पंजाबशार्दूल सरदार उधम सिंह

ब्रिटिश साम्राज्यका दृढ शत्रु

५ जून १९४० लंदनका ओल्ड बेली न्यायालय । न्यायाधीश अ‍ॅटकिन्सनके सामने लगभग चालीस वर्षकी अवस्थाका हृष्ट-पुष्ट एक हिंदुस्थानी बंदी बडे अभिमानसे अपना वक्तव्य पढ रहा था । न्यायधीशके दंड सुनानेके पूर्वका यह उसका अंतिम वक्तव्य था । उसने कहा, ‘‘ब्रिटिश साम्राज्यवादके हिंदुस्थानमें मैंने  जनताको दाने-दानेके लिए मरते हुए देखा है । अमृतसरके जलियांवाला बागमें जनरल डायर और माइकल ओडवायरके आदेशपर किए हुए क्रूर हत्याकांडका दृश्य मैं आज भी नहीं भूला हूं । इन्हीं घटनाओंसे मैंने ब्रिटिश साम्राज्यके विरुद्ध प्रतिशोध लेनेकी मन-ही-मन शपथ ली थी । ओडवायरका वध करके यदि मैं यह प्रतिशोध न लेता, तो हिंदुस्थानके नामको कलंक लग जाता ! तुम्हारे १०, १५ अथवा २० वर्षोंके कारावासका अथवा मृत्युदंडका मुझे भय नहीं । वृद्धावस्थातक ऐसे जीनेसे क्या लाभ,  जिसमें कोई उद्देश्य ही न हो । अपने उद्देश्यपूर्तिके लिए, मरनेमें ही खरा पुरुषार्थ है, फिर यह कार्य युवावस्थामें ही क्यों न हो ! अपने देशके सम्मानकी रक्षाके लिए अपने प्राणोंकी आहुति देनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, यह तो मेरे लिए गौरवकी बात है !”

उसका वक्तव्य २० मिनट चला । ब्रिटिश शासनद्वारा हिंदुस्थानपर किए जा रहे अत्याचारोंका ऐसा स्पष्ट वर्णन सुनना न्यायाधीशको भी असह्य हुआ । निवेदन समाप्त हुआ, तब न्यायाधीश इतने क्रोधित थे कि मृत्युदंड (फांसी) सुनाते समय सिर पर काली टोपी चढाए बिना, ही उन्होंने उस बंदीके वक्तव्यके प्रकाशनपर प्रतिबंध लगाया दिया और दंड सुनाने लगे । इतनेमें उनके पास खडे किसी अधिकारीने उनके सिर पर काली टोपी रखी, फिर उन्होंने बंदीसे कहा,  ‘तुम्हें मैं मृत्युदंड सुनाता हूं !’

इस महापराक्रमी बंदीका नाम था उधम सिंह

पंजाबशार्दूल सरदार उधम सिंहका जन्म पटियाला जनपदके सुनाम गांवमें २८ दिसंबर १८९९ को हुआ । १९१९ के जलियांवाला बाग हत्याकांडके वे प्रत्यक्ष दर्शी थे । इस सभामें वह स्वयंसेवकके रूपमें पानी देनेकी सेवा कर रहे थे । गोलियां चलनेपर उनके हाथमें भी गोली लगी और वे धरतीपर गिर पडे; परंतु अपने देशबांधवोंकी कारुणिक चीत्कारें सुनकर वे उन्हें पानी देनेके लिए पुनः उठे । ३७३ निरपराध लोगोंको मारनेवाले और १५०० से भी अधिक लोगोंको आहत करनेवाले इस हत्याकांडका आदेश उस समयके पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओडवायरने दिया था । तभीसे उधम सिंहके मनमें प्रतिशोधकी अग्नि धधक रही थी ।

२१ वर्षोंके पश्चात् हिंदुस्थानका कलंक अपने रुधिरसे धो दिया

सरदार उधम सिंह कुछ समय भगतसिंहके साथ थे । उस समय उनके पास शस्त्रास्त्र और विस्फोटक (गोला-बारूद) मिले । उस प्रकरणमें उन्हें ५ वर्षोंका कारावास भी हुआ था । कारागृहसे छूटते ही वे १९३३ में वे इंग्लैंड गए । इसी कालावधिमें उन्होंने हिंदुस्थानसे इंग्लैंड लौटे ओडवायरका वध करनेका दृढ निश्चय किया । इसके लिए उन्होंने ओडवायरसे मित्रता बढाई । यह मित्रता इतनी गहरी थी कि १९४० में मृत्युपूर्व ओडवायरने डेवॉनशायरके अपने घरपर उन्हें चाय-पानीके लिए  आमंत्रित किया था और उन्होंने इस आमंत्रणको सहर्ष स्वीकार भी किया  ।

इस समय वे ओडवायरको मार सकते थे; परंतु उन्हें तो ओडवायरका प्रतिशोध सार्वजनिक स्थानपर तथा सबके सामने लेना था । इसलिए उन्होंने ओडवायरको उसके घरमें मारना उचित नहीं समझा ! १३ मार्च १९४० को जहां मदनलाल ढींगराने कर्जन वायलीका वध किया था, उसी कॅक्स्टन हॉलमें शामको एक सभा थी । भारतमंत्री लॉर्ड जेटलैंड सभाके अध्यक्ष स्थानपर थे । सभामें भाषण करनेके लिए पर्सी साईक्स, मायकेल ओडवायर आदि मान्यवर लोग आए थे । सबका भाषण समाप्त होते ही उधम सिंह आगे बढे और तीन गज दूर रुककर उन्होंने प्रथम पंक्तिमें बाई ओर बैठे ओडवायरपर दो गोलियां चलायीं । वह वहीं ढेर हो गया । उसके पश्चात् दो-दो गोलियां लॉर्ड जेटलैंड,  लॉर्ड लैमिंगटन और सर लुई डेनको लगीं; परंतु वे सब केवल आहत हुए ।

फांसीसे विवाह

उधम सिंहको पकड लिया गया । कारागृहसे जोहलसिंह नामके मित्रको भेजे हुए पत्रमें वे लिखते हैं, ‘‘मुझे मृत्युका भय कभी भी नहीं लगता । मैं शीघ्र ही फांसीसे विवाह करनेवाला हूं । मेरे सर्वोत्तम मित्रको (भगतसिंह) मुझे छोडकर गए हुए १० वर्ष हो गए । मेरी मृत्युके उपरांत उससे मेरी भेंट होगी । वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा है ।” इन्हीं दिनों कारागृहमें कुछ अन्याय होनेके कारण उन्होंने ४२ दिन अन्नत्याग भी किया था । अपेक्षानुसार उधम सिंहको मृत्युदंड सुनाया गया । सुनकर उन्होंने सरदार भगतसिंहको आदर्श मानकर तीनबार ‘इंकलाब जिंदाबाद !’ यह घोषणा की और ब्रिटिश न्यायालयके प्रति तुच्छता तथा तिरस्कार दिखाने हेतु न्यायालयपर थूंक दिया ! ३१ जुलाई १९४० को पेंटनवील कारागृहमें उन्हें फांसी दे दी गई ।

व्यक्तिगत प्रतिशोध वर्ष-दो वर्षोंमें लिया जा सकता है; परंतु राष्ट्रका प्रतिशोध अनेक वर्षोंके उपरांत भी लिया जा सकता है । प्रखर देशभक्त तो केवल उस अवसरकी प्रतीक्षा करते हैं । २१ वर्षोंके उपरांत भी अपने राष्ट्रके अपमानका प्रतिशोध लेनेके लिए सच्चे भारतीय देशभक्त अपने प्राणोंपर भी खेल जाते हैं, यह उधम सिंहने सारे विश्वको दिखा दिया ।

संकलक : श्री. संजय मुळ्ये, रत्नागिरी

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