सार्वजनिक श्री गणेशोत्सव : कैसा न हो और कैसा हो ?

जो कुछ भी शास्त्रों के अनुसार हो, वही आदर्श तथा लाभदायक सिद्ध होता है । यदि श्रीगणेशजी की मूर्ति मूर्तिविज्ञान के अनुसार बनी हो तो उसकी पूजा करनेवालों को उसका लाभ मिलता है । दुर्भाग्य से आजकल लोगों की रूचि के अनुरूप, मूर्तिविज्ञान का आधार लिए बिना विभिन्न रूपों तथा आकारोंवाली मूर्ति की पूजा की जाती है । इससे श्रीगणेशजी का अपमान होता है । हिंदुओं के त्यौहार केवल सामाजिक उत्सव नहीं अपितु तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करने हेतु हैं । इसलिए हमें इस त्यौहार में आनेवाली बुराइयों को रोकने का प्रयास करना चाहिए ।

लो. टिळक का सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ करने का कारण : लोकमान्य तिलक को यह भान हो गया था कि कार्य की पूर्णता के लिए ईश्वरीय सहायता अनिवार्य है । इसलिए उन्होंने हरिभक्त परायण श्रीपतिबुवा भिंगारकर से पूछा, ‘‘मैं स्वराज्यप्राप्ति के लिए प्रयत्नरत हूं; पर कार्य की पूर्णता के लिए ईश्वरीय सहायता अनिवार्य है अतः इस कार्य के राष्ट्रव्यापी प्रसार हेतु किसकी आराधना करें ?’’

बुवा ने कहा, ‘‘आप अपने सर्व उद्देश्यों की पूर्णता के लिए श्री गणपति की पार्थिव पूजा आरंभ करें ।’’

इस पर लोकमान्य ने कहा, ‘‘केवल मेरे पूजा करने से बात नहीं बनेगी । राष्ट्रभर में सभीको वह करनी चाहिए । हमारे यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थीको घर-घर में पार्थिव गणपति की पूजा करने की परंपरा पहले से ही है । उसे अब राष्ट्रीय स्तर पर आरंभ करेंगे ।’’ तब से लोकमान्यजी की प्रेरणा से सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ हुआ !

१. वर्तमान में मनाए जानेवाले गणेशोत्सव का विकृत स्वरूप

हमने अधिकांश त्यौहार एवं उत्सवों की पवित्रता खो दी है । होली, दहीहंडी, गणेशोत्सव एवं दीपावली जैसे त्यौहारों पर लोग मद्य पीकर ऊधम मचाते हैं तथा धन का अपव्यय करते हैं । आज की पीढी भटक गई है । जिस उद्देश्य से सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ किया गया था, वह उद्देश्य अब समाप्त हो चुका है । इसके आगे अब माफिया एवं उनके मंडल इस त्यौहार को मनाना आरंभ करेंगे ।

एक कथा के अनुसार पेशवे घरानेमें राघोबादादा के पास एक अत्यंत सुंदर गणेशमूर्तिथी । पेशवा पद प्राप्त करने तथा माधवराव पेशवा की समय से पूर्व मृत्यु होनेके लिए राघोबादादा ने उस मूर्तिपर रक्ताभिषेक किया । वह एक अघोरी प्रयास था । आगे उनकी इच्छानुसार हुआ; परंतु उनका पेशवा पद अधिक समय तक टिक नहीं सका । वह गणेशमूर्ति ही उनके लिए विनाशकारी सिद्ध हुई । उस मूर्ति की उनके पुत्रों द्वारा उपेक्षा की गई । तत्पश्‍चात वह मूर्तिजिनके पास गई, उनका अमंगल ही हुआ । अब तोऐसा लगता है कि सार्वजनिक रूप से राघोबादादा की मूर्ति का पूजन होरहा है ।

उत्सव मेंप्रयुक्त गणेशमूर्तियां आकर्षक एवं भव्य-दिव्य होती हैं; परंतु मंडल के आयोजक रक्ताभिषेक कर माया एकत्रित करने के लिए और किसी पद को प्राप्त करने के लोभी होते हैं । अब राघोबा के गणेशजी सार्वजनिक हो चुके हैं । जिस मंडल के सामने भीड अधिक, उनका व्यवसाय उर्जितावस्था में होता है, इसे समझ लेना चाहिए । श्री गणेशमूर्ति के विसर्जन की शोभायात्रा में नाच-गाने एवं ऊधम मचाने का अवसर मिलता है; इसलिए अनेक लोग उसमें सम्मिलित होते हैं । पूरी रात गणेशमूर्ति की झांकी पर पहरा देने की आड में जुआ खेला जाता है और शोभायात्रा में मद्यपान कर ऊधम किया जाता है । इस प्रकार की विकृत घटनाआें के कारण इस उत्सव की पवित्रता नष्ट हो गई है ।

– श्री. संजीव नरेंद्र पाध्ये (श्री गजानन आशीष, मार्च २०११)

२. त्यौहार में होनेवाले अनाचार

वर्तमान समय में गणेशोत्सव बिना भक्ति भाव के मनाई जाती है । वर्ष १९९९ में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल मुंबई में ही ३५०० से अधिक गणेशोत्सव समितियां पंजीकृत हैं ! पूरे महाराष्ट्र में उनकी संख्या क्या होगी ? ।

अ. उत्सवमंडप से संबंधित अनाचार

१. मंडप बनाने हेतु ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग

२. मूर्र्ति की सजावट, विद्युत जगमगाहट एवं संगीत कार्यक्रम पर अत्यधिक व्यय

३. मंडप में जुआ तथा मद्यपान

आ. अशास्त्रीय रूप की मूर्तियां

१. ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ से बनी मूर्तियां

२. विचित्र रूप की मूूूर्तियां

३. विशालकाय मूर्तियां

इ. व्यावसायिक उद्देश्य से किए विज्ञापनों के माध्यम से अनादर

श्री गणेश को विविध रूपों में प्रदर्शित कर, उदा. ‘झंडु बाम’ लगानेवाले, ‘काइनेटिक पर सवारी करनेवाले’, ऐसे विज्ञापनोंद्वारा उनका अनादर करना

र्इ. समाजविघातक विषयों का प्रसार

सिगरेट, गुटका आदि हानिकारक पदार्थों के उत्पादकों से (दान के स्वरूप में) निधि लेकर, ऐसे उत्पादों के विज्ञापनों के संदेशोंद्वारा समाज को व्यसनाधीन बनाने में सहायक होना

उ. समाजमन पर अनुचित संस्कार डालनेवाले प्रसारण

१. चलचित्र के गीत, चलचित्र के संगीत पर / गीतों की ताल पर आधारित देवताओं की आरतियों की ध्वनिमुद्रिका (ऑडियो वैâसेट) उच्च स्वर में लगाना

२. वाद्यवृंद, पॉप संगीत एवं नृत्य जैसे संस्कारहीन कार्यक्रमों का आयोजन

ऊ. चलचित्र के गीत, संगीत एवं बिजली की सजावट आदि के फलस्वरूप ध्वनिप्रदूषण

ए. जुलूस में होनेवाले अनुचित प्रकार

१. आवागमन-यंत्रणा में बाधक, कूर्मगति से चलनेवाला जुलूस

२. अन्यों को बलपूर्वक गुलाल लगाना इ. मद्यपान

३. विचित्र अंगचलन कर नाचना

४. महिलाओं के साथ असभ्य वर्तन

५. बहरा कर देनेवाले पटाखे ए. रात्रि १० बजे के उपरांत मूर्तिविसर्जन

एै. गुंडों का सहभाग

आे. भ्रष्टाचारी राजनेताओं का वर्चस्व

आै. शोभायात्रा मेंमद्य पीकर सम्मिलित होना

आजकल त्यौहारों के समय अथवा उनकी शोभायात्रा में कुछ लोग मद्य पीकर सम्मिलित होते हैं । प्रायः अंगविक्षेप करते हुए नाचना, लोगों का उपहास करना, महिलाआें से छेडछाड आदि प्रकरण होते हैं । ऐसा होते हुए भी उसमें सम्मिलित अच्छे लोग आपत्ति नहीं उठाते। सामान्यतः यदि यात्रा के समय हमारे पास कोई व्यक्ति मद्य पीकर बैठा हो, तो हम उसे दूर जानेके लिए कहते ही हैं । मद्य पीकर आए हुए व्यक्ति के कारण अनर्थ हो सकता है तथा त्यौहार की पवित्रता नष्ट होती है, यह लोगों के ध्यान में नहीं आता तथा उनमें धर्माभिमान न होने के कारण ही वे भयवश कोई कृत्य करने का साहस नहीं दिखाते । – दैनिक सनातन प्रभात

२. उत्सव में क्या होना चाहिए ?

उत्सव में क्या होना चाहिए ? उत्सव में क्या नहीं होना चाहिए ?
१. घर तथा साज-सज्जा
अ. श्रीगणेश को प्राथमिकता, साज-सज्जा को दुय्यम स्थान ।
आ. स्वच्छता, सात्त्विक सजावट, प्रत्येक जन मिलकर भाव भक्ति से पूजा की तैयारी करे ।
१. घर तथा साज-सज्जा
अ. महंगी प्रकाश व्यवस्था तथा साज-सज्जा तथा थर्माकोल की सजावट ।
आ. टेलीविजन पर मनोरंजक कार्यक्रम देखना ।
इ. पूजा की तैयारी के समय गाना सुनना ।
२. मूर्ति
अ. मिट्टी से बनी तथा प्राकृतिक रंगों से रंगी ।
आ. पीढे पर बैठी ।
इ. मूर्तिशास्त्र के अनुसार बनी ।
२. मूर्ति
अ. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी विशालकाय आकार में ।
आ. विचित्र रूपों में ( उदा. सैनिक, संत इत्यादि) ।
इ. नारियल, केले, बर्तन इत्यादि से बनी ।
३. धार्मिक विधि
अ. पवित्रता बनाए रखने के लिए शुद्ध होने के उपरांत ही पूजा की तैयारी करना ।
आ. सभी का उपस्थित रहना तथा चैतन्य का अनुभव करना
३. धार्मिक विधि
अ. धार्मिक विधि के समय बच्चों का शोरगुल तथा बातें करना ।
आ. धार्मिक विधि के समय उपस्थित न रहना ।
४. आरती
अ. विशिष्ट आरती भाव भक्ति से गाना
आ. आरती के उपरांत प्रार्थना तथा नामजप करना ।
४. आरती
अ. लंबी आरती ऊंचे स्वर में गाना ।
आ. आरती के समय हंसना तथा मस्ती करना ।
५. प्रसाद
अ. प्रसाद बनाते समय नामजप करते हुए बनाना ।
आ. कतार में शांतिपूर्वक खडे होकर प्रसाद लेना
५. प्रसाद
अ. प्रसाद बनाते समय बातें करते हुए बनाना ।
आ. प्रसाद लेते समय भीड लगाना तथा अन्योंको तंग करना ।
६. शोभायात्रा
अ. अनुशासन तथा नामजप सहित तथा समय पर समाप्त करना ।
६. शोभायात्रा
अ. धीमी गति वाली शोभायात्रा, मद्यपान करना, बलपूर्वक गुलाल लगाना ।
७. विसर्जन
अ. बहते जल में शास्त्रानुसार प्रवाहित करना
७. विसर्जन
अ. मूर्ति दान करना तथा ऊंचाई से जल में फेंक देना ।

३. ‘हिन्दू जनजागृति समिति’द्वारा किए जानेवाले प्रयत्न

गणेशोत्सव एक धार्मिक उत्सव है, इसलिए धार्मिक संगठनों का कर्तव्य है कि, वे इसमें होनेवाले अनाचारों को रोके तथा शास्त्रों के अनुसार मनाए । इसके लिए हिन्दू जनजागृति समिति पिछले ५ वर्षों से अभियान चला रही है । इसके अंतर्गत श्रीगणेशजी की मूर्ति बनानेवाले मूर्तिकारों तथा आयोजकों से संपर्क कर उन्हें शास्त्र बताया जाता है । जैसे :

  • गणेशजी की मूर्ति विशाल क्यों नहीं होनी चाहिए ?
  • गणेशमूर्ति संत, अन्य देवताओं अथवा विचित्र तथा विकृत रूप में क्यों नहीं बनानी चाहिए ?
  • गणेशमूर्ति कांच, नारियल, प्लास्टर ऑफ पेरिस अथवा तंतु (फाइबर) से न बनाकर मिट्टी से क्यों बनानी चाहिए ?
  • मूर्ति की रंगाई प्राकृतिक रंगों से क्यों करनी चाहिए ?
  • मूर्ति विसर्जन के समय उसे दान न देकर बहते पानी में उसका विसर्जन क्यों करना चाहिए ? इत्यादि

राज्य के कुछ स्थानों पर पुलिस तथा मोहल्ला कमिटियों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से गणेशोत्सव मंडलों से मिलकर गणेशोत्सव में क्या होना चाहिए क्या नहीं, इसके संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा बनाए गए नियम उन्हें बताए तथा समझाए जाते हैं । इसमें शोभायात्रा से जुडी समस्याएं, विद्युतीकरण, ध्वनि प्रदूषण, विसर्जन तथा उत्सव के समय आयोजित किए जानेवाले कार्यक्रमों में अनावश्य व्यय किए जानेवाले पैसे के संदर्भ में भी बताया जाता है । साथ ही देवी-देवताओं तथा राष्ट्रीय प्रतीक के चित्रोंवाले पटाखे नहीं जलाने संबंधी भी बताया जाता है । गणेशजी के मूर्तिकारों तथा सार्वजनिक स्थलों में शास्त्रों का ज्ञान बैनर्स, पोस्टर्स, प्रदर्शनी, हस्तपत्रक तथा विविध स्थानों पर वीडियो सीडी के माध्यम से बताया जाता है ।

४. एक आदर्श गणेशोत्सव

अ. श्रीगणेशजी को कैसे प्रसन्न करें ? तथा उनका आशीर्वाद कैसे प्राप्त करें ?

पूर्वकाल में बाहरी साज-सज्जा की अपेक्षा धार्मिक विधियां भावसहित करने तथा शास्त्रोक्त ज्ञान ही उत्सवों के मुख्य भाग होते थे । दुर्भाग्य से धार्मिक उत्सवों में आजकल इस पहलू की आेर अनदेखा कीया जाता है । मूर्ति गणेशतत्व को आकर्षित करनेवाली होनी चाहिए । कुछ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के कोल्हापूर में तथा गोवा के मारगांव में सार्वजनिक गणेशोत्सव के समय उनकी मूर्तियां संतों, अक्कलकोट के स्वामी समर्थ तथा शिर्डी के श्री सार्इंबाबा के रूप में बनार्इ गर्इ थी । मुंबई स्थित कल्याण में, श्रीगणेशजी की मूर्ति चिकित्सकीय उपकरणें से बनार्इ गर्इ थी । उनकी सूढ सूई (सीरींज) से, कान किडनी ट्रे से, उनके मुकुट सलाईन की बोतलों से, हाथ के दस्ताने से तथा आंखें कैप्स्यूल से बनार्इ गर्इ थी ।

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, प्रत्येक देवता एक विशिष्ट तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । अध्यात्म का एक सिद्धांत है, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा शक्ति एकसाथ होती है । इसलिए देवता का रूप ऐसा होना चाहिए कि, वह पूजा की जानेवाले देवता का तत्व अधिकाधिक आकर्षित करने में सक्षम हो । यदि इस सिद्धांत का अनुसरण मूर्ति बनाते समय नहीं किया जाए तो देवतातत्व उस मूर्ति में आकर्षित नहीं होगा और पूजक को पूजाविधि से लाभ नहीं होगा । मूर्तिविज्ञान के अनुसार, गणपति की मूर्ति के एक दांत तथा चार हाथ होने चाहिए । तीनों हाथ क्रम से पाश, अंकुश तथा एक दांत धारण किए हुए तथा चौथा हाथ आर्शीवाद देने की मुद्रा में होना चाहिए । पेट बडा होना चाहिए, ध्वज में मूषक चिन्हांकित हो । कान सूप समान तथा वे लकडी के पीढे पर बैठे हों तथा उनके शीश पर मुकुट होना चाहिए ।

आ. धार्मिक उत्सव को सामाजिक रूप देने से होनेवाली हानियां

वर्तमान में धार्मिक उत्सव होने पर भी गणेशोत्सव धर्म तथा समाज दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो गया है । कई लोग चाहते हैं कि, धार्मिक उत्सव की पवित्रता बनी रहे । श्रीगणेशजी की आरती, पूजा, प्रसाद, प्रार्थना, कीर्तन तथा प्रवचन इत्यादि का भी इस उत्सव में महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए । इकट्ठे किए गए चंदे का उपयोग अध्यात्म प्रसार में हो । अध्यात्मप्रसार का कुछ उदाहरण इसप्रकार के हो सकते हैं . . .

  • अपने आस-पडोस के मंदिरों की स्वच्छता, मरम्मत, रखरखाव तथा जीर्णोद्धार करना ।
  • निकट के तीर्थस्थानों तथा मंदिरों में धार्मिक उत्सव में सहायता करना ।
  • हिन्दू संस्कृति के संवर्धन हेतु संलग्न लोगों तथा संगठनों की सहायता करना ।
  • वेद तथा योग के अध्ययन हेतु संस्थाओं की सहायता करना ।
  • अध्यात्मप्रसार करनेवाली संस्थाओं को धन अथवा अन्य सहायता प्रदान करना जैसे – प्रवचन हेतु ध्वनिक्षेपकों को न्यूनतम अथवा नि:शुल्क उपलब्ध करवाना ।

इ. क्या आपके स्थानीय उत्सव में ये लक्ष्य साध्य हुए हैं ?

धार्मिक उत्सव एक धार्मिक विधि होती है जो समाज में मिलजुलकर मनाई जाती है, जिससे शरीर तथा मन को सुख मिले विशेषतः सामाजिक सुख । इन उत्सवों के माध्यम से व्यक्ति को प्रकृति तथा कला से आनंद अनुभव करने में सक्षम होना चाहिए । इससे व्यक्ति को स्वयं (स्वकेंद्रित) से परे जाने तथा कुछ मात्रा में समाज से एकरूप होने में सहायता होती है । धार्मिक उत्सव लोगों को सभी भेदों जैसे अमीर-गरीब, जाति इत्यादि से ऊपर उठकर जोडता है, जो सामान्यतः नहीं होता ।

तो चलिए इस गणेशोत्सव को एकजुट होने तथा धर्मानुसार करने का प्रयत्न करें ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति

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