ब्रह्मदेव से संबंधित शक्ति – श्री सरस्वती एवं ब्रह्माणी

saraswati

१. ब्रह्माणी

ब्रह्माणी गायत्री

देव्यै ब्रह्माण्यै विद्महे । महाशक्त्यै च धीमहि । तन्नो देवी प्रचोेदयात् ॥

अर्थ : हम ब्रह्माणी देवी को जानते हैं । (उस) महाशक्ति का ध्यान करते हैं । वह देवी हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा दें ।

२. श्री सरस्वती

२ अ. व्युत्पत्ति एवं अर्थ

सरः जलम् अस्ति अस्याः इति सरस्वती । इसका अर्थ है सर अर्थात जल; जो जल की भांति सरणशील हैं, वे हैं सरस्वती । वाणी को सरणशील कहा गया है । इससे सरस्वती का अर्थ होता है वाणी की देवी ।

अर्थ

शब्दार्थ    :    गतिमती

भावार्थ    :    निष्क्रिय ब्रह्मा का सक्रिय रूप; इसलिए उसे ब्रह्मा-विष्णुु-महेश को गति देनेवाली शक्ति कहते हैं ।

कुछ अन्य नाम : वाक्, वाग्देवी, वागीश्‍वरी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि इत्यादि ।

२ आ. कार्य

विद्या एवं कला की देवता । उपनिषद् में सरस्वती की वाणी से एकरूपता मानी गई है । प्रज्ञावृद्धि तथा वाणी में मधुरता आए इस हेतु उससे प्रार्थना की है ।

२ इ. मूर्तिविज्ञान

स्थूलरूप से अर्थ भावार्थ
१. वर्ण : उज्ज्वल, शुभ्र ज्योतिर्मय ब्रह्मा, इसलिए वह ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश को पूजनीय हैं ।
२. चार हाथ चार दिशा, सर्वव्यापित्व ।
३. चार हाथों में वस्तुएं
अ.    पुस्तक (ग्रन्थ) / कमंडलु ज्ञानप्राप्ति का साधन सर्वज्ञानमय वेद
आ.    जपमाला एकाग्रता मातृकावर्णशक्ति (अक्षरों की शक्ति)
इ.    वीणा जीवनसंगीत सिद्धि एवं निर्वाण प्रदान करनेवाली
ई.    शुभ्र कमल  (पुंडरीक) सृष्टि
४. साडी का रंग : श्‍वेत पवित्रता
५. अलंकारविभूषित ऐश्‍वर्य
६. वाहन (टिप्पणी १) आत्मा (सर्व आत्माओं पर आरूढ हैं, अर्थात उनकी स्वामिनी हैं ।)

टिप्पणी १ – श्‍वेत हंस : कभी वे हंस पर बैठी हुई होती हैं, तो कभी हंस उनके पीछे होता है । बौद्ध तथा जैन परंपरा में उनका वाहन मयूर है ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ, शक्ति (भाग १)

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