श्रीकृष्ण भक्त : संत मीराबाई

जोधपुर के राठौर रतनसिंह जी की एकमात्र पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था । मीराबाईजी के बालमन में श्रीकृष्ण की ही छवि बसी थी । Read more »

प.पू. श्री गजानन महाराज (शेगाव, महाराष्ट्र) : प्रगट काल : इ.स. १८७८-१९१०

अनंत कोटि ब्रह्मांडनायक महाराजाधिराज योगिराज परब्रह्म सच्चिदानंद भक्तरक्षक शेगाव (महाराष्ट्र)-निवासी समर्थ सद्गुरु प.पू. श्री गजानन महाराजजी के जीवन चरित्र का कालखंड बत्तिस वर्ष का है । इस काल में महाराजजी ने अनेक चमत्कार किए । Read more »

श्री गोरक्षनाथ (खिस्ताब्द १००० से ११००)

श्री मच्छिंद्रनाथ तीर्थयात्रा करते-करते अनेक दुःखी, पीडितों को सुख का मार्ग दिखाने लगे, उनके दुःख दूर करने लगे । उनके नाम का जयघोष होने लगा । वे चंद्रगिरी गए । Read more »

श्री संत चैतन्य महाप्रभु (वर्ष १४८६ से १५३३)

बंगाल में गंगा नदी के तटपर नवद्वीप गांव में नीम के वृक्ष की पर्णकुटी में वर्ष १४८६ फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को जगन्नाथ एवं शुचीदेवी को पुत्र हुआ । उसका नाम विश्वंभर रखा गया ।
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श्री संत गोरा कुम्हार (इ.स. १२६७ ते १३१७)

तेरेडोकी गांवमें गोरा कुम्हार नामक एक विठ्ठलभक्त था । कुम्हारका काम करते समय भी वह निरंतर पांडुरंगके भजनमें तल्लीन रहता था । पांडुरंगके नामजपमें वह सदा मग्न होता था । एक बार उसकी पत्नी अपने इकलौते छोटे बच्चेको आंगनमें रखकर पानी भरने गई । Read more »

संत जनाबाई

संत जनाबाईने अपने अभंगोंमें अपना नाम ‘दासी जनी’, ‘नामदेवकी दासी’ तथा ‘जनी नामयाची’ ऐसा लिखा है । वह संत नामदेवजीके घर दासीके रूपमें कैसे आई ? Read more »

संत नामदेव

एक बार संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव दोनों एक साथ तीर्थयात्रापर निकले । वाराणसी, गया, प्रयाग घूमते-फिरते वे औंढ्या नागनाथ पहुंचे । Read more »