कान्‍हाजी की दर्पण सेवा !

एक गांव में एक माई रहती थी । वह कृष्‍ण की भक्‍त थी । अपने श्‍याम सुन्‍दर श्रीकृष्‍णजी की बहुत मन से सेवा करती थी, वह सुबह उठकर अपने कान्‍हाजी को अत्‍यंत दुलार और मनुहार से उठाती थी और उनका स्नान श्रृंगार करने के बाद उनको दर्पण दिखाती थी । उसके बाद भोग लगाती थी । Read more »

भक्त मंगल !

एक गांव में एक धनवान सेठ के पास एक मंगल नामक व्यक्ति काम करता था । मंगल बहुत ईमानदार था । सेठ मंगल पर बहुत विश्‍वास करते थे । मंगल भगवान जगन्नाथ का बहुत बडा भक्त था । एक दिन मंगल ने सेठ से श्री जगन्नाथ धाम की यात्रा करने के लिए कुछ दिन का छुट्टी मांगी । सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा, ‘मंगल, तुम जा ही रहे हो तो ये सौ मुद्राएं मेरी ओर से श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में अर्पित कर देना ।’ Read more »

भक्त आलोक !

यह प्राचीन काल की बात है । एक नगर में आलोक नामक एक स्वर्णकार रहते थे । सोने के आभूषण बनानेवाले को स्वर्णकार कहते हैं । आलोक भगवान श्रीकृष्णजी के अनन्य भक्त थे । वे सदैव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और संतसेवा करते रहते थे । Read more »

श्रद्धालु सुनंदा ! 

वेदनगर गांव में एक सुनंदा नाम की महिला रहती थी । सुनंदा ईश्‍वर भक्त और श्रद्धालु थी तथा भोलीभाली थी। वह सदैव ईश्‍वर का नामजप किया करती थी । उसके पास दो गायें थी । उन गायों का दूध बेचकर वह अपना निर्वाह करती थी । वह प्रतिदिन दूध लेकर नाव से नदी पार करती तथा पूर्णानगर गांव में जाकर दूध बेचती थी । Read more »

पन्ना धाय की स्वामीभक्ति ! 

यह उस समय की बात है जब राजस्थान के मेवाड में राणा संगा का राज था । उनके बेटे का नाम उदयसिंह था, जो मेवाड का भावी राजा था । पन्ना धाय राणा उदयसिंह की धाय मां थी । राणा उदयसिंह को पन्ना धाय ने ही पालपोसकर बडा किया था । पन्ना ने पूरी लगन से राणा उदयसिंह की परवरिश और सुरक्षा की । Read more »

प्रामाणिकता का महत्त्व ! (सच्चा लकडहारा) 

एक गांव में मंगल नाम का बहुत सीधा और सच्चा व्यक्ति रहता था । वह बहुत गरीब था । दिनभर जंगल में सूखी लकडी काटता और बाद में उनका गठ्ठर बांधकर बाजार में बेचने के लिए ले जाता था । पूरा दिन परिश्रम करने के बाद उसकी जो भी कमाई होती थी, उसमें वह संतुष्ट रहता था । Read more »

अर्जुन को पाशुपत अस्‍त्र की प्राप्ति ! 

महाभारत के युद्ध में अनेक अस्‍त्रों का उपयोग किया गया था, जिसका परिणाम अत्‍यंत भयंकर होता था । धनुर्धारी अर्जुन के पास ऐसा ही एक अस्‍त्र था, जिसका नाम पाशुपत अस्‍त्र था । यह अस्‍त्र अर्जुन ने भगवान शिवजी से प्राप्‍त किया था । आज हम यही कहानी सुनेंगे कि अर्जुन को इस अस्‍त्र की प्राप्‍ति कैसे हुई । Read more »

संपत्ति से भक्‍ति श्रेष्‍ठ

चोलराज और विष्‍णुदास नाम के दो मित्र थे । दोनो भगवान श्रीविष्‍णुजी के भक्‍त थे । चोलराज यह चक्रवर्ती सम्राट था । वह धनवान और दानवीर था । इसके विपरीत विष्‍णुदास एक गरीब परंतु विद्वान ब्राह्मण था । दोनो प्रतिदिन भगवान श्रीविष्‍णुजी के एक मंदिर मे पूजा करने के लिए जाते थे । Read more »

भक्‍त कूर्मदास

पैठण गाव मे कूर्मदास नाम का एक व्‍यक्‍ति था । वह जन्‍म से ही विकलांग था । उसके हाथ और पांव नही थे । एक दिन उसके गाव के मंदिर में कीर्तन था । कीर्तन में विठ्ठल के पंढरपूर क्षेत्र का अलौकिक महीमा बताई । वह सुनकर कूर्मदास ने ‘पंढरपूर जाना ही है’, यह निश्‍चित ही कर लिया । Read more »

पितृभक्‍त सोमशर्मा

शिवशर्माजी ने अपने छोटे पुत्र सोमशर्मा को अमृत के घडे की रक्षा करने के लिए कहा । अमृत का घडा अपने पुत्र के पास देकर वह स्‍वयं पत्नी के साथ तीर्थयात्रा करने चले गए । दस वर्ष बाद शिवशर्माजी अपने पुत्र के पास लौटे । पुत्र की परीक्षा लेने का विचार उनके मन में आया । Read more »