हिन्दू धर्मशास्त्रकारों को बुद्धि ही नहीं थी ! – महामहोपाध्याय डॉ. काणे

आलोचना : ‘हिन्दू धर्मशास्त्रकारों को बुद्धि ही नहीं थी ! – महामहोपाध्याय डॉ. काणे

(डॉ. काणे संस्कृतविशारद तथा अंग्रेजी पर प्रभुत्व रखनेवाले आंग्लप्रणित समाजवादी प्रणाली की ओर झुके पंडित हैं। इसीलिए उन्हें धर्मनिरपेक्ष शासन में महत्त्व प्राप्त हुआ !)

खंडन :

ये आंग्लप्रणित पंडित धर्मशास्त्रकारों का अधिकार भी स्वयं ही लेते हैं। इन्हें यह अधिकार किसने दिया ? कितना उद्दंड अहंकार ! क्या ये तपस्वी, परसंयमी एवं समदृष्टिवाले धर्मशास्त्रकारों की चरणधूलि की बराबरी भी कर सकेंगे ?

धर्मशास्त्रकारों का सामाजिक कार्य कितना अपूर्व एवं अतुलनिय था ! उनकी दीर्घ दृष्टि सहस्त्रों वर्ष तक सहज पहुंचती थी। उनकेद्वारा बनाए विधि-निषेध का आचरण करने पर पूरा भरतखंड सहस्रों वर्ष शाश्वत रहा। उन्होंने हमें इतनी श्रेष्ठ समाजव्यवस्था दी; इसलिए हिन्दू समाज लाखों वर्ष एकात्म एवं एकरस रहा। अंग्रेजी जीवन एवं संस्कृति के कारण अंधे हुए डॉ. काणे इतना बेलगाम न लिखते, तो ही आश्चर्य होता !’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, दिसंबर २००७)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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