हुतात्मा बाल क्रांतिकारी

         ‘अगस्त १९४२ में ‘चले जाव’ आंदोलन पूरे देशमें आरंभ हुआ । इस आंदोलनमें पाठशालाके बच्चोंने भी सहयोग दिया । पाठशालाके बच्चोंमेंसे कुछ बच्चोंने आंदोलनमें सक्रीय सहयोग दिया, तो किसीने इस समय क्रांतिकार्य किया । भारतीय क्रांतिकारीयोंके दिव्य बलिदानसे प्रेरित होकर पौगंडावस्थाके अनेक सुकुमार बच्चे पुलिसकी गोलीबारीका धैर्यतापूर्वक सामना करने लगे । उनका बलिदान सभी राजनैतिक दलोंके शासनकर्ता, विशेष रूपसे कांग्रेसी शासनकर्ता भूल गए हैं, परंतु हमें उसे भूलना नहीं है। ऐसा करनेसे देशके लिए प्राणार्पण किए बाल क्रांतिकारीयोंके प्रति कृतघ्नता होगी !

नारायण दाभाडे



नौंवी कक्षामें पढनेवाला यह छात्र ९.८.१९४२ को पुणेमें कांग्रेस कार्यालयके निकट निदार्शकोंपर पुलिसद्वारा की गई अंदाधुंद गोलीबारीमें घायल होकर तत्काल मृत्युको प्राप्त हुआ।

 

 

भास्कर कर्णिक

        मुंबई विश्वविद्यालयसे उच्च श्रेणीमें उत्तीर्ण विज्ञानशाखाका स्नातक, सिंधुदुर्ग जनपदका मूलनिवासी बुद्धिमान भास्कर नामक युवक । पढाईके पश्चात पुणेस्थित आयुध एवं विस्फोटक निर्माणीमें वह चाकरी करने लगा । बयालीसके आंदोलनमें भूमिगत कार्यकर्ताओंने पुणेके चलचित्रगृहके मालिकोंको ‘चलचित्रके समाप्त होनेपर ‘वंदे मातरम्’ गीत लगाएं’, ऐसा सूचित किया; परंतु इन चलचित्रगृहोंमें अधिकांश गोरे अधिकारी आते थे, इसलिए उन मालिकोंने ‘वंदे मातरम्’ गीत लगाना अस्वीकार किया । अतएव इन चलचित्रगृहोंमें बमविस्फोट कर गोरे लोगोंको मारनेका षडयंत्र क्रांतिकारीयोंने रचा । इस कार्यके लिए विस्फोटक देनेका कार्य भास्करने किया । २४.१.१९४३ को ‘कॅपिटॉल’ चलचित्रगृहमें भूमिगत कार्यकर्ताओंद्वारा किए गए बमविस्फोटमें कुछ गोरे अधिकारी मारे गए । इस षडयंत्रके संबंधमें भास्करको बंदी बनाया गया । ‘आंदोलनमें सहयोगी भूमिगत कार्यकर्ताओंके नाम यातना देकर मुझसे बुलवाए जाएंगे’, यह सोचकर प्रसाधनगृहमें जाकर भास्करने सायनाईड नामक विष प्राशन कर मृत्युको आलिंगन दिया ।

दत्तू रंगारी


बेलगांव जनपदके बैल होनगल नामक गांवका यह निवासी । छठी कक्षामें पढनेवाला केवल १३ वर्षका यह युवक, २३.८.१९४२ को पुलिसद्वारा की गई गोलीबारीमें मृत्युको प्राप्त हुआ।

 

 

हेमू

        ‘स्वराज्य सेना’ नामक संगठनका एक सदस्य । २३.१०.१९४२ को सैनिकोंसे भरी रेलगाडी उडानेके उद्देश्यसे पटरीयोंकी फिशप्लेट्स निकालनेका प्रयास करते समय ही हेमूको बंदी बनाया गया । सैनिकी न्यायालयमें अभियोग चलाकर उसे फांसीसे दंडित किया गया । केवल १८ वर्षका यह युवक २१.१.१९४३ को सक्कर कारागृहमें ‘ब्रिटीश साम्राज्य नष्ट होने दो’, ऐसी घोषणा करते हुए फांसीपर चढा ।
 

काशिनाथ पागधरे



थाने जनपदके पालघर तहसिलके सातपाटी नामक गांवके इस युवकने १४ वर्षकी आयुमें ही स्वतंत्रता आंदोलनमें सम्मिलित होना आरंभ किया था । १९४० में हुए एक सत्याग्रहमें सहयोगी होनेके कारण उसे छह मासोंके लिए कठोर कारावासका दंड सुनाया गया था । ‘चले जाव’ आंदोलनमें १४.८.१९४२ को उसने पालघरके मामलेदार कार्यालयपर चार सहस्र जनसमुदाय लेकर रोषयात्रा निकाली । इस रोषयात्रापर हुई गोलीबारीमें पागधरे मारा गया ।

शंकर दादाजी महाले


चौथी कक्षातक पढा केवल १७ वर्षका मिल मजदूर । ९, १० तथा ११.८.१९४२ इन तीन दिनोंमें नागपुरमें आंदोलकोंने हडताल कर सभाओंका आयोजन कर शासकीय कार्यालय तथा पुलिस थानोंपर रोषयात्राएं निकाली । इन आंदोलकोंपर शासनद्वारा किए गए गोलीबारीमें अनेकोंको हौतात्म्य प्राप्त हुआ । शंकर महालेको एक पुलिस चपरासीकी हत्या करनेके लिए उत्तरदायी ठहराया गया एवं फांसीसे दंडित किया गया ।  १९ जनवरी १९४३ को नागपुरके कारागृहमें उसे फांसी दी गई ।’

(झुंज क्रांतीविरांची) (दैनिक सनातन प्रभात, श्रावण कृ. पंचमी, कलियुग वर्ष ५१११ (११.८.२००९))

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