रामराज्य में शिक्षा कैसे प्रदान की जाती थी ?

रामराज्यमें आर्थिक योजनाके साथ ही उच्च राष्ट्रीय चरित्रका निर्माण किया गया था । तत्कालिन लोक निर्लाेभी, सत्यवादी, अलंपट, आाqस्तक और सक्रिय थे; क्रियाशून्य नहीं थे । जब बेकारभत्ता मिलता है तब मनुष्य क्रियाशून्य बनता है । तत्कालिन लोग स्वतन्त्र थे; कारण शिक्षा स्वतन्त्र थी । Read more »

वीर अभिमन्यु

कुरुक्षेत्रमें कौरवोंके रथी-महारथियोंसे अपने प्राणोंको दांवपर लगाकर लडते हुए वीरगतिको प्राप्त होनेवाला अभिमन्यु । अभिमन्युने छोटी अवस्थामें ही अतुलनीय पराक्रम किया था । किसी भी कार्यमें सफल होनेके लिए पराक्रम करना ही पडता है । Read more »

एकलव्य की गुरुदक्षिणा

एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से पूछा, गुरुदेव, क्या आप मुझे धनुर्विद्या सिखाने की कृपा करेंगे ?’’ गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष समस्या उत्पन्न हो गई; क्योंकि उन्होंने पितामह भीष्म को वचन दिया था कि केवल राजकुमारों को ही विद्या सिखाएंगे । Read more »

देशद्रोही को पाठ पढानेवाली वीरमति !

‘चौदहवीं शताब्दी में देवगिरी राज्यपर राजा रामदेव राज्य करते थे । मुसलमान सम्राट (बादशाह) अल्लाउद्दीन ने देवगिरीपर आक्रमण किया तथा राजा को आत्मसमर्पण करने हेतु कहा; परन्तु पराक्रमी रामदेव ने उसे धिक्कारा । Read more »

समुद्र मंथन एवं राहू

जनमेजय राजा ने ऋषि वैशंपायन को समुद्र मंथन की कथा सुनाने की विनती की । इसलिए वे कथा सुनाने लगे – राजा, प्राचीनकाल में देव और दैत्यों ने समुद्र मंथन कर अमृत तथा अन्य रत्नों को निकालने का निश्चय किया । Read more »

गोरक्षा हेतू सिंह के सामने स्वयं के देह की आहुति देनेवाला हिन्दुओं का पराक्रमी रघुवंशी राजा दिलीप

श्रीराम प्रभु के रघुवंश की यह प्रसिद्ध कथा है । श्रीराम से पहले रघुवंश में एक महान चक्रवर्ती सम्राट दिलीप हुए ! ये गोव्रत का आचरण करते हैं । Read more »

ऋषि कक्षीवान की पहेली

एक बार कक्षीवान ऋषि प्रियमेध ऋषि के पास गए तथा बोले, `प्रियमेध, मेरी एक पहेली सुलझाओ । ऐसी कौन-सी वस्तु है जिसे जलानेपर प्रकाश नहीं उत्पन्न होता ?’ Read more »

सत्यकाम जाबाल

प्राचीनकाल में उत्तरी हिन्दुस्थान में जाबाला नाम की एक निर्धन दासी रहती थी । उसका सत्यकाम नाम का एक पुत्र था । जाबाला दिनभर कडा परिश्रम कर अपना तथा अपने प्रिय पुत्र का पेट भरती थी । Read more »