सनातन हिन्दू धर्म अन्य पंथों जैसा नहीं !

विचार : हिन्दू धर्म अन्य अनेक धर्मों समान एक धर्म है ।

खंडन : 

१. ‘इस्लाम रिलिजन (Religion), ‘ईसाई रिलिजन’, ऐसे जो कुछ हैं, उन धर्मों की (रिलिजन की) श्रेणी में वे हिन्दू धर्म को रखते हैं । `रिलिजन’ अर्थात `धर्म’ ऐसा अर्थ उन्होंने जानबूझकर किसी उद्देश्य से दिया है । वास्तव में हिन्दू धर्म न कभी ऐसा था, न ही कभी हो सकता है । पश्चिमी लोगों ने परम श्रेष्ठ अमूल्य हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने हेतु `रिलिजन’ का `धर्म’ ऐसा अनुवाद कर ऐसा प्रतिपादित किया कि हिन्दू धर्म इस्लाम तथा ईसाई धर्म जैसा ही है ।

२. हिन्दू धर्म अन्य अनेक धर्मों जैसा नहीं है । इसका कारण यह कि, हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म अनादि एवं शाश्वत है । वह वेदकाल से एवं ईश्वरनिर्मित है । इसके विपरीत अन्य धर्म १ सहस्र से २ सहस्र वर्ष पूर्व से एवं मानव निर्मित हैं; इसलिए उन्हें ‘धर्म’ नहीं कह सकते । वे पंथ हैं ।

३. जो लोगों को धारण करता है, वह धर्म । इसलिए धर्म सभी जडचेतन त्रिलोक को धारण करता है । हिन्दू धर्म ‘धर्म’ है । इसलिए हिन्दू धर्म की व्याख्या है ‘हीनानि गुणानि दूषयति इति हिंदु ।’ ‘हीन गुणों का नाश करनेवाला हिन्दू है । इसका अर्थ यह है कि हिन्दू एक मानसिकता है; इसलिए हिन्दू धर्म सर्वसमावेशक है । इसके विपरीत इस्लाम पंथी लोग पूरे विश्व में इस्लाम स्थापित करने की मंशा रखते हैं एवं उसके लिए जिहाद करते हैं । ईसाई पंंथी भी लोगों का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें अपने पंथ में लाते हैं । साथ ही ये पंथ अत्याचारी भी हैं । इसलिए वे हिन्दू धर्मसमान ‘धर्म’ नहीं हैं । हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं कहा गया है कि अन्य पंथियों को भय से अथवा पैसे देकर अपने धर्म में सम्मिलित करें ।

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, १७.३.२०११)

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