धर्म का फल अर्थ एवं अर्थ का फल काम है !

आलोचना : ‘धर्म का फल अर्थ, अर्थ का फल काम एवं काम इस पुरुषार्थ का फल इंद्रियतृप्ति है ! – आधुनिक विद्वान

खंडन : 

चार पुरुषार्थों का कार्य : धर्म का मुख्य फल मोक्ष है एवं अर्थ गौण फल है तथा वह उपफलसमान (by-product) है। अर्थ का (संपत्ति का) मुख्य कार्य धर्मानुष्ठान है। दान, परोपकार, धर्म, कर्म यज्ञयाग आदि के लिए ही अर्थ का विनियोग करना है, जबकि काम (भोग) अर्थ का गौणफल है। उसी प्रकार काम यह पुरुषार्थ इंद्रियतृप्ति के लिए नहीं, अपितु ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए है एवं अच्छी संतति उत्पन्न कर उसे धर्माचरणी बनाने हेतु है। अर्थ एवं काम धर्म के अनुसार न हुए तो उनके दुष्परिणाम होते हैं !

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, १ नवंबर २००७)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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