जानिए, क्या होता है कुंभमेला ?

कुंभमेला विश्‍व का सबसे बडा धार्मिक पर्व है ! कुंभमेला भारत की सांस्कृतिक महानता का केवल दर्शन ही नहीं, अपितु संतसंग प्रदान करनेवाला आध्यात्मिक सम्मेलन है । कुंभपर्व के उपलक्ष्य मेें प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्‍वर-नासिक, इन चार क्षेत्रों में प्रति १२ वर्ष संपन्न होनेवाले इस पर्व का हिन्दू जीवनदर्शन में महत्त्वपूर्ण स्थान है । कुंभमेले की आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक महिमा अनन्य है । गुरु को राशिचक्र भोगने में १२ वर्ष की कालावधि लगती है, जिससे प्रत्येक १२ वर्षों के उपरांत कुंभयोग आता है । हिन्दू धर्म की दृष्टि से तीन बडे पर्व महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं – गुरु के कुंभ राशि में होने पर ‘कुंभपर्व, सिंह राशि में होने पर ‘सिंहस्थ’, कन्या राशि में होते हुए ‘कन्यागत’ । गंगास्नान, साधना, दानधर्म, पितृतर्पण, श्राद्धविधि, संतदर्शन, धर्मचर्चा जैसे धार्मिक कृत्य करने के लिए करोडों श्रद्धालु यहां पर आते हैं । यह श्रद्धालुओं का पर्व ही है । साथ ही, देवता, ऋषि, संत एवं तैंतीस करोड तीर्थ भी कुंभपर्व में सम्मिलित होते हैं, जो एक अद्वितीय घटना है । ‘हिन्दू-एकता’ कुंभमेले की घोषणा है ।

१. सहस्रों वर्षों की परंपरा एवं हिन्दुओं की सांस्कृतिक एकता का खुला व्यासपीठ !

वेद तथा पुराणों में कुंभमेले का उल्लेख है । नारद पुराण में बताया गया है, ‘कुंभपर्व अति उत्तम होता है ।’ शासकीय कर्मचारी वर्ग एवं अधिकारी वर्ग भी प्रजा के कल्याणार्थ कुंभपर्व महोत्सव में सहभाग लें, ऐसा सामवेद में कहा गया है । कुछ विद्वानों के अनुसार, ईसापूर्व ३४६४ में यह पर्व प्ररंभ हुआ होगा, अर्थात यह सिंधुसंस्कृति से १ सहस्र वर्षपूर्व की परंपरा है । वर्ष ६२९ में चीनी यात्री हुआंगत्संगने भी अपनी पुस्तक ‘भारतयात्रा का वर्णन’में कुंभमेले का वर्णन किया है तथा ‘सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयाग में हिन्दुओं का कुंभपर्व होता है ।’ ऐसा उल्लेख किया है ।

प्रयागराज, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्‍वर- नासिक, इन चार स्थानों पर होनेवाले कुंभमेलों के निमित्तधर्मव्यवस्था द्वारा चार
सार्वजनिक मंच हिन्दू समाज को उपलब्ध करवाए हैं । कुंभमेले के ये चार क्षेत्र चार दिशाओं के प्रतीक हैं । परिवहन के आधुनिक साधनों की खोज होने से पूर्व से ये कुंभमेले लग रहे हैं । उस समय भारत की चारों दिशाओं से एक स्थान पर एकत्रित होना सहजसाध्य नहीं था । इसीलिए ये कुंभमेले भारतीय एकता के प्रतीक एवं हिन्दू संस्कृति अंतर्गत समानता के सूत्र सिद्ध होते हैं ।

२. हिन्दुओं का विश्‍व का सबसे बडा धार्मिक पर्व !

कुंभमेला अर्थात हिन्दुआें का सांघिक और आध्यात्मिक बल बढानेवाला पर्व । कुंभमेले में सर्व पंथ तथा संप्रदायों के साधु-संत, सत्पुरुष तथा सिद्ध पुरुष सहस्रों की संख्या में एकत्रित होते हैं । करोडों श्रद्धालु भी कुंभपर्व में देवदर्शन, गंगास्नान, साधना, दानधर्म, तिलतर्पण, श्राद्धविधि, संतदर्शन इत्यादि धार्मिक कृत्य करने के लिए जाते हैं । करोडों के जनसमूह की उपस्थिति में संपन्न होनेवाले कुंभक्षेत्र के मेले हिन्दुओं का विश्‍व का सबसे बडा धार्मिक पर्व है ।

३. हिन्दू धर्म के विविध पंथ तथा संप्रदायों की एकता का मेला !

कुंभमेलों की परंपरा भले ही वेदकालीन हो; परंतु वर्तमानकाल में प्रचलित कुंभमेलों को आद्यशंकराचार्यजी ने संत समाज में प्रतिष्ठा प्रदान की । आद्य शंकराचार्यजी ने संन्यासी संघों का आवाहन करते हुए कहा कि ‘धर्म का निरंतर प्रचार तथा श्रद्धालुआें का एकत्रीकरण करते रहने के लिए प्रत्येक बारह वर्ष उपरांत कुंभक्षेत्र में एकत्र हों ।’ उन्हींकी प्रेरणा से कुंभमेलों में हिन्दू धर्म के विविध पंथ तथा संप्रदाय के साधुसंतों ने भाग लेना प्रारंभ किया । तबसे कुंभमेले में सहभागी साधुसंत देश, काल एवं परिस्थिति के अनुरूप लोकहित की दृष्टि से धर्म की रक्षा तथा धर्म का प्रसार करने का कार्य कर रहे हैं । अभी कुंभमेले में शैव, वैष्णव, दत्त, शक्ति आदि संप्रदायों के साथ ही जैन, बौद्ध तथा सिख पंथों के अनुयायी भी सहभागी होेते हैं ।

४. राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनी धार्मिक यात्रा !

भारतवर्ष के विभिन्न वर्ण, जाति, पंथ, प्रांत तथा संप्रदाय के श्रद्धालुआें को एकत्र लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य कुंभमेलों ने किया । कुंभमेले के निमित्त कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कटक तक करोडों करोड श्रद्धालुजन स्नानादि उपासना के लिए अंतःप्ररणा से से एकत्र होते हैं । उत्तर भारत में हरिद्वार, पूर्व भारत में पश्‍चिम भारत में उज्जैन तथा दक्षिण भारत में नासिक-त्र्यंबकेश्‍वर में कुंभमेला होने के कारण उस उस भाग के हिन्दुआें को एकत्र होने का अवसर मिलता है । उत्तर तथा दक्षिण भारत की एकता और अभिन्नता के अलौकिक दर्शन कुंभमेलों में होते हैं । राष्ट्रीय बंधुभाव बढानेवाली प्राचीन तथा काल से चली आ रही यह धर्मपरंपरा आज भी अक्षुण्ण है । भाषा, वेशभूषा और रीतियों में भिन्नता होने पर भी श्रद्धालुआें की कुं भमेलों के प्रति श्रद्धा ही राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ।

५. जातिव्यवस्था वैदिक नहीं, यह सिद्ध करनेवाला कुंभमेला !

‘वेदकाल में जातिव्यवस्था नहीं थी । कुंभमेले में सभी लोग एक ही घाट पर स्नान करते थे । आज भी जारी यह परंपरा वेदकालीन है ।.’ – श्री. विजय सोनकर शास्त्री, भूतपूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय पिछडा एवं दलित जनजाति विकास महामंडल (‘हिन्दूबोध’, जून २००२)

६. करोडों श्रद्धालु यही व्याप्ति

प्रयाग के महाकुंभमेले में न्यूनतम १० करोड श्रद्धालु गंगास्नान के लिए आते हैं । जबकि हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्‍वर-नासिक के कुंभमेलों में ५ करोड श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं । प्रयाग के कुंभमेले के श्रद्धालुओं की उपस्थिति ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स’में पंजीकृत (दर्ज) हुई है । इस कारण विश्‍व में कुंभमेले के प्रति आकर्षण जागृत हुआ तथा विविध देशों के नागरिक भी इस मेले में बडे उत्साह से सम्मिलित होते हैं ।

अ. केवल पंचांग के माध्यम से १२ वर्षों में एक बार आनेवाले पवित्र कुंभमेले की जानकारी पूर्व में ही देकर करोडों हिन्दुओं को बिना निमंत्रण के एकत्रित कर पानेवाला प्राचीन हिन्दू धर्म !

‘वर्ष १९४२ मेें भारत के वॉईसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने पं. मदनमोहन मालवीय के साथ प्रयाग का कुंभपर्व विमान से देखा । वे लक्षावधि (लाखों) श्रद्धालुओं का जनसागर देखकर आश्‍चर्यचकित हो गए । उन्होंने उत्सुकतावश पं. मालवीय से प्रश्न किया, ‘‘इस कुंभमेले में जनसमूह को एकत्रित करने के लिए आयोजकों को अत्यधिक परिश्रम करना पडा होगा न ? आयोजकों को इस कार्य के लिए कितना व्यय (खर्च) करना पडा होगा ?’’ पं. मालवीय ने उत्तर दिया, ‘‘केवल दो पैसे !’’ यह उत्तर सुनकर लॉर्ड लिनलिथगो ने पं. मालवीय से प्रतिप्रश्न किया, ‘‘पंडितजी, आप विनोद (मजाक) कर रहे हैं ?’’ पं. मालवीय ने थैली से पंचांग निकाला तथा वह लॉर्ड लिनलिथगो के हाथ में देते हुए बोले, ‘‘इसका मूल्य केवल दो पैसे है । इससे जनसामान्य को कुंभपर्व के पवित्र कालखंड की जानकारी मिलती है । उसके अनुसार सब जन उस समय स्नान के लिए स्वयं उपस्थित रहते हैं । किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत निमंत्रण नहीं दिया जाता ।’’ (‘केशव संवाद’, २७.७.२००७)

७. कुंभमेले में श्रद्धालुओं की श्रवणभक्ति को प्रेरणा

देनेवाले धर्म, अध्यात्म आदि विषयों पर साधु-संतों का सरस मार्गदर्शन !

कुंभमेले में संतदर्शन समारोह श्रद्धालुओं की दर्शनभक्ति को देता है, जबकि साधु-संतों के धर्म, अध्यात्म, रामायण, भागवत इत्यादि विषयों पर सरस व्याख्यान श्रद्धालुओं की श्रवणभक्ति को प्रेरणा देते हैं । कुंभस्थल पर लगभग १०,००० मंडपोंमें से अधिकांश मंडपों में प्रतिदिन धार्मिक विषयों पर मार्गदर्शन होता रहता है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘कुंभपर्वकी महिमा