कॅप्टन लक्ष्मी सहगल !

कॅप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन् !
      ब्रह्मदेशकी सीमापर आधुनिक अस्त्र-शस्त्रोंसे युक्त सेनाको १६ घंटोंतक लडनेके लिए विवश कर नेताजी सुभाषचंद्रजीको दूरतक भाग निकलनेका अवसर प्राप्त करवानेवाली कॅप्टन लक्ष्मी सहगल !

सारणी


 

१. झांसी रानीलक्ष्मी पथक’की स्थापना एवं लक्ष्मीद्वारा उसका नेतृत्व स्वीकारना

        ‘कॅप्टन लक्ष्मीका जन्म २४.१०.१९१४ को मद्रास (चेन्नई) में हुआ । २४  वर्षकी आयुमें इ.स.१९३८ में उसने एम्.बी.बी.एस्. परीक्षा उत्तीर्ण की । सिंगापूरमें उसने नेताजी सुभाषचंद्रजीके व्याख्यान सुनें एवं प्रभावित होकर ‘आझाद हिंद सेना’की ओर आकर्षित हुई ।

 

        २२ अक्तूबर झांसीकी रानी लक्ष्मीका जन्मदिन । १९४३ में इसी दिन सुभाषबाबूने ‘आझाद हिंद सेना’में ही महिलाओंके लिए ‘झांसी रानी लक्ष्मी दल’की स्थापना की । इस दलका नेतृत्व लक्ष्मीने स्वीकार किया ।

 

२. लक्ष्मीद्वारा रणक्षेत्रमें अंग्रेज सेनाके साथ युद्ध करने  हेतु  निकलना

        अपनी विभिन्न टुकडियां लेकर प्रत्यक्ष रणक्षेत्रमें अपने शत्रुके साथ, अर्थात् अंग्रेज सेनाके साथ युद्ध करनेके लिए कॅप्टन लक्ष्मी  निकली । वास्तविक उस समय उनके पास भोजनकी सामग्री तथा वस्त्र पर्याप्त मात्रामें नहीं थे, युद्धसामग्री भी नहीं थी । साथ ही जिस क्षेत्रमें जाना है, वह क्षेत्र पहाडी एवं घने जंगलका था ।

३. रानीके दलने अंग्रेज पुरुषोंके शूर दलको नाक रगडकर शरण आनेके लिए विवश करना

        प्रातःसमय चढाईके लिए प्रस्थान करनेका आदेश आया । अंग्रेज सेना लगभग १ मीलकी दूरीपर थी । उसने अचानक आक्रमण किया। कॅप्टन लक्ष्मीने तत्काल प्रत्युत्तर करनेका आदेश दिया । झांसी रानी दलने अंग्रेज सेनापर प्रति आक्रमण किया । बंदुकोंसे गोलियां बरसने लगी, तोपोंसे भयंकर आगके गोले शत्रूपर टूट पडने लगे । ‘जय हिन्द’, ‘इन्किलाब झिंदाबाद’, ‘आझाद हिन्द झिंदाबाद’ जैसे नारोंसे अंग्रेज दल भयभीत हुआ । विजयके नारोंके आवेशमें तोपे बरस  ही रही थीं । कॅप्टन लक्ष्मीकी ‘झांसीकी रानी’को विजय प्राप्त हुई । हिंदुस्थान तथा ब्रह्मदेशकी सीमापर हुए इस युद्धमें झांसी रानीके दलने अंग्रेज पुरूषोंके वीर दलको नाक रगडकर शरण आनेके लिए विवश किया ।’

– श्री. निवृत्ती भि. शिरोडकर (‘दैनिक नवप्रभा’, ३.११.१९९९)

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