रुद्रावतार मदनलाल धिंग्रा


सारणी


        इंग्लैंडकी राजधानीमें ही एक उच्चपदस्थ अंग्रेजका वध करनेवाले हिंदुस्थानके इस पहले क्रांतिकारी सुपुत्र हुतात्मा मदनलाल धिंग्रापर भारत माता तथा सर्व भारतीयोंको सदा गर्व रहेगा ! राष्ट्रके लिए प्राणार्पण करनेवाले अपने क्रांतिकारियोंका बलिदान व्यर्थ न जाए, उनके स्वप्नको साकार करनेके लिए हम आजीवन प्रयास करते रहेंगे !’’ हे भारतवासियों! हिंदुस्थानी शासन सदा ही क्रांतिकारियोंकी उपेक्षा करता आया है; परंतु आप उनके प्रति कृतघ्न न हों !

धिंग्राजीके कुछ पराक्रम

        सिंहकी गुफामें जाकर उसकी अयाल खींचनेवाले नरवीरको क्या किसी भूमिने जन्म दिया है ? हां ! ऐसे नरवीरको इस भारतभूमिने १८ सितंबर १८८३ को जन्म दिया है और उसका नाम था मदनलाल धिंग्रा !

        पंजाबके अमृतसरमें जन्मे मदनलालजी उच्च शिक्षाके लिए १० जून १९०६ को इंग्लैंड पहुंचे । इसके अगले माहमें स्वतंत्रतावीर सावरकरजी भी लंदन पहुंचे । धिंग्रजीका परिचय सावरकरजीसे हुआ और वे सावरकरजीके क्रांतिकार्यमें सहभागी हुए । सावरकरजीकी प्रेरणासे वर्ष १८५७ के स्वतंत्रतासंग्रामका सुवर्ण महोत्सव लंदनमें मनाया गया । इस महोत्सवके उपलक्ष्यमें बनाई गई ‘वीरस्मृति मुद्रा’ (बैज) बडे अभिमानसे अपने डगलेपर (कोट) लगाकर धिंग्राजी महाविद्यालय गए । वहां एक अंग्रेजद्वारा वह मुद्रा डगलेसे खींचते ही वे छुरा लेकर उसपर झपटे ।

        क्रांतिकारियोंका आश्रयस्थान बने ‘भारत भवन’में (‘इंडिया हाऊस’)में एक दिन ध्वमसंबंधी (बम) एक रसायन कांचके पात्रमें उबल रहा था । वह पात्र यदि शीघ्र ही नीचे नहीं उतारा जाएगा तो स्फोट होगा, यह ध्यानमें आतेही उन्होंने वह पात्र केवल हाथोंसे पकडकर नीचे उतारा । उससे उनके हाथोंकी चमडी जल गई; परंतु उनके मुखसे आह तक नहीं निकली ! अन्य एका प्रसंगमें ‘हिंदु भी अत्यंत शूर होते हैं’, यह सिद्ध करनेके लिए उन्होंने एक टाचणी (पिन) अपने हाथके तलवेमेंसे आरपार निकाली !

अन्यायका प्रतिशोध लेनेके लिए अधीर धिंग्राजी

        ११ अगस्त १९०८ को खुदीराम बोसजी और उनके पीछे-पीछे कन्हैयालालजी दत्त एवं सत्येंद्रनाथजी बोसको फांसीपर चढा दिया गया, तब धिंग्राजी कृतिके लिए अधीर हुए और उन्होंने स्वा. सावरकरजीको गंभीरतासे पूछा, ‘हौतात्म्य स्वीकारनेका समय आ गया है क्या ?” इसपर सावरकरजीने वह विख्यात उत्तर दिया, ‘‘किसी हुतात्माका वैसा निश्चय हुआ है और इसके लिए यदि वह तत्पर है, तो हौतात्म्यका समय आ ही गया होगा !” तदनंतर हिंदुस्थानसंबंधी मंत्रालयमें काम करनेवाले और लंदनमें आए हुए हिंदी विद्यार्थियोंको कष्ट देनेवाले कर्जन वायलीका वध करना निश्चित हुआ ।

        उसके लिए धिंग्राजीने ‘रिवॉल्वर’ साथ रखनेकी अनुज्ञप्ति ले ली । उसको कैसे चलाना है, यह सिखानेवाले वर्गमें (क्लास) प्रवेश लेकर शीघ्र ही उन्होंने १८ फीटकी दूरीका लक्ष्यभेद अचूकतासे करनेका कौशल्य प्राप्त किया । इसी अवधिमें सावरकरजीके ज्येष्ठ भ्राता श्री. बाबारावजीने ४ कविताएं प्रसिद्ध की, जिसके अपराधमें उन्हें हिंदुस्थानमें बंदी बनाया गया । स्वा. सावरकरजीको भी विधिवक्ताका (‘बॅरिस्टर’) अधिकारपत्र देना नकार दिया । अब इन सारी घटनाओंका प्रतिशोध लेनेके लिए  धिंग्राजी अवसर ढूंढने लगे

        १ जुलाई १९०९ को लंदनमें ‘नैशनल इंडियन असोसिएशन’ संस्थाका वार्षिक समारोह आयोजित किया था । यह संस्था इंग्लैंडमें आए हुए हिंदी युवकोंको ‘राजनिष्ठा’का पाठ पढानेका प्रयास करती थी । इस समारोहमें सहभागी होनेका निर्णय धिंग्राजीने ले लिया । उस शाम काले रंगका सामान्य सूट उन्होंने पहना, दो भरे हुए ‘रिवॉलवर’ और एक कटार उन्होंने अपनी जेबमें रख ली । सुनहरी चौखटके उपनेत्र पहनकर, नीले आकाशी रंगकी पंजाबी पगडी पहनकर वे समारोहस्थलपर पहुंचे । कर्जन वायली इस संस्थाका कोषाध्यक्ष भी था । धिंग्राजीने पहलेसे ही उसका स्नेह संपादन किया था ।

कर्झन वायलीका वध

        रात्रि ११ बजे समारोह समाप्त होनेपर सब लोग निकलने लगे । कर्झन वायली भी द्वारकी ओर बढने लगा, तभी धिंग्राजी आगे आए । वे दोनों बातें करते-करते सभागृहके मुख्य द्वारके बाहर (पहला माला) आए । धिंग्राजी जानबूझकर धीमें स्वरमें बोलने लगे । इसकारण बात सुननेके लिए कर्जन वायलीने अपना दांया कान उनके मुखके पास लिया । एक क्षणका भी विलंब न करते हुए धिंग्राजीने उसकी मुद्रापर नेम साधकर दो गोलियां चलाइं । वायली दो-चार हाथ पीछे हटा, तभी उन्होंने दो और गोलियां चलार्इं । लडखडाता हुआ कर्जन वायली भूमिपर मृत गिर पडा !

        २३ जुलाईको धिंग्राजीको फांसीका दंड सुनाया गया । १७ अगस्त १९०९ को उन्हें फांसीपर चढा दिया गया । उनका मृतदेह भी अग्निसंस्कारके लिए मित्रोंको न देते हुए पेंटनवील कारागृहमें गाड दिया । माता-पिता, पत्नी एवं पुत्रको हिंदुस्थानमें ही छोडकर आए हुए धिंग्राजीकी आयु केवल २५ वर्ष थी ! इंग्लैंडकी राजधानीमें ही एक उच्चपदस्थ अंग्रेजका वध करनेवाले हिंदुस्थानके इस पहले क्रांतिकारी सुपुत्रपर भारत माता तथा सर्व भारतीयोंको सदा गर्व रहेगा !

संकलक : श्री. संजय मुळ्ये, रत्नागिरी

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