सामान्यतः पुरुषों को छोटे केश होने से जोडा जाता है । यहां तक की छोटे बच्चे अपनी कला की पुस्तक में उन्हें छोटे केश वाला ही बनाते हैं । आजकल सौंदर्यवर्धन के उद्देश्य से पुरुष चोटी बनाये हुए भी दिखाई देते हैं । आइए इस लेख द्वारा यह समझ लेते हैं की, पुरुषों को छोटे केश ही क्यों रखने चाहिए तथा स्त्रीओं के विपरीत लंबे केश रखना पुरुषों के लिए हानिकारक क्यों है आैर पुरुष द्वारा किस दिन केश काटने चाहिए और किस दिन नहीं काटने चाहिए ।
१. केश काटना, पुरुषत्व के संवर्धन के लिए पूरक कृत्य होना
पुरुषत्व अर्थात सत्त्वशीलरूपी गंभीरता, तो स्त्रीत्व अर्थात रजोगुणरूपी कार्यरत शक्ति की गतिमानता। ‘पुरुष’ शिव स्वरूप का द्योतक है । शिव स्वरूपता का अर्थ ही है अंतर्मुखता । अंतर्मुखता में अकार्यरत शक्ति की मात्रा अधिक होती है । अर्थात इस अवस्था में प्रक्षेपणात्मक कार्य अधिक होता है । पुरुषों में स्त्री की अपेक्षा मूलतः ही रजोगुण की मात्रा अल्प होती है । हिन्दू धर्म में पुरुषों के लिए स्वयं में विद्यमान शिवत्व के अर्थात पुरुषत्व के संवर्धन के लिए पूरक कृत्य अर्थात केश न बढाने का विधान है ।
२. पुरुष द्वारा किस दिन केश काटने चाहिए और किस दिन नहीं काटने चाहिए ?
अ. यथासंभव अशुभ दिन, अमावस्या और पूर्णिमा तथा भरी दोपहर, सायंकाल और रात्रि के समय केश न काटने के पीछे का शास्त्र
१. यथासंभव अशुभ दिन, अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियों पर केश नहीं काटने चाहिए; कारण, इन दिनों वायुमंडल में रज-तमात्मक तरंगें अधिक सक्रिय होती हैं ।
२. केश काटने पर उनके सिरे खुल जानेसे केशनलिकाओं के माध्यम से सहजता से रज-तमात्मक तरंगें केश में संक्रमित होकर केश के मूल में घनीभूत होकर वहीं रह सकती हैं ।
३. इस कारण केश के मूल में अनिष्ट शक्तियों के स्थानों की उत्पत्ति होती है; इसलिए रज-तम-प्रबल इन दिनों पर जानबूझकर केश काटने जैसा कृत्य नहीं करना चाहिए ।
४. यथासंभव सायंकाल में अथवा रात्रि में तथा खडी दोपहर में (प्रखर धूप में) केश नहीं काटने चाहिए; क्योंकि, यह समय भी रज-तमात्मक तरंगों को जागृत करता है ।
आ. रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे उत्सवों के दिन केश न काटें !
रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे उत्सवों के दिन केश नहीं काटने चाहिए; क्योंकि, इन दिनों वायुमंडल में सात्त्विक तरंगें अधिक होती हैं । ऐसे में, केश काटने जैसे अशुभ कृत्य कर वायुमंडल में रज-तम प्रसारित करने का समष्टिगत पाप कार्य करना अनुचित है ।
इ. जन्मदिन पर और जन्मतिथि पर केश नहीं काटने चाहिए !
जन्मदिन तथा जन्मतिथि पर भी केश नहीं काटने चाहिए । इसलिए कि, केश काटने से इन दिनों हमारी प्रकृति से संबंधित ग्रह, नक्षत्र तथा तारामंडलों से आनेवाली सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने की हमारी क्षमता न्यून होकर उस दिन उपास्यदेवता की ओर से मिलनेवाले चैतन्य का लाभ घटता है, जिससे हमारी आध्यात्मिक हानि होती है । इसी प्रकार, अन्यों के आशीर्वाद से मिलनेवाले शुभफल में भी न्यूनता आती है ।
ई. निष्कर्ष
शुभदिन पर केश काटने जैसे कृत्य न करें; कारण, इस दिन ऐसा करने से अशुभ कृत्य करने का समष्टि पातक लगता है । इसी प्रकार अशुभ
दिन पर भी यह कृत्य न करें; क्योंकि, इस कृत्य से रज-तमात्मक तरंगों के देह में प्रविष्ट होने की मात्रा बढ जाती है । अन्य समय अशुभकाल टालकर केश काटने के लिए धर्म की सम्मति है ।
३. अमावस्या किंवा पूर्णिमा के दिन संन्यासी द्वारा क्षौरकर्म करने का महत्त्व
अमावस्या अथवा पूर्णिमा को संन्यासी को मात्र क्षौरकर्म करने के लिए कहा गया है; क्योंकि, क्षौरकर्म के कारण सिर पर स्थित रज-तमात्मक केश का बोझ उतरने में सहायता होती है । इसी प्रकार, सिर पर स्थित केशरंध्रों की क्षौरविधि के समय उच्चरित मंत्रों के कारण मूल से शुद्धि होती है, जिससे संन्यासी में तेजतत्त्व की वृद्धि होती है । संन्यासधर्म में सतत उच्चरित मंत्रोक्त आचरण से ही यह संभव होता है । इसके लिए संन्यासधर्म का अचूकता से पालन करना आवश्यक होता है । किंतु, सर्वसाधारण के लिए यह नियम नहीं है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘केशकी आवश्यक देखभाल’