क्या पुरुषों काे केश एवं दाढी बढानी चाहिए ?

आजकल के स्त्री-पुरुषों के केशभूषा के प्रति अधिकांश समाज का दृष्टिकोण केवल सौंदर्यवर्धन का हो गया है । आजकल केश लम्बे रखना पुरुषों के लिए आम बात हो गर्इ है । यह प्रवृत्ति विशेषतः पॉप और रॉक बैंड के पुरुष सदस्यों में देखने को मिलती है, जिन्हें अपने लम्बे बाल लहराने में आनंद मिलता है और लोग उनकी आँख बंद करके नकल करते हैं ।  दाढी रखने की विविध शैलियां भी हैं, कभी उसकी हल्की सी छँटनी की जाती हैं, तो कभी उनमें शैलियों का निर्माण किया जाता है । सबसे अधिक प्रचलन में है खूँटीदार या गोलाई में दाढ़ी रखना । युवा अधिकतर बकरी दाढी पसंद करते हैं । पुरुषों द्वारा केश बढाना, दाढी और मूंछें बढाना, ऐसे कृत्य सौंदर्यवर्धन की दृष्टि से मनुष्य को अच्छे लगते हों, तो भी उन कृत्यों के द्वारा हम अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों को एक प्रकार से आमंत्रण ही देते हैं । इस लेख में देखते है पुरुषों काे नख, केश, दाढी और मूंछें क्यों नहीं बढनी चाहिए ।

१. पुरुषों काे केश क्यों नही बढाने चाहिए ?

पुरुषत्व अर्थात सत्त्वशीलरूपी गंभीरता, तो स्त्रीत्व अर्थात रजोगुणरूपी कार्यरत शक्ति की गतिमानता । ‘पुरुष’ शिवस्वरूप का द्योतक है । शिवस्वरूपता का अर्थ ही है अंतर्मुखता । अंतर्मुखता में अकार्यरत शक्ति की मात्रा अधिक होती है । अर्थात इस अवस्था में प्रक्षेपणात्मक कार्य अधिक होता है । पुरुषों में स्त्री की अपेक्षा मूलतः ही रजोगुण की मात्रा अल्प होती है । हिन्दू धर्म में पुरुषों के लिए स्वयं में विद्यमान शिवत्व
के अर्थात पुरुषत्व के संवर्धन के लिए पूरक कृत्य अर्थात केश न बढाने का विधान है ।

अ. सर्वसामान्य पुरुष द्वारा केश बढाना तथा साधु द्वारा केश बढाना

सामान्य पुरुष द्वारा केश बढाना साधु द्वारा केश बढाना
१. प्रतीक उच्छृंंखलता वैराग्य
२. प्रक्षेपण रज-तम तेजदायी तरंगें
३. परिणाम वायुमंडल दूषित होना वायुमंडल में तेजदायी तरंगों का गोलाकार मंडल बनना
४. लक्षण अनिष्ट शक्ति के कष्ट का देहभान न्यून होने का
५. प्रक्रिया केश से प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों के कारण देह के सर्व ओर वायुमंडल की निर्मिति के कारण उससे प्रक्षेपित नाद की ओर अनिष्ट शक्ति आकृष्ट होना केश से प्रक्षेपित तेजतत्त्व से संबंधित तरंगों के कारण देह के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होकर जीव की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना
६. फलप्राप्ति केश से वेग से प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों के प्रवाह से अनिष्ट शक्ति देह में प्रवेश करने का भय होना केश की लंबाई के कारण देह की रक्षा होकर साधना करने में अनिष्ट शक्तियों का संकट उत्पन्न न होना
७. कुछ कालावधि उपरांत होनेवाला परिणाम केश के माध्यम से रज-तमात्मक तरंगों के निरंतर स्पर्श से जीव की चिडचिडाहट बढना, शरीर जड होना, शरीर संवेदनहीन होना और मन निरंतर अशांत रहना मन में वैराग्यभाव अथवा संन्यस्त-भाव की निर्मिति से सहायता होने के कारण साधना में आगे की उन्नति अल्पावधि में संभव होना

आ. पुरुष द्वारा लंबे केश रखने के सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम

केश से प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों के कारण देह के सर्व ओर निर्मित वायुमंडल से प्रक्षेपित नाद की ओर अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट होती हैं । केश से तीव्र वेग से प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों के प्रवाह से अनिष्ट शक्तियों के देह में प्रवेश करने की आशंका रहती है । केश के माध्यम से निरंतर रज-तमात्मक तरंगों के स्पर्श से जीव की चिडचिडाहट बढना, शरीर भारी होना, अंग सुन्न होना तथा मन निरंतर अशांत रहना, जैसे कष्ट होते हैं ।

इ. साधु द्वारा केश बढाने के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ

केश से प्रक्षेपित तेजतत्त्वसंबंधी तरंगों के कारण देह के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है, जिससे अनिष्ट शक्तियों से जीव की रक्षा होती है । साधु के केश की लंबाई के कारण उसकी देह की रक्षा होती है तथा साधना में अनिष्ट शक्तियों की बाधा नहीं होती । इससे मन में वैराग्यभाव अथवा संन्यस्त भाव उत्पन्न होने में सहायता मिलती है तथा अल्पावधि में साधना में उन्नति संभव होती है ।

र्इ. सिखों द्वारा केश बढानेसंबंधी शास्त्र

अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से कहा गया है कि पुरुषों को केश नहीं बढाने चाहिए; परंतु सिख समाज में पुरुषों के केश बढाने की परंपरा है । इस विषय में सिख पुरुषों को क्या करना चाहिए ?

केश रजोगुण का प्रतीक है । केश बढाने से रजोगुण अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है । हिन्दू धर्म में कालानुसार अनेक पंथ-उपपंथ, संप्रदाय इत्यादि निर्मित हुए । सिख पंथ की स्थापना प्रमुखरूप से हिन्दू एवं हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु हुई । सिख पंथ की स्थापना का उद्देश्य था, हिन्दुओं में प्रतिकार का सामर्थ्य निर्माण कर एक जुझारू समाज की निर्मिति करना । इसलिए सिख समाज क्षात्रतेज से जुडा है । क्षात्रवृत्ति की निर्मिति में रजोगुणी केश सहायक होते हैं; इसलिए सिखों में केश बढाने की प्रथा आरंभ हुई होगी । (पूर्वकाल के राजाओं के केश लंबे होते थे ।
इसका भी यही कारण था ।)

अपने पंथ की प्रथा के अनुसार आचरण करना, उस पंथ का अनुसरण करनेवालों की श्रद्धा का भाग है । श्रद्धा के बल पर विशिष्ट प्रथा का पालन करने पर उसका उचित फल प्राप्त होता है । इसके अनुसार सिखों का धर्मपालन के रूप में केश बढाना अनुचित नहीं; परंतु धर्मपालन न करनेवाले सिखों द्वारा अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से केश काटना उनके हित में होगा ।

२. पुरुषों काे नख, केश, दाढी और मूंछें क्यों नहीं बढनी चाहिए ?

अ. वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियों का देह में प्रवेश होना

इन सर्व घटकों में रज-तमात्मक आघातस्पंदन समाए हुए होने से तथा ये घटक वायुमंडल की रज-तमात्मक तरंगों को अपनी ओर आकर्षित कर स्वयंमें घनीभूत करने में अग्रसर होने से, इन स्पंदनों के शरीर से सतत स्पर्श के कारण देह में कष्टप्रद तरंगों का संक्रमण होता रहता है, जिससे देह रज-तमात्मक तरंगों से प्रभारित होती है । इस कारण वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियों के लिए देह में पुनः प्रवेश करना सरल हो जाता है ।

आ. रज-तमात्मक स्पंदन वायुमंडल में उत्सर्जित होना

नख, केश, दाढी और मूंछें बढने से उनकी वायुमंडल में रज-तमात्मक स्पंदन उत्सर्जित करने की क्रिया वेगपूर्वक आरंभ होती है । इस कारण अपने देह के साथ-साथ ऐसा जीव बाह्य वायुमंडल भी दूषित होने का मूल कारण बनता है । इस प्रकार वायुमंडल में रज-तमात्मक तरंगों के संक्रमण को बढाने में सहायता कर समष्टि का जीवनमान संकट में डालने जैसा पापयुक्त कृत्य होने से इस कृत्य के लिए जीव को तीसरे पाताल में जाने का दंड मिलता सकता है; इसलिए ऐसे अनुचित और रज-तमात्मक स्पंदन वायुमंडल में फैलाने के पूरक कृत्यों में सहभागी न हों ।

इ. देह की प्रकृति सात्त्विक होना / न होना, तथा जीव को अनिष्ट

शक्तियों का कष्ट होना / न होना, इससे निश्चित होना कि दाढी रखना उचित अथवा अनुचित

अ. अनिष्ट शक्ति का स्थान : दाढी के केश में रज-तमात्मक तरंगें घनीभूत होने से वह किसी अनिष्ट शक्ति का स्थान बन सकती है । इस स्थान का आश्रय लेकर अनेक अनिष्ट शक्तियां अपने आसपास के मंडल में भ्रमण कर हमारी देह में भी प्रवेश कर सकती हैं ।

आ. दाढी सहलाना : अनेक लोग दाढी सहलाते हैं । एक विदेशी वंश के राजा भी अनेक अवसरों पर दाढी सहलाते हुए राज्यव्यवस्थासंबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया करते थे । ऐसे में उनके निर्णय रज-तम से, अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होते थे । प्रकट हुए साधकों में विद्यमान मांत्रिक भी दाढी सहलाते हुए दिखाई देते हैं । ऐसा करने से दाढी के केश में घनीभूत रज-तमात्मक तरंगें जागृत अवस्था में आकर दाढी के केश के सिरों से वातावरण में अधिकतम मात्रा में कष्टप्रद स्पंदन प्रक्षेपित कर वायुमंडल दूषित करते हैं । यही वायुमंडल मांत्रिकों के लिए कार्य करने हेतु पूरक सिद्ध होता है ।

इ. ऋषि-मुनियों की जटाएं और दाढी के केश से सात्त्विक तरंगें ही वायुमंडल में प्रक्षेपित होना : सत्ययुग में अर्थात पुराणकाल में ऋषि-मुनियों की प्रकृति का ही लय हो जाने के कारण तथा तपोबल द्वारा उनकी वृत्ति सात्त्विक बनने से उनकी बढी हुई जटाओं से तथा दाढी के केश से वायुमंडल में सात्त्विक तरंगों का ही प्रक्षेपण होता था । इससे वायुमंडल शुद्ध होने में सहायता मिलती रहती थी ।

अर्थात देह की प्रकृति सात्त्विक होना और न होना, तथा जीव को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होना अथवा न होना, इससे निश्चित होता है कि, दाढी रखना उचित है अथवा अनुचित ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘केशकी आवश्यक देखभाल