुमंडल शुद्ध होनेकी मात्रा अधिक होती है ।

२. होलीकी ऊंचाई एक पुरुष जितनी बनानेसे होलीद्वारा प्रक्षेपित तेजकी तरंगोंके कारण ऊध्र्वदिशाका वायुमंडल शुद्ध बनता है । तत्पश्चात् यह ऊर्जा जडत्व धारण करती है एवं मध्य वायुमंडल तथा भूमिके पृष्ठभागके निकटके वायुमंडलमें घनीभूत होने लगती है । इसी कारणसे होलीकी ऊंचाई साधारणतः पांच-छः फुट होनी चाहिए । इससे शंकुस्वरूप रिक्तिमें तेजकी तरंगें घनीभूत होती हैं एवं मध्यमंडलमें उससे आवश्यक ऊर्जा निर्मित होती है ।

७ उ. होलीके मध्यमें खडा करनेके लिए विशिष्ट पेडोंका ही उपयोग क्यों किया जाता है ?

होलीकी रचना करते समय मध्यस्थानपर गन्ना, अरंड तथा सुपारीके पेडका तना खडा करनेका आधारभूत शास्त्र

गन्ना : गन्ना भी प्रवाही रजोगुणी तरंगोंका प्रक्षेपण करनेमें अग्रसर होता है । इसकी समिपताके कारण होलीमें विद्यमान शक्तिरूपी तेजतरंगें प्रक्षेपित होनेमें सहायता मिलती है । गन्नेका तना होलीमें घनीभूत हुए अग्निरूपी तेजतत्त्वको प्रवाही बनाता है एवं वायुमंडलमें इस तत्त्वका फुवारेसमान प्रक्षेपण करता है । यह रजोगुणयुक्त तरंगोंका फुवारा परिसरमें विद्यमान रज-तमात्मक तरंगोंको नष्ट करता है । इस कारण वायुमंडलकी शुद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।

अरंड : अरंडसे निकलनेवाले धुएंके कारण अनिष्ट शक्तियोंद्वारा वातावरणमें प्रक्षेपित की गई दुर्गंधयुक्त वायु नष्ट होती है ।

सुपारी : मूलतः रजोगुण धारण करना यह सुपारीकी विशेषता है । इस रजोगुणकी सहायतासे होलीमें विद्यमान तेजतत्त्वकी कार्य करनेकी क्षमतामें वृद्धि होती है ।

७ ऊ. होलीकी रचनामें गायके गोबरसे बने उपलोंके उपयोगका महत्त्व

         गायमें ३३ करोड देवताओंका वास होता है । इसका अर्थ है, ब्रह्मांडमें विद्यमान सभी देवताओंके तत्त्वतरंगोंको आकृष्ट करनेकी अत्यधिक क्षमता गायमें होती है । इसीलिए उसे गौमाता कहते हैं । यही कारण है कि गौमातासे प्राप्त सभी वस्तुएं भी उतनी ही सात्त्विक एवं पवित्र होती हैं । गोबरसे बनाए उपलोंमें से ५ प्रतिशत सात्त्विकताका प्रक्षेपण होता है, तो अन्य उपलोंसे प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विकताका प्रमाण केवल २ प्रतिशत ही रहता है । अन्य उपलोंमें अनिष्ट शक्तियोंकी शक्ति आकृष्ट होनेकी संभावना भी होती है । इससे व्यक्तिकी ओर कष्टदायक शक्ति प्रक्षेपित हो सकती है । कई स्थानोंपर लोग होलिका पूजन षोडशोपचारोंके साथ करते हैं । यदि यह संभव न हो, तो न्यूनतम पंचोपचार पूजन तो अवश्य करना चाहिए ।

८. होलिका-पूजन एवं प्रदीपन हेतु आवश्यक सामग्री

         पूजाकी थाली, हल्दी-कुमकुम, चंदन, फुल, तुलसीदल, अक्षत, अगरबत्ती घर, अगरबत्ती, फुलबाती, निरांजन, कर्पूर, कर्पूरार्ती, दियासलाई अर्थात मॅच बाक्स्, कलश, आचमनी, पंचपात्र, ताम्रपात्र, घंटा, समई, तेल एवं बाती, मीठी रोटीका नैवेद्य परोसी थाली, गुड डालकर बनाइ बिच्छूके आकारकी पुरी अग्निको समर्पित करनेके लिए.

१. सूर्यास्तके समय पूजनकर्ता शूचिर्भूत होकर होलिका पूजनके लिए सिद्ध हों ।

२. पूजक पूजास्थानपर रखे पीढेपर बैठें ।

३. उसके पश्चात आचमन करें ।

४. अब होलिका पूजनका संकल्प करें ।

‘काश्यप गोत्रे उत्पन्नः विनायक शर्मा अहं । मम सपरिवारस्य श्रीढुंढाराक्षसी प्रीतिद्वारा तत्कर्तृक सकल पीडा परिहारार्थं तथाच कुलाभिवृद्ध्यर्थंम् । श्रीहोलिका पूजनम् करिष्ये ।’

         अब चंदन एवं पुष्प चढाकार कलश, घंटी तथा दीपपूजन करें । तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण अर्थात पूजा साहित्यपर प्रोक्षण करें । अब कर्पूरकी सहायतासे होलिका प्रज्वलित करें । होलिकापर चंदन चढाएं । होलिकापर हल्दी चढाएं । कुमकुम चढाकर पूजन आरंभ करें ।

५. अब पुष्प चढाएं ।

६. उसके उपरांत अगरबत्ती दिखाएं ।

७. तदुपरांत दीप दिखाएं ।

८. होलिकाको मीठी रोटीका नैवेद्य अर्पित कर प्रदीप्त होलीमें निवेदित करे । दूध एवं घी एकत्रित कर उसका प्रोक्षण करे। होलिकाकी तीन परिक्रमा लगाएं । परिक्रमा पूर्ण होनेपर मुंहपर उलटे हाथ रखकर ऊंचे स्वरमें चिल्लाएं । गुड एवं आटेसे बने बिच्छू आदि कीटक मंत्रपूर्वक अग्निमें समर्पित करे । सब मिलकर अग्निके भयसे रक्षा होने हेतु प्रार्थना करें ।

९. कई स्थानोंपर होलीके शांत होनेसे पूर्व इकट्ठे हुए लोगोंमें नारियल, चकोतरा (जिसे कुछ क्षेत्रोमें पपनस कहते हैं – नींबूकी जातिका खट्टा-मीठा फल) जैसे फल बांटे जाते हैं । कई स्थानोंपर सारी रात नृत्य-गायनमें व्यतीत की जाती है ।

९. भावपूर्ण रीतिसे होलीका पूजन करनेसे सूक्ष्म स्तरपर क्या परिणाम होता है ?

१. होली पूजनके समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंपर होनेवाले परिणाम ।

२. होलीपूजनके समय दोनोंकी ओर ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है । जिनका लाभ पूजा अच्छी प्रकारसे होनेके लिए होता है ।

३. मंत्रपठन करते समय दोनोंका ईश्वरसे सायुज्य होता है । इससे मंत्रपठन भावपूर्ण रीतिसे होनेके लिए ईश्वरीय शक्तिका प्रवाह उनकी ओर आकृष्ट होता है । इसके कारण पूजाविधिके लिए भी शक्ति प्राप्त होती है ।

४. होलीकी पूजा करते समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंके आज्ञाचक्रके स्थानपर एकाग्रता एवं सेवाभावका गोला निर्माण होता है ।

५. पुरोहितद्वारा बताएनुसार पूजक मंत्रोच्चार करता है । इस मंत्रोच्चारके कारण दोनोंके आज्ञाचक्रके स्थानपर मंत्रशक्तिका कार्यरत वलय निर्माण होता है ।

६. पूजा करते समय दोनोंमें भावका वलय निर्माण होता है ।

७. सात्त्विक पुरोहितमें प्रार्थना एवं गुरुकृपाका गोला निर्माण होता है । इस कारण वे सेवा कर पाते हैं एवं उन्हें सात्त्विकताका अधिक लाभ प्राप्त होता है ।

८. मंत्रपठन एवं होलीमें प्रयुक्त उचित प्रकारके वृक्षोंकी लकडियोंके कारण सात्त्विक पुरोहितमें शक्तिका वलय कार्यरत होता है एवं उससे वातावरणमें शक्तिका प्रवाह प्रक्षेपित होता है ।

९. दोनोंके देहकी शुद्धि होती है एवं उनके सर्व ओर ईश्वरीय शक्तिका सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।

१०. पूजामें निर्माण हुई शक्तिके कारण होलीके सर्व ओर भूमिके समांतर शक्तिका एवं चैतन्यका वलय निर्माण होता है  ।

१०. होली प्रज्वलित करते समय होलीमें कैसे स्पंदन अनुभव होते हैं ।

Holi

 

११. पूजाविधिके उपरांत होली प्रज्वलित करनेसे होनेवाले परिणाम

१. होली प्रज्वलित करनेके लिए पूजकद्वारा हाथमें लिए प्रदिप्त अर्थात जलाते हुए कर्पूरमें तेजतत्वका वलय निर्माण होता है । उससे चमकीले कणोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है ।

२. अग्निद्वारा शक्तिका वलाय निर्माण होता है तथा उससे शक्तिकी तरंगे होलीकी रचनाकी ओर प्रक्षेपित होती है ।

३. प्रदिप्त कर्पूरमें मंत्रशक्तिका वलाय भी निर्माण होता है तथा उसकेद्वारा मंत्रशक्तिकी तरंगें होलीकी ओर प्रक्षेपित होती है ।

४. मंत्रशक्तिकी बाहरी ओर चैतन्यका वलाय निर्माण होता है । उससे होलीकी रचनाकी ओर चैतन्यकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।

५. होली प्रदीपन करते समय अग्निमें विद्यमान शक्ति प्रवाहके रूपमें पूजकको प्राप्त होती है ।

६. पूजकके चारों ओर तेजतत्त्वका, शक्तिका एवं चैतन्यका सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।

७. होलीकी रचनामें सगुण शक्ति एवं सगुण चैतन्यके वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा शक्तिके तथा चैतन्यके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । कुछ मात्रामें शक्तिके वलयोंका भी वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । यह प्रक्षेपण आवश्यकताके अनुसार कभी तीव्र गतिसे, तो कभी धीमी गतिसे होता है ।

८. होलीमें अग्नि प्रदीप्त करते समय बीचमें रखे गन्नेकी ऊपरी नोंकमें ईश्वरीय शक्ति एवं चैतन्यके प्रवाह आकृष्ट होते हैं । इन प्रवाहोंद्वारा शक्ति एवं चैतन्यके कार्यरत वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा वातावरणमें शक्ति एवं चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।

९. इन कार्यरत वलयोंद्वारा चैतन्यका सर्पिलाकार प्रवाह होलीकी रचनाकी ओर आकृष्ट होता है । वातावरणमे शक्तिके समांतर वलय उध्र्व दिशामें प्रसारित होते हैं ।

१०.  शक्ति एवं चैतन्यके भूमिसे समांतर वलय अधो दिशामें प्रसारित होते हैं । शक्ति एवं चैतन्यका प्रक्षेपण उध्र्व तथा अधो दिशामें होनेसे सभी दिशाओंकी अनिष्ट शक्तियां दूर होती हैं । होलीसे तेजत्वात्मक मारक शक्तिके कणोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । इससे वातावरणमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं । इस शक्तिके कारण वहां उपस्थित  व्यक्तियोंपर आध्यत्मिक उपाय होते हैं ।

१२. होलीमें अर्पण करनेके लिए मीठी रोटी बनानेका शास्त्रीय कारण

       होलिका देवीको निवेदित करनेके लिए एवं होलीमें अर्पण करनेके लिए उबाली हुई चनेकी दाल एवं गुडका मिश्रण, जिसे महाराष्ट्रमें पुरण कहते हैं, यह भरकर मीठी रोटी बनाते हैं । इस मीठी रोटीका नैवेद्य होली प्रज्वलित करनेके उपरांत उसमें समर्पित किया जाता है । होलीमें अर्पण करनेके लिए नैवेद्य बनानेमें प्रयुक्त घटकोंमें तेजोमय तरंगोंको अतिशीघ्रतासे आकृष्ट, ग्रहण एवं प्रक्षेपित करनेकी क्षमता होती है । इन घटकोंद्वारा प्रक्षेपित सूक्ष्म वायुसे नैवेद्य निवेदित करनेवाले  व्यक्तिकी देहमें पंचप्राण जागृत होते हैं । उस नैवेद्यको प्रसादके रूपमें ग्रहण करनेसे  व्यक्तिमें तेजोमय तरंगोंका संक्रमण होता है तथा उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होनेमें सहायता मिलती है । सूर्यनाडी कार्यरत होनेसे  व्यक्तिको कार्य करनेके लिए बल प्राप्त होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

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