सहिष्णु, दृढनिश्चयी एवं पराक्रमी क्रांतिकारी : अनंतराव कान्हेरे

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१. सहिष्णु, दृढनिश्चयी एवं शूर अनंतराव कान्हेरे
सारिणी


हुतात्मा अनंत कान्हेरे हिंदुस्थानके स्वतंत्रता संग्राममें अनेक देशभक्तोंने अपने प्राणोंका बलिदान देकर स्वतंत्रता संग्रामका हवनमकुंड प्रज्वलित रखा । १९ अप्रैल १९१० को हुतात्मा अनंत लक्ष्मन कान्हेरेने अपने प्राण त्याग दिए ।
‘लोगोंके न्यायालयमें, जो हिंदुओंको तिरस्कृत भावनासे देखते  हैं, उन्हें मृत्युदंड देना ही उचित है, और मैंने जैकसनको ऐसा दंड देनेका शुभकार्य किया है । मैं सारे लोगोंको बताना चाहता हूं कि, वे ऐसे अपराधियोंको सबसे कठोर दंड दें ।’- हुतात्मा अनंत लक्ष्मण कान्हेरे
कोंकणसे एक युवक माध्यमिक शिक्षा हेतु औरंगाबाद जाता है, वह क्रांतिकारी गतिविधियोंमें सहयोगी बनता है, स्वा. सावरकरद्वारा भेजा गया पिस्तौल उसके हाथोंमें आता है, वह ऊंचे पदपर कार्यरत एक षड्यंत्रकारी ब्रिटिश अधिकारीकी हत्या करता है, प्रत्येक बात गूढ एवं असंभवसी लगती है । किंतु जिस युवकने इस असंभव कृत्यको संभव बनाया, उसका नाम था अनंत लक्ष्मण कान्हेरे । अनंतराव का जन्म १८९१ में रत्नागिरीके आयनी-मेटे में हुआ ।  उनके एक पूर्वजकी मृत्यू पानिपतके युद्धमें हुई थी ।

 

१. सहिष्णु, दृढनिश्चयी एवं शूर अनंतराव कान्हेरे

अनंतराव पढाई हेतु उनके एक मित्र, व्यावसायिक गंगाराम मारवाडीके  साथ रहते थे । गंगारामने ‘ अभिनव भारत ’ की शपथ ली थी । अनंतरावको देशभक्तिकी शपथ दिलानेसे पहले गंगारामने उनकी परीक्षा ली । एक बार उन्होंने लोहेकी गरम संडसी अनंतरावके हाथपर रखी । उन्होंने बडे धैर्य तथा दृढनिश्चयसे जलता हुआ हाथ सह लिया । एक बार उन्होंने अनंतरावको जलते हुए दिएकी कांच पकडनेको कहा । अनंतरावने उसे दोनों हाथोंमें पकडा । उनके हाथ जल रहे थे किंतु उन्होंने कांच नहीं छोडी । नासिकके गोपालराव धारप अभिनव भारतके  एक सदस्य थे । इस संगठनमें अधिकाधिक युवक सम्मिलित हो, इस हेतु वे प्रयास कर रहे थे । अनंतरावको जब पता चला कि, जैकसनकी तानाशाहीके कारण बाबाराव सावरकरको हथकडी लगाकर सार्वजनिक परेड करवाई गई, तो उन्हें बहुत क्रोध आया । उन्होंने जैकसनको मार डालनेकी इच्छा गोपालरावके पास व्यक्त की ।

 

२. पाखंडी तथा क्रूर जैकसन

नासिकके जिलाधिकारी जैकसनने पूरे प्रयास किए कि लोगोंके मनमें ब्रिटिशोंका डर बैठे तथा वे स्वतंत्रताके लिए प्रयास करनेसे दूर रहें। यह साध्य करने हेतु उसने संस्कृत एवं मराठी सिखी । वह कहता था कि, पूर्व जन्ममें वेदोंका ज्ञान होनेवाला वह एक विद्वान ब्राह्मण था । सामान्य एवं भोले लोगोंको धोखा देनेकी यह उसकी चाल थी । विलियम नामके ब्रिटिश अधिकारीने एक निरपराध किसानकी मरते दमतक लातोंसे पीटाई की; किंतु जेकसनने उसकी रक्षा करनेका प्रयास किया ।  ‘वंदे मातरम् ’ गानेवाले सभी युवकोंको उसने दंड दिया । उसने अधिवक्ता कान्हेरेको देशभक्तोंकी सहायता करनेके विषयमें मनोरूग्ण सिद्ध कर धारवाडके कारागृहमें बंद कर दिया। पौराणिक  कथाओंद्वारा भारतीय युवकोंमें स्वतंत्रताके प्रति जागृति करनेवाले नासिकके विद्वान तांबे शास्त्रीको उसने अगुवा किया । देशभक्तिके गीत लिखनेवाले बाबाराव सावरकरको हथकडी लगाकर उनकी परेड करवाई । बाबारावको नासिकसे स्थानांतरित किया गया । क्रांतिकारियोंके  लिए पाखंडी तथा क्रूर जैकसन एक कांटा बनकर रह गया ।

 

३. जैकसन हत्याकी सिद्धता !

१९ सितंबर १९०९ को अनंतराव रेलगाडीसे औरंगाबादसे नासिक गए । विनायकराव देशपांडेने उन्हें अपनी पिस्तौल दी । निर्जन स्थानपर वे लक्ष्यवेध करनेका  अभ्यास करते थे । जिलाधिकारी कार्यालय जाकर उन्होंने  जैकसनका निरीक्षण किया । जैकसनको मारनेके पश्चात उन्हें फांसी लगाई जाएगी; अत: मृत्युके उपरांत उनके माता-पिता तथा भाईके पास उनके स्मृतिप्रीत्यर्थ एक छायाचित्र हो, इस विचारसे उन्होंने अपना एक छायाचित्र खिच वाया ।

जिलाधिकारीके पदसे पदोन्नति देकर जैकसनको नासिकसे स्थानांतरित किया गया । उसे विदा करने हेतु कायक्रमोंका आयोजन होने लगा । क्रांतिकारियोंने सोचा कि नासिकसे स्थानांतरित हो जानेपर जैकसनको मारना कठिन हो जाएगा , अत: उसे शीघ्र ही मारना निश्चित किया गया । आन्ना कर्वे तब नासिकमें थे । उन्होंने जैकसनको मारनेकी योजना बनाई । २९ दिसंबर १९०९ को जैकसनके सम्मानमें किर्लोस्कर कंपनी द्वारा ‘शारदा’ नामक नाटक प्रस्तुत किया गया । नाटकके मध्यंतरमें जैकसनका सम्मान तथा कुछ लोगोंके भाषण रखे गए थे । आन्ना कर्वेने जैकसनको मारनेके लिए  यह दिन निश्चित किया । स्वा. सावरकरने लंदनसे भेजे दो ‘ब्राउनिंग’ पिस्तौल उन्होंने अनंतरावको दिए । जैकसनको गोली मारनेके पश्चात वे स्वयंपर गोली चलाए अथवा विषैली मिठाई खाएं । यदि अनंतराव जैकसनको मारनेमें असफल रहे,तो यह काम आन्ना कर्वे करे, उनके भी असफल होनेपर विनायकराव देशपांडे जैकसनपर गोली चलाए ।

 

४. जैकसनकी हत्या

२१ दिसंबर १९०९ को नासिकके विजयानंद नाट्यगृहमें किर्लोस्कर थिएटर गुटद्वारा मराठी नाटक ‘शारदा’ का खेल आयोजित किया गया । जैसे ही जैकसन थिएटरमें प्रवेश कर रहे थे, अनंतरावने फूर्तिसे अपना पिस्तौल निकाला तथा जैकसनपर पिछेसे गोली चलाई किंतु निशाना चूक गया और गोली हाथसे निकलती हुई चली गई; इसके पश्चात अनंतराव आगे आए तथा आगेसे जैकसनपर ४ गोलियां चलाई । रक्तसे लथपथ होते हुए जैकसन जमीनपर गिर गए । पुलिस अधिकारी तोडरमलने अनंतरावको दबोचा । खोपकरने उनके हाथसे पिस्तौल हटाया । पणशीकरने उनके सिरपर डंडेसे मारा जिससे गंभीर घाव होकर रक्त  बहने लगा । अनंतराव अपनी दूसरी पिस्तौल निकाल सकते थे, किंतु उन्होंने पणशीकरसे कहा कि, ‘ मैं तुम्हें क्षमा करता हूं क्योंकि तुम हिंदू हो । ’ तत्पश्चात उन्हें नि:शस्त्र किया गया । वे शांतिसे तथा वीरतासे खडे थे । उन्होंने तोडरमल तथा खोपकरसे कहा, ‘ मैंने यह शुभकार्य ब्रिटिशोंद्वारा हिंदुओंपर होनेवाले अत्याचारोंके विरुद्ध प्रतिशोध लेने हेतु किया । मैंने अत्याचारी जैकसनको मृत्युदंड दिया । मैं भाग नहीं जाउंगा । आन्ना कर्वे तथा देशपांडे वहांसे चुपचाप निकल जानेमें सफल हुए ।

 

५. जैकसन प्रकरणमें न्यायालयका निर्णय

अपनी साक्ष्यमें  अनंतरावने कहा, ‘ मैंने किसीकी सहायता अथवा मार्गदर्शन लिए बिना यह कृत्य स्वयं किया है । ’ अपने सहयोगी क्रांतिकारियोंकी कोई जानकारी उन्होंने पुलिसको नहीं दी; उन्होंने वह पिस्तौल एक अरबी व्यापारीसे खरीदी , ऐसा बताया। इस षड्यंत्रमें सहयोगी कोई भी पकडा न जाए, इसकी पूरी दक्षता उन्होंने ली किंतु डरपोक गानू वैद्य एवं दत्तू जोशी क्षमाके साक्ष्य बन गए; परिणामस्वरुप षड्यंत्रमें सहयोगी सर्व क्रांतिकारी पकडे गए । गायडर नामक पुलिस अधिकारी इस प्रकरणका अन्वेषण कर रहा था । उसका अन्वेषण उसे इंग्लैंड स्वा. सावरकरतक ले पहुंचा । निर्णयके अनुसार अनंत कान्हेरे, विनायक देशपांडे तथा आन्ना कर्वेको मृत्युदंड दिया गया । गानू वैद्य तथा दत्तू जोशीको २ वर्ष कारावासका दंड हुआ, किंतु वे क्षमाके साक्ष्य बननेके कारण उनका दंड निरस्त किया गया । ९ अप्रैल १९१० को इन तीनों युवकोंको थाने (महाराष्ट्र)के कारागृहके फांसीकी वेदीपर प्रात: ७ बजे  लाया गया ; वे एकदम शांत तथा शूर दिख रहे थे । सरकारने लोगोंको उनके अंतिम संस्कार भी नहीं करने दिए ।
ब्रिटिश सरकारने उनके परिजनोंकी विनती अस्वीकार की और थाना खाडीमें उनके अंतिम संस्कार कर रक्षा समुद्रमें फेंक दी ताकि उनके परिजनोंको भाग्यमें उनकी रक्षातक भी न हो । १८ वर्षकी आयुमें अनंत कान्हेरेने देशकी स्वतंत्रता हेतु अपने प्राण त्याग दिए ; ऐसे ही कई युवकोंके समर्पणसे ही आज हम स्वतंत्रताका आनंद ले रहे हैं । हम हुतात्मा अनंत कान्हेरेको, जिन्होंने अपने प्राणोंका बलिदान दिया, विनम्र अभिवादन करते हैं ।

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