शैंपू के विज्ञापनों तथा पूरे विश्व में आधुनिक वेशभूषा एवं ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों की पत्रिकाओं में लंबे समय से स्त्रियों की मोहकता को प्रदर्शित करने के लिए लहराते केशों का चित्रीकरण किया गया है । इन व्यवसाय वृद्धि के संदेशों के फलस्वरूप ऐसा सामान्य बोध हो गया है कि यदि कोई महिला मोहक दिखना चाहती है तो उसे अपने केश खुले छोडने चाहिए । आजकल, विषेशतया संध्या काल में घूमने के लिए बाहर जाते समय, सर्वत्र स्त्रियों की यह आकांक्षा होती है कि वे सुंदरतम दिखें और इसलिए वे अपने केश खुले छोडती हैं । इस लेख में देखते है, केश खुले क्यों नहीं छोडने चाहिए ।
१. केश खुले छोडकर बाहर जानेपर अनिष्ट शक्तियोंद्वारा जीवपर काली शक्ति छोडनेकी आशंका होना
केश धोनेके पश्चात उन्हें सुखानेके लिए खुला छोडना पडता है । खुले केशकी ओर अनिष्ट शक्तियां अधिक मात्रामें आकर्षित होती हैं । खुले केशमें परस्पर घर्षण होनेसे दो केशके मध्य रज-तमात्मक प्रवाही ऊर्जा निर्मित होती है । इस प्रवाही ऊर्जाकी सहायतासे अनिष्ट शक्तियोंको
जीवपर काली शक्ति छोडना तथा उसका संग्रह करना सरल होता है । कालांतरमें इस काली शक्तिके प्रभावी संक्रमणसे किसी अनिष्ट शक्तिद्वारा जीवके शरीरमें प्रवेश करनेकी संभावना अधिक होती है ।
२. रजोगुण में वृद्धि होने से मन और बुद्धि विचलित होना
सूक्ष्म रजोगुण का संबंध क्रिया एवं आवेश से है और यही सूक्ष्म गुण गति प्रदान करता है । आध्यात्मिक स्तर से सामान्यतया महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक रजप्रधान होती हैं एवं इसके प्रकटीकरण के कारण ही वे अधिक भावुक होतीं हैं ।
जब कोई महिला अपने केश खुले छोडती है, तब उसके केशों में विद्यमान रजोगुण में और भी अधिक वृद्धि होती है । रजोगुण में वृद्धि से व्यक्ति का मन अधिक विचलित होता है एवं उसके चंचल होने की वृत्ति में वृद्धि होती है । मन की इस चंचलता का अवांछित लाभ लेकर अनिष्ट शक्तियां स्त्रियों को प्रभावित करती हैं तथा उसे ऐसा बोलने एवं करने के लिए बाध्य करती हैं जो वह सामान्यतया नहीं करती ।
इसके साथ ही जब कोई स्त्री अपने केश खुले छोडती है तब वह अपनी पंचज्ञानेंद्रियों एवं अपने शरीर के प्रति अधिक जागरूक हो जाती हैं । अनिष्ट शक्तियां इस रजोगुण को अतिशीघ्र तमोगुण में रूपांतरित कर देतीं हैं जिससे उनमें निराशा और चिंता की भावनाओं तथा कामुक विचारों में वृद्धि के कारण स्वैराचार बढता है ।
३. केश खुले रखकर बाहर जाते समय बरतनेयोग्य सावधानी
केश खुले रखकर बाहर जाना पडे तो उन्हें गांठ बांधकर अथवा ढीली चोटी बनाकर ही बाहर जाना चाहिए । चोटी अथवा केशको गांठ बांधनेके कारण अनिष्ट शक्तियोंद्वारा छोडी हुई काली तरंगोंका शरीरमें अत्यल्प मात्रामें संक्रमण होता है । इस कारण अपनेआप ही अनिष्ट शक्तियोंके कष्टकी संभावना घट जाती है । वैसे भी केश खुले छोडना, उत्छृंखलताका लक्षण समझा जाता है ।
४. केश खुले रखकर सोना
जब कोई महिला अपने केश खुले रखकर सोती है, केश के छोर अनावृत्त होते हैं । निद्रावस्था में हम अनिष्ट शक्ति के लिए अधिक वेध्य (vulnerable)होते हैं, क्योंकि वे रात्रि काल में वातावरण में रज-तम की प्रचुरता के कारण अधिक कृतिशील होती हैं । विशेषकर यह उन स्त्रियों पर अधिक लागू होता है, जो साधना नहीं करतीं ।
५. पुरुष जो छोटे एवं खुले केश रखते हैं वे प्रभावित क्यों नहीं होते ?
आध्यात्मिक स्तर पर सामान्यतया पुरुषों में रज-तम की मात्रा स्त्रियों की तुलना में अल्प होने के कारण वे भावनाप्रधान और संवेदनशील नहीं होते । उनमें अनिष्टता से संघर्ष करने की क्षमता भी अधिक होती है । इसके फलस्वरूप उनके केश काटे जाने पर भी वे अनिष्ट शक्तियों द्वारा अल्प आक्रमण प्रवण होते हैं । पुरुषों में छोटे केश रखने पर भी सत्त्वगुण ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए पुरुषों के लिए केश छोटे रखना उचित होता है । पुरुषों द्वारा केश बढाने से उनके शरीर में सूक्ष्म-उष्णता की वृद्धि होती है और शरीर का आंतरिक संतुलन बिगड जाता है ।
६. आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से केश रचना के कुछ व्यावहारिक सुझाव
- जितना संभव हो स्त्रियों को उनके केश खुले नहीं छोडने चाहिए । यह योग्य होगा कि वे जूडे अथवा गूंथनेवाली चोटी केश रचना अपनाएं ।
- स्त्रियों के लिए यही उचित है कि वह सोते समय भी अपने केश बांधकर रखें ।
- केश के अग्रभागों में विभूति लगाकर रखने से सूक्ष्म आक्रमणों से बचा जा सकता है ।
- केश धोने के उपरांत अथवा सिर से स्नान करने के उपरांत संस्तुति की जाती है कि जब केश सूख रहे हों तब, महिलाएं केश के अग्रभागों को बांधकर रखें अथवा उन्हें एक तौलिए से बांध लें ।
- अनिष्ट शक्तियों से रक्षणार्थ प्रार्थना करने से एवं साधना करने की तीव्र इच्छा शक्ति जागृत करने से सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित होने में सहायता होती है ।
- अहं एवं स्वभावदोष न्यून करनेवाली नियमित आध्यात्मिक साधना के लिए कोर्इ विकल्प नहीं है ।
- ऐसा देखा गया है कि महिलाएं जब अपने केश खुले छोड देती हैं तब वे पंचज्ञानेंद्रियों एवं स्वशरीर के संबंध में अधिक संवेदनशील हो जाती हैं । शरीर के प्रति जागृत संवेदनशीलता, जीवन के उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति में गतिरोध उत्पन्न करती है । आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमें अपने आपको पंचज्ञानेंद्रिय युक्त शरीर, मन, बुद्धि के परे जाकर आत्मा अथवा परमात्मा के अंश से युक्त समझना चाहिए, अर्थात देहबुद्धि के परे जाकर आत्मबुद्धि वृद्धिंगत करनी चाहिए ।
- नियमित साधना के फलस्वरूप हम सत्त्व एवं तम क्रियाओं में विद्यमान अंतर को समझने लगते हैं । जिसे इसकी प्रचीती होने लगती है, उसे यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि क्या आध्यात्मिक दृष्टि से योग्य है, क्योंकि उसे अंतरमन से ही इसका ज्ञान हो जाता है । हमें नियमित साधना करने एवं सात्त्विक जीवन शैली अपनाने से श्री गुरु की कृपा प्राप्त होती है, जो सूक्ष्म शक्तियों के आक्रमण से हमारा संरक्षण करती है तथा तीव्र गति से स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति करने में सक्षम बनाती है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘केशकी आवश्यक देखभाल’