‘जंकफूड’ तथा चॉकलेट खाने के दुष्परिणाम

        काली (कष्टदायक) शक्ति आकर्षित करने वाले ‘फास्ट फूड’ अथवा ‘जंकफूड’ जैसे तमोगुणी पदार्थों के निरंतर सेवन से व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों की पीडा से ग्रस्त हो जाता है । आधुनिक आहार के शारीरिक दुष्परिणाम केवल इस जन्म में ही भुगतने पडते हैं; परंतु इन के कारण होनवाली अनिष्ट शक्तियों की पीडा जन्म-जन्म तक पीछा नहीं छोडती । यदि आहार तमो प्रधान है तो तम-प्रधान विचारों का जन्म होता है, मन और बुद्धि का संतुलन बिगड़ जाता है । जंक फ़ूड का प्रभाव शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर भी होता है | आइये ‘जंकफूड’ तथा चॉकलेट खाने से हमारे ऊपर क्या प्रभाव होता है यह इस लेख द्वारा समझ लेते हैं ।

१. स्वास्थ्य की दृष्टि से आधुनिक खाद्य पदार्थ क्यों निरुपयोगी हैं ?

        आजकल अनेक बच्चों को पिज्जा, बर्गर, चिप्स जैसे पदार्थ अच्छे लगते हैं । इसलिए अपने माता-पिता से हठ कर वे पदार्थ मांगकर खाते हैं । इन पदार्थों को ही ‘फास्ट फूड’ कहते हैं । ये सर्व पदार्थ भारतीय नहीं, अपितु पाश्चात्य देशों से हमारे देश में आए हैं । पश्चिमी लोगों के पदचिह्नों पर चलने के कारण आजकल हमारे हिंदुस्थान में भी ‘फास्ट फूड’ नाम की भोगवादी संस्कृति का प्रसार हो रहा है ।‘फास्ट फूड’ बाह्यतः स्वाद में चटपटे लगते हैं, परंतु वे तमोगुणी होते हैं । उनके शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दुष्परिणाम होते हैं ।

२. जंकफूड से क्या हानि होती है ?

अ. रक्तचाप बढना

निरुपयोगी अन्नपदार्थों के अनेक दुष्परिणाम होते हैं । ऐसे अतिवसायुक्त पदार्थों के कारण रक्त में स्निग्धाम्ल बढता है । स्निग्धाम्ल और अतिरिक्त नमक के कारण रक्तचाप बढ सकता है । नमक अधिक मात्रा में खाने से वृक्क को (गुरदे को) हानि पहुंच सकती है । विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे पदार्थों के सतत सेवन का दुष्परिणाम रक्तसंचार पर भी होता है ।

अा. हृदयविकार

जिन बच्चों को ऐसे खाद्यपदार्थों की लत (आदत) लग जाती है और जिन के अभिभावक भी ये पदार्थ अपने बच्चे को खाने देते हैं, ऐसे बच्चों को उनकी आयु के ३० वे वर्ष में ही हृदयविकार होने की आशंका अधिक रहती है ।

इ. ‘जंक फूड’ के कारण वंध्यत्व (बांझपन) बढना

‘जंक फूड’ के सेवन के कारण शरीर में हार्मोन्स का संतुलन बिगड जाता है । इससे विद्यालय-महाविद्यालयों में पढने वाली अधिकांश लडकियां यौवनावस्था में पदार्पण करते-करते ‘पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम’ से ग्रस्त हो जाती हैं । (इस विकार में अंडाशय में अंडे नहीं बन पाते; क्योंकि अंडाशय में अनेक पुटक अर्थात सिस्ट होते हैं ।) इसलिए २५ वें वर्ष में वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने वाली २५ प्रतिशत से अधिक युवतियां किसी-न-किसी रूप में वंध्यत्व से ग्रस्त होती हैं ।’

३. ‘फास्ट फूड’ अथवा ‘जंक फूड’ की अपेक्षा हिंदू

पद्धति से बनाए गए खाद्यपदार्थों का सेवन क्यों करना चाहिए ?

        आजकल झटपट बनने वाले अथवा तैयार मिलने वाले ‘फास्ट फूड’ अथवा ‘जंक फूड’ से हमारे शरीर को पौष्टिक आहार नहीं मिलता । ‘फास्ट फूड’ अथवा ‘जंक फूड’ पचने में भारी होते हैं । इसलिए इन्हें ग्रहण करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य बिगड जाता है, ऐसा अनेक चिकित्सकों ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया है ।

हिंदू पद्धति से बनाए गए पदार्थ (उदा. गेहूं की रोटी, ज्वार की रोटी, सब्जी इत्यादि) सुपाच्य और शरीर का समुचित पोषण करने में उपयुक्त होते हैं, इसलिए ये ही हमारे स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त हैं । प्राकृतिक चिकित्सा (निसर्गोपचार अथवा नैचरोपैथी) पद्धति में यह स्पष्ट कहा गया है कि ‘मूल प्राकृतिक पदार्थों का सेवन करने से शरीर को अधिक मात्रा में लाभ होता है और कृत्रिम अथवा प्रोसेस्ड (संग्रहित करने के लिए जिन पर विशिष्ट प्रक्रिया की जाती है, ऐसे) अन्न पदार्थों का सेवन करने से शारीरिक विकार बढते हैं ।’ हिंदू पद्धति से बनाए गए पदार्थ, ‘नैचरोपेथी’ के समान होते हैं, उदा. रायता और साग ।

४. चॉकलेट है अनेक रोगों की खान !

        अब हमारा संबंध ‘वृक्ष-पंक्तियों से नहीं, अपितु विष-पंक्तियों’ से स्थापित हो गया है ! हमारी संस्कृति में जिसका कोई स्थान नहीं, ऐसी चॉकलेट अनेक रोगों विशेषतः दांतों के अनेक रोगों की खान है । उसमें प्रयुक्त सैक्रीन का शरीर पर उससे भी अधिक भयंकर परिणाम होता है ! ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने भी ‘सैक्रीन’को स्वास्थ्य के लिए, हानिकारक और घातक बताया है । सैक्रीन के कारण कर्क रोग भी हो सकता है । स्वास्थ्य बनाए रखना हो, तो सैक्रीन जैसे पदार्थों से बनाए गए चॉकलेट से दूर रहना ही अच्छा ।

संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ, ‘आधुनिक आहार – हानि,’ भाग २