प्रभु श्रीरामजीद्वारा देवी अहिल्‍या का उद्धार 

ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी जिसका नाम अहिल्‍या था । ब्रह्माजी ने अहिल्‍या को सबसे सुंदर स्‍त्री बनाया था । सभी देवता उनसे विवाह करना चाहते थे । अहिल्‍या से विवाह करने के लिए ब्रह्माजी ने एक शर्त रखी । जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहिल्‍या का वरण करेगा, ऐसे उन्‍होंने कहां । Read more »

सभी में ब्रह्म देखनेवाले संत एकनाथ महाराज !

हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध विधि का बडा महत्त्व बताया गया है । एक बार संत एकनाथ महाराज श्राद्ध कर्म कर रहे थे । पूर्वजों के लिए उनके घर में स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा था । उसी समय कुछ भिखारी उनके दरवाजे से गुजर रहे थे । एकनाथ महाराज जी के घर से स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों की सुगंध सर्व ओर फैल रही थी । भिखारियों को भी वह सुगंध आई । Read more »

प्रभु श्रीराम की पितृभक्ति ! 

राजा दशरथ ने अयोध्या के सिंहासन पर श्रीराम का राजतिलक करने का निर्णय लिया था । राज्याभिषेक से कुछ समय पूर्व रानी कैकेयी ने दशरथ से दो वर मांगे । रानी कैकयी ने दो वरों में से एक वर से भरत का राज्याभिषेक और दूसरे से प्रभु श्रीराम को १४ वर्ष के वनवास की मांग की । Read more »

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण ! 

कुरुक्षेत्र को विशाल सेनाओं के आने-जाने की सुविधा के लिए तैयार किया जा रहा था । बडे हाथी पेडों को उखाडने और जमीन साफ करने के काम में लगाए गए थे । उनमें से एक पेडपर एक चिडिया का घोसला था जिसमें वह चिडिया अपने चार बच्चों के साथ रहती थी । जब उस पेड को हाथी ने उखाडा तो उस छोटी सी चिडिया का घोंसला जमीन पर गिर गया । Read more »

संत ज्ञानेश्वरजी का योग सामर्थ्य !

संत ज्ञानेश्वर अपने भाई-बहन के साथ शुद्धि पत्र लाने के लिए महाराष्ट्र के पैठण गांव पहुंचे । वहां वे एक ब्राह्मण के घर में निवास कर रहे थे । इस लिए वहां के पुरोहितों ने उस ब्राह्मण का बहिष्कार कर दिया था । संत ज्ञानेश्वरजी जिस ब्राह्मण के घर में रहते थे, उस ब्राह्मण के पिता का श्राद्ध था । कोई भी पुरोहित उस ब्राह्मण के घर श्राद्ध करने के लिए नहीं जा रहा था । Read more »

अक्‍कलकोट के श्री स्‍वामी समर्थ ! 

अक्‍कलकोट के श्री स्‍वामी समर्थ ही नृसिंह सरस्‍वती हैं अर्थात दत्तावतार हैं । स्‍वामी समर्थ ने अपने भक्‍तों को सुरक्षा का वचन दिया है । वह कहते थे, ‘डरो नहीं, मैं तुम्‍हारे साथ हूं ।’ उनका यह वचन प्रसिद्ध है । उनके इस वचन की अनुभूती उनके भक्‍त आज भी लेते है । Read more »

गयासुर को मुक्‍ति देनेवाले भगवान श्री विष्‍णु ! 

गयासुर को ब्रह्माजी से भी वरदान मिला था कि उसकी मृत्‍यु संसार मे जन्‍म लेनेवाले किसी भी व्‍यक्‍ती के हाथों नही होगी । अब तो वरदान पाने के बाद गयासुर की शक्‍ती तो बढ गयी । उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया । गयासुर को मुक्‍ति कैसे मिली इसकी कहानी सुनते है । Read more »

श्रद्धा की कसौटी ! 

एक साधु महाराज श्री रामायणजी की कथा सुनाते थे । उनकी कथा सुनकर लोग आनंद विभोर हो जाते थे । साधु महाराज का एक नियम था, प्रतिदिन वह कथा प्रारंभ करने से पहले हनुमानजी को कथा सुनने के लिए आमंत्रित करते थे । एक महाशय ने साधु महाराज से पूछा, ‘महाराज, आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं, उसपर क्‍या हनुमानजी वास्‍तव में विराजमान होते हैं ?’ Read more »

लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा का वध ! 

हमे पता है कि प्रभु श्रीराम विष्‍णु के अवतार और मर्यादा पुरुषोत्तम थे । उनके अवतार काल मे उन्‍होंने अनेक राक्षसों का वध किया । श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण ने शूर्पणखा नामक राक्षसी का वध किया । अब हम यह कथा सुनेंगे । Read more »

सत्‍यनिष्‍ठ राजा हरिश्‍चंद्र ! 

महाराज त्रिशंकु के पश्‍चात हरिश्‍चंद्र अयोध्‍या के राजा बने । महाराज हरिश्‍चंद्र सत्‍यवादी थे । उन्‍होंने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला था । वह बहुत बडे धर्मात्‍मा भी थे । वह अपना वचन पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते थे । सत्‍यवादी और धर्मात्‍मा राजा हरिश्‍चंद्र की कीर्ति चारों ओर फैली हुई थी । इंद्रदेव ने महर्षि विश्‍वामित्र को हरिश्‍चंद्र की परीक्षा लेने के लिए कहा । Read more »