मकर संक्रांतिके लिए सात्त्विक वस्तुएं भेंट देना एवं तिलका महत्त्व

सारिणी


१. मकर संक्रांतिके लिए सात्त्विक वस्तुएं भेंट करनेसे आध्यात्मिक लाभ होता है

        इस अवसरपर दी जानेवाली भेंट सात्त्विक ( उदा. आध्यात्मिक ग्रंथ, सात्त्विक अगरबत्ती, कर्पूर इत्यादि ) होनी चाहिए । किंतु वर्तमानमें असात्त्विक वस्तुएं ( उदा. प्लास्टिकका डिब्बा, सौंदर्य प्रसाधन इत्यादि ) दी जाती हैं । सात्त्विक वस्तुओंसे जीवमें ज्ञानशक्ति (प्रज्ञाशक्ति) और भक्ति जागृत होती हैं, जबकि असात्त्विक वस्तुओंमें मायावी स्पंदनोंकी मात्रा अधिक होनेसे व्यक्तिकी आसक्ति बढती हैं । सात्त्विक वस्तुएं भेंट करते समय उद्देश्य शुद्ध और प्रेमभाव अधिक होनेके कारण निरपेक्षता आती हैं । इससे लेन-देन निर्मित नहीं होता । इसके विपरीत, असात्त्विक वस्तुएं भेंट करते समय अपेक्षा, आसक्तिकी मात्रा अधिक होनेके कारण लेन-देन निर्मित होता हैं ।’ – कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था ( माघ कृ. १२, कलियुग वर्ष ५११३ ११.१.२०१० )

 

२. मकर संक्रांतिके त्यौहारमें ‘मटकी’ आवश्यक है

        मटकियोंको हलदी-कुमकुमसे स्पर्शित उंगलियां लगाकर धागा बांधते हैं । मटकियोंके भीतर गाजर, बेर, गन्नेके टुकडे, मूंगफली, रुई, काले चने, तिलगुड, हलदी-कुमकुम आदि भरते हैं । रंगोली सजाकर पीढेपर पांच मटकियां रख पूजा करते हैं । तीन मटकियां सुहागिनोंको उपायन देते हैं, एक मटकी तुलसीको एवं एक अपने लिए रखते हैं ।’ एक सौभाग्यवती स्त्रीका मकर संक्रांतिके दिन दूसरी सौभाग्यवती स्त्रीको उपायन (भेंट) देकर उसकी गोद भरना अर्थात दूसरी स्त्रीमें विद्यमान देवी-तत्त्वका पूजन कर तन, मन और धनसे उसकी शरणमें जाना ।

 

३. मकर संक्रांतिपर तिलका उपयोग

संक्रांतिपर तिलका अनेक ढंगसे उपयोग करते हैं, उदा. तिलयुक्त जलसे स्नान कर तिलके लड्डू खाना एवं दूसरोंको देना, ब्राह्मणोंको तिलदान, शिवमंदिरमें तिलके तेलसे दीप जलाना, पितृश्राद्ध करना (इसमें तिलांजलि देते हैं) ।

 

४. मकर संक्रांतिके लिए तिलका महत्त्व

४.१ तिलके प्रयोगसे पापक्षालन

        ‘इस दिन तिलका तेल एवं उबटन शरीरपर लगाना, तिलमिश्रित जलसे स्नान, तिलमिश्रित जल पीना, तिलहोम करना, तिलदान करना, इन छहों पद्धतियोंसे तिलका उपयोग करनेवालोंके सर्व पाप नष्ट होते हैं ।’

४.२ तिलगुडका आयुर्वेदानुसार महत्त्व

सर्दीके दिनोंमें आनेवाली मकर संक्रांतिपर तिल खाना लाभप्रद होता है ।

४.३ तिलगुडका अध्यात्मानुसार महत्त्व

        तिलमें सत्त्वतरंगें ग्रहण करनेकी क्षमता अधिक होती है । इसलिए तिलगुडका सेवन करनेसे अंतःशुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायक होते हैं । तिलगुडके दानोंमें घर्षण होनेसे सात्त्विकताका आदान-प्रदान होता है । ‘श्राद्धमें तिलका उपयोग करनेसे असुर इत्यादि श्राद्धमें विघ्न नहीं डालते ।’

४.४ निषेध

        संक्रांतिके पर्वकालमें दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष एवं घास काटना तथा कामविषय सेवन करना, ये कृत्य पूर्णतः वर्जित हैं ।’

४.५ पतंग न उडाएं !

        वर्तमानमें राष्ट्र एवं धर्म संकटमें होते हुए मनोरंजन हेतु पतंग उडाना, ‘जब रोम जल रहा था, तब निरो बेला (फिडल) खेल रहा था’, इस स्थितिसमान है । पतंग उडानेके समयका उपयोग राष्ट्रके विकास हेतु करें, तो राष्ट्र शीघ्र प्रगतिके पथपर अग्रसर होगा और साधना एवं धर्मकार्य हेतु समयका सदुपयोग करनेसे अपने साथ समाजका भी कल्याण होगा ।

( संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत )

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