ब्रशका उपयोग करनेकी अपेक्षा उंगलीसे दांत स्वच्छ क्‍यों करें ?

१. दांत स्वच्छ करनेसे पूर्व दातुनसे प्रार्थना करना

दातुन (दांत स्वच्छ करने हेतु प्रयुक्त पदार्थ) से इस प्रकार प्रार्थना करें ।

आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशून् वसूनि च ।

ब्रह्म प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि वनस्पते ।।

अर्थ : हे वनस्पति, तुम मुझे आयु, बल, यश, तेजस्विता, प्रजा, पशु, धन, ब्रह्म, प्रज्ञा (ग्रहणशक्ति) और मेधा (धारणाशक्ति) दो ।

(दांत स्वच्छ करने हेतु प्रयुक्त वनस्पतिके प्रति कृतज्ञताभाव व्यक्त कर वनस्पतिमें भी देवत्व देखना सिखानेवाला महान हिंदु धर्म ! – संकलनकर्ता)

२. दांत स्वच्छ करने हेतु किस पदार्थका उपयोग करें और क्या न करें ?

२ अ. नीम, खैर, करंज (कंजा), औदुंबर, पलाश जैसे वृक्षोंकी दातुनका उपयोग करें ।

        ‘नीम, औदुंबर, पलाश इत्यादिकी दातुनसे दांत स्वच्छ करनेसे दांतपर आई रज-तमात्मक तरंगोंका विघटन होता है और मुखमें शुद्ध वायुकी उत्पत्ति होती है । यह शुद्ध वायु देहकी रिक्तिमें धीरे-धीरे संक्रमित होती है और देहकी रिक्तियोंके लिए दिनभर कार्य करने हेतु आवश्यक उत्तेजना देनेमें यशस्वी होती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

२ आ. गायके गोबरसे बनी उपलें जलाकर तैयार की गई राख अथवा फिटकरीके चूर्णका उपयोग करें ।

        ‘दांत प्राबल्यदर्शक पृथ्वी और आप तत्त्वोंके संयोगसे बने होते हैं । अन्न खानेकी प्रक्रियासे दांतोंके मध्यमें जमे अन्नदर्शक घटक कालांतरमें रज-तमात्मकदर्शक उत्सर्जित गंध निर्माण करते हैं । इससे मुखकी रिक्‍तिका वायुमंडल अशुद्ध अर्थात् दूषित बनता है ।

१. राख : गायके गोबरसे बनी उपलें जलाकर निर्मित चूर्णमें तेजतत्त्वरूपी गंधदर्शक वायु समाई होती है । इस चूर्णकी सहायतासे दांत स्वच्छ करनेसे चूर्णके मर्दनात्मक स्पर्शसे दांतमें विद्यमान रज-तमात्मक तरंगों और उत्सर्जित गंधदर्शक तरंगोंका मुखकी रिक्तिमें ही विघटन होते हुए, रिक्तताकी शुद्धता बनाए रखनेमें सहायता मिलती है । दांत स्वच्छ करनेके उपरांत पानीसे भली-भांति कुल्ला करनेसे शेष बची और उच्चाटनात्मक प्रक्रियाकी रज-तमात्मक तरंगें और वायु जलमें विसर्जित होती है तथा मुखकी रिक्तता पूर्णतः शुद्ध होती है ।

२. फिटकरी : फिटकरीमें घर्षणात्मक तेजतत्त्वसे संबंधित प्रवाही गंधदर्शक वायु छिपी होती है । फिटकरीके स्पर्शसे दांत तथा मुखकी रिक्तिमें रज-तमात्मक तरंगों और त्याज्य वायुओंके सामूहिक घनीकरणमें सहायता मिलती है । थोडी-बहुत मात्रामें रज-तमात्मक तरंगोंकी विघटनात्मक प्रक्रिया दर्शानेवाला और तेजके स्तरपर बना यह घनीकरणात्मक वायुमंडल, कुल्ला करनेसे पानीमें एकत्रितरूपसे विसर्जित हो जाता है । (संक्षेपमें तेजके स्तरपर, अर्थात् तेजके उपयोगसे रज-तम तरंगोंका घनीकरण और विघटन होकर, पानीमें विसर्जन होता है ।) इस प्रकार दांतोंके साथ ही मुखकी रिक्तिके शुद्धीकरणमें भी सहायता मिलती है ।

गोबरके उपलोंको जलाकर बनाई गई राख, फिटकरीकी तुलनामें अधिक लाभदायक है ।’

– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

२ इ. त्रिदोष और त्रिगुणानुसार दांत स्वच्छ करने हेतु दातुन, राख अथवा फिटकरीका उपयोग करें ।

संकलनकर्ता : ऐसा बताया गया है कि दातुन, राख और फिटकरीसे दांत स्वच्छ करें । क्या प्रतिदिन विभिन्न घटकोंसे दांत स्वच्छ करें ?

सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान : नहीं । दांत स्वच्छ करनेके लिए प्रकृतिके अनुसार विशिष्ट घटकका उपयोग करें ।

१. त्रिदोष : वात, कफ और पित्त प्रवृत्तिके जीवके लिए क्रमशः दातुन, राख और फिटकरीका उपयोग लाभदायक है ।

२. त्रिगुण : तत्त्वकी भाषामें सत्त्वगुणी जीवके लिए काष्ठ, रजोगुणी जीवके लिए राख और तमोगुणी जीवके लिए फिटकरीका उपयोग करना उचित है ।

– श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे

२ ई. तेंदूके काष्ठसे दंतधावन न करें ।

        ‘तेंदूका काष्ठ तमोगुणवर्धक है, इसलिए उसका उपयोग निषिद्ध माना गया है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

३. दांत स्वच्छ करनेकी क्रिया

        एक स्थानपर बैठकर अथवा खडे रहकर दांत स्वच्छ करनेसे उचित शुद्धि होती है; इसलिए चलते-फिरते दांत स्वच्छ न करें ।

३ अ. ब्रशका उपयोग करनेकी अपेक्षा उंगलीसे दांत स्वच्छ करें ।

अ. निर्जीव ब्रशकी अपेक्षा सजीव उंगली शरीरसे अधिक तादात्म्य रखती है ।

आ. ब्रशके माध्यमसे पृथ्वीतत्त्व-प्रधान दांतोंका ध्यान रखनेकी अपेक्षा, उंगलीसे आपतत्त्वप्रधान मसूडोंका ध्यान रखना अधिक उपयुक्त

        ब्रशसे केवल दांत स्वच्छ होते हैं और दो दांतोंमें फंसे अन्नकण निकलते हैं । जिन मसूडोंसे दांतोंका उद्गम होता है, उन मसूडोंपर ब्रशका कोई परिणाम नहीं होता । यदि मसूडे स्वस्थ हों, तो दांतोंके स्वस्थ रहनेकी संभावना अधिक रहती है । उंगलियोंसे दांत स्वच्छ करते समय दांत स्वच्छ होनेके साथ ही मसूडोंका मर्दन अपनेआप होता है तथा वे स्वस्थ रहते हैं । पृथ्वीतत्त्वकी अपेक्षा आपतत्त्व अधिक सूक्ष्म है, इसलिए वह अधिक प्रभावशाली है । इसी प्रकार पृथ्वीतत्त्व-प्रधान दांतोंकी अपेक्षा आपतत्त्व प्रधान मसूडोंका ध्यान रखना अधिक महत्त्वपूर्ण है ।

इ. ब्रशसे दांत स्वच्छ करनेकी अपेक्षा, उंगली अथवा दातुनसे दांत स्वच्छ करनेसे शारीरिक और मानसिक स्तरपर लाभ होना

        ‘ब्रशके तंतु कृत्रिम होते हैं, इसलिए उनसे रज-तम कणोंका प्रक्षेपण होता है । ब्रशके तंतुओंके स्पर्शसे मसूडों और दांतोंपर रज-तम तरंगोंका आवरण निर्माण होता है और दांत केवल स्थूलसे स्वच्छ होते हैं; परंतु सूक्ष्मसे अस्वच्छ रहते हैं । इसके विपरीत उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेपर देहकी शक्ति उंगलीके पोरसे प्रक्षेपित होती है और मसूडोंमें संक्रमित होती है । इससे दांतों और मसूडोंको सात्त्विकताका लाभ होता है तथा वे स्थूल और सूक्ष्मरूपसे स्वच्छ होते हैं ।

उंगलीके पोरसे मसूडोंपर दबाव पडता है, इससे मसूडोंपर मर्दनका परिणाम होता है और मसूडे बलवान होते हैं ।

नीमकी लकडीका ‘दातुन’ के रूपमें उपयोग करनेपर दांत भली-भांति स्वच्छ होते हैं, साथ ही नीमके रस और चैतन्यका लाभ मसूडों और दांतोंको होता है और वे शक्तिशाली बनते हैं ।’

– ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे)

ई. मध्यमासे प्रक्षेपित तेजदायी तत्त्वसे मसूडों और दांतोंकी रिक्तियोंके रज-तमयुक्त कणोंका विघटन होना

        ‘किसी आयुर्वेदिक चूर्णसे मध्यमा (हाथकी बीचवाली उंगली) से बाहरकी ओरसे दांत स्वच्छ करते समय मध्यमासे प्रक्षेपित तेजदायी तत्त्वके बलपर मसूडे और दांतोंकी रिक्तियोंमें विद्यमान रज-तमयुक्त कणोंका विघटन, घर्षणकी क्रियासे निर्मित तेजकी सहायतासे वहीं हो जाता है ।

उ. दांतोंके भीतरी भागसे संबंधित अंतःरिक्तता रज-तमात्मक वायुसे आवेशित होनेके कारण, उसे स्वच्छ करने हेतु वायुधारणासे युक्त तर्जनीका उपयोग किया जाना

        बाहरके भागसे दांत स्वच्छ करनेके उपरांत दांतोंके भीतरी भागको तर्जनीसे रगडकर स्वच्छ करते हैं । दांतोंके भीतरी भागसे संबंधित अंतःरिक्तता रज-तमात्मक वायुसे आवेशित होती है, इसलिए उसे स्वच्छ करनेके लिए वायुधारणासे युक्त तर्जनीका ही उपयोग किया जाता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

ब्रशसे दांत स्वच्छ करनेकी कृतिका सूक्ष्म-परीक्षण

१. ‘मसूडे कमजोर होते हैं तथा उनमें रजोकण निर्माण होते हैं ।

२. मसूडे कमजोर होनेपर दांतोंसे रक्त निकलता है । परिणामस्वरूप कालांतरमें वहां जीवाणुओंकी मात्रा बढती है और अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंको स्थान मिलता है ।

३. इससे कालांतरमें दांतोंकी एक आवश्यक परत नष्ट होती है ।

४. ब्रश और दांतोंके बीच होनेवाले घर्षणसे रजोगुणी तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । इससे स्वच्छ किए गए दांतोंपर सात्त्विकताका परिणाम अल्पावधिके लिए ही रहता है ।

५. ऐसा अनुभव होता है कि, ब्रशकी कृत्रिमताके कारण उसमें काली शक्ति दीर्घ कालतक बनी रहती है । मनुष्यका शरीर सजीव है, इसलिए उंगली अधिक सात्त्विक होती है तथा उससे (सात्त्विक) तरंगोंका प्रक्षेपण भी अधिक होता है ।
ब्रशमें रज-तम तरंगें अधिक होती हैं ।

६. दांत स्वच्छ करने हेतु प्रयुक्त लेप (पेस्ट) में रसायन होते हैं, इसलिए उससे सात्त्विकता प्रक्षेपित नहीं होती ।

उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेकी कृतिका सूक्ष्म-परीक्षण

१. उंगलीसे दंतधावन करते समय, दांतोंपर कुछ दबाव डालनेपर निर्मित पंचतत्त्वोंमें से वायुतत्त्वका घर्षण दांतोंके पृथ्वीतत्त्वपर होता है । इससे यह अनुभव होता है कि, कुछ मात्रामें निर्मित चैतन्यके कण मसूडोंमें टिके रहते हैं ।

२. तर्जनीद्वारा दांतोंपर किए गए घर्षणके कारण दांतों और मसूडोंका एक प्रकारसे मर्दन होता है (मालिश होती है) और मसूडे दृढ बनते हैं ।

३. उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेपर मन अंतर्मुख बनता है तथा एक प्रकारकी संतुष्टि प्राप्त होती है ।

४. उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेकी कृति प्राकृतिक है, इसलिए उससे अधिक सात्त्विकता प्राप्त होती है ।

५. उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेपर दुर्गंधरूपी आवरण नष्ट होता है ।’

उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेपर हुई अनुभूति

‘उंगलीसे दांत स्वच्छ करनेका प्रयोग करनेपर उंगलीसे प्रक्षेपित शक्तिका दांतोंपर परिणाम ब्रशकी तुलनामें अधिक समयतक रहा । इससे मुझे अनुभव हुआ कि मेरा अनावश्यक बोलना कम हो गया है ।’ – कु. प्रियांका लोटलीकर

४. दंतधावनके उपरांत की जानेवाली कृतियां

४ अ. काष्ठसे दांत स्वच्छ करनेके उपरांत उसे नैऋत्य दिशामें फेंकें ।

        दंतधावनके उपरांत रज-तमात्मक वायुसे और तरंगोंसे आवेशित दातुन नैऋत्य दिशामें फेंकनेसे काष्ठकी रज-तमात्मक धारणाका नैऋत्यकी लयकारी धारणामें लय होनेमें और वायुमंडल प्रदूषणमुक्त बननेमें सहायता मिलना : ‘नैऋत्य दिशामें क्रियाकी प्रबलतापर (लयकारक शक्तिमें कार्यरतता अधिक रहती है अर्थात् क्षमता अधिक रहती है ।) लयकारक धारणाका (लय करनेवाली तरंगोंका) वास रहता है । इस दिशामें ज्ञान और क्रियाकी शक्तियोंके स्तरपर तरंगें घनीभूत होती हैं । इसलिए इस दिशामें क्रियाकी सहायतासे ज्ञानधारणाके स्तरपर लयकारक प्रक्रिया गतिपूर्वक संपन्न की जाती है । दंतधावन उपरांत अशुद्ध, अर्थात् रज-तमात्मक वायुसे और तरंगोंसे आवेशित काष्ठ, नैऋत्य दिशामें फेंके जानेसे काष्ठकी रज-तमात्मक धारणाका नैऋत्य दिशाकी लयकारक धारणामें लय होनेमें और वायुमंडल प्रदूषणमुक्त बननेमें सहायता मिलती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे)

४ आ. कुल्ला करनेके उपरांत आचमन करें ।

आचमन करनेकी कृति

        आचमन करना अर्थात् श्रीविष्णुके २४ नामोंका उच्चारण करना । उनमेंसे पहले तीन नामोंका (ॐ श्री केशवाय नमः ।, ॐ श्री नारायणाय नमः ।, ॐ श्री माधवाय नमः ।) उच्चारण करते समय प्रत्येक समय दाहिनी हथेलीसे जल प्राशन करें । चौथे नामके समय दाहिनी हथेलीसे जल ताम्रपात्रमें छोडें । शेष २० नामोंके समय शरीरके विशिष्ट भागको हाथ लगाकर न्यास करें ।

संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्विक ग्रन्थ ‘आदर्श दिनचर्या (भाग १) स्नानपूर्व आचार एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार

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