प्रभु श्रीराम की पितृभक्ति ! 

प्रभु श्रीराम

यह रामायण का एक प्रसंग है ।

राजा दशरथ ने अयोध्या के सिंहासन पर श्रीराम का राजतिलक करने का निर्णय लिया था । राजा दशरथ के इस निर्णय से उनकी रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी अति प्रसन्न हुईं ।

रानी कैकेयी के महल मे मंथरा नामक एक दासी सेवा करती थी । श्रीराम के राजतिलक की वार्ता सुनने पर उसने कैकेयी के मन मे जहर भर दिया । मंथरा कैकेयी से बोली, ‘श्रीराम के राजा बनने से भरत उनका सेवक बन जाएगा और भरत को राजा की आज्ञा का पालन करना पडेगा । आप राजा से भरत के लिए राज्याभिषेक और राम के लिए १४ वर्षाें का वनवास, ये दो वर मांग लीजिए ।’

इधर श्री राम के राज्याभिषेक की तैय्यारी उत्साह से चल रही थी । राज्याभिषेक का मंगल दिन आया । राज्याभिषेक से कुछ समय पूर्व रानी कैकेयी ने दशरथ से दो वर मांगे । एक बार राजा दशरथ को कैकयी ने युद्ध में सहायता की थी तब राजा दशरथ ने प्रसन्न होकर कैकेयी को २ वर मांगने हेतु कहा था; परंतु उस समय कैकयी ने राजा से कहा कि समय आने पर वे दो वर मांग लेंगी । कैकयी ने वही दो वर मांगे । राजा ने वर पूरे करने का वचन दिया हुआ था । इसलिए वह वचनबद्ध थे । रानी कैकयी ने दो वरों में से एक वर से भरत का राज्याभिषेक और दूसरे से प्रभु श्रीराम को १४ वर्ष के वनवास की मांग की । राम का वनवास और उनका वियोग इसकी कल्पना भी राजा नहीं कर सकते थे ।

उसी समय अयोध्या के प्रधान सुमंत पहुंचे । उन्होंने राजा को कहां ‘राजन्, राज्याभिषेक की पूरी तैय्यारी हो गई है ।’ राजा दशरथ ने सुमंत से श्रीराम को तुरंत लाने के आज्ञा दी ।

सुमंत का संदेश मिलते ही श्रीराम दशरथजी के महल पहुंचे । वहां पर श्रीराम ने देखा कि राजा दुखी, उदास और चिंतित हृदय से खडे हैं । राजा को ऐसी स्थिती में देखकर श्रीराम भी चिंतित हो गए । उन्होंने रानी कैकेयी को राजा अर्थात पिता के दुखी होने का कारण पूछा ।

कैकेयी ने कहा, “यदि आप राजा के मन की बात का पूरी तरह पालन करोगे, तब ही मैं तुम्हे राजा के मन की बात बताऊंगी ।” कैकेयी के शब्दों से श्रीराम व्यथित हो गए । उन्हें लगा कि उनके पिता को उनकी पितृभक्ति पर संदेह है ।

श्रीराम माता कैकेयी से बोले, ‘‘देवी ! मेरे विषय में इस प्रकार के वचन ना बोले । पिता की आज्ञा से मैं आग में भी कूद जाऊंगा । मेरे दाता, गुरु और पिता ने आज्ञा दी तो मै जहाल विष का प्राशन करूंगा अथवा समुद्र में भी कूद जाऊंगा ।

राजा दशरथ की आज्ञा उनके अथवा रानी कैकेयी के मुख से सुनने से पहले ही श्रीराम ने प्राण अर्पण करने की भाषा बोली थी । इससे पता चलता है कि उनकी पितृभक्ति कितनी निष्ठावान थी ।

अपने पिता राजा दशरथ को दुखी देखते ही श्रीराम ने स्वयं के संदर्भ मे संदेह व्यक्त किया । अंत मे श्रीराम ने कैकेयी से कहा, ‘जिन्होंने मुझे जन्म दिया है, जिन्हें मैं प्रत्यक्ष देवता मानता हूं, उनकी आज्ञा का पालन मैं अवश्य करूंगा ।

वनवास जाने से पूर्व श्रीराम ने अपने पिता दशरथजी को पिता के आज्ञा का पालन करने का महत्त्व बताया । कहा,‘ हे तात, देवताओं ने भी पिता को ही देवता माना है । इसलिए देवता समझकर ही मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा ।

कैकेयी ने राजा दशरथ की आज्ञा श्रीराम को बतायी, ‘तुम्हें १४ वर्ष के लिए वनवास जाना है, यही तुम्हारे पिता की आज्ञा है ।’

कैकेयी से यह जानने के पश्चात कोई भी प्रश्न पूछे बिना श्रीराम ने अपनी संपत्ती, एैश्वर्य और पृथ्वी के साम्राज्य का त्याग कर दिया और एक व्रताचरण के रूप में वनवास चले गए । इस एक घटना के कारण श्रीराम जी की पितृभक्ति आकाश से बडी हो गई । आज भी यह घटना पूरे विश्व को प्रेरणा देती है ।