पन्ना धाय की स्वामीभक्ति ! 

पन्ना धाय और राजकुमार उदयसिंह

यह उस समय की बात है जब राजस्थान के मेवाड में राणा संगा का राज था । उनके बेटे का नाम उदयसिंह था, जो मेवाड का भावी राजा था । पन्ना धाय राणा उदयसिंह की धाय मां थी । राणा उदयसिंह को पन्ना धाय ने ही पालपोसकर बडा किया था । पन्ना धाय ने उदयसिंह को मां के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय मां’ कहलाती थी । पन्ना चित्तौड के कुम्भा महल में रहती थी । पन्ना का स्वयं का भी एक पुत्र था जिसका नाम चन्दन था । चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बडे हुए थे । उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था । पन्ना ने पूरी लगन से राणा उदयसिंह की परवरिश और सुरक्षा की ।

राजकुमार बडे हो रहे थे । उसी समय राज्य में आन्तरिक विरोध और षड्यंत्र हो रहे थे । राजगद्दी पाने के लिए राणा संगा के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यन्त्र रचा । एक रात बनवीर ने राजा की हत्या की । राजा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला । उसके बाद उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पडा । जिस समय उदयसिंह की माता को यह ज्ञात हुआ, तब उन्होंने उदयसिंह को अपनी विशेष दासी तथा उदयसिंह की पन्ना धाय को सौंप दिया और कहां, पन्ना ! अब यह राजमहल चित्तौड का किला मेवाड के भावी राजा की रक्षा नही कर सकेगा । तुम राजकुमार को अपने साथ ले जाऔ और इसे किसी प्रकार कुम्भलगढ भिजवा दो ।’’

पन्ना धाय राजकुमार को उसके कक्ष में लेकर गई । बनवीर राजकुमार को मारने के लिए आ रहा है, यह पूर्वसूचना एक विश्‍वस्त सेवक ने पन्ना धाय को दी ।

पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति एकनिष्ठ थी । वह स्वामीनिष्ठ थी । उसने उदयसिंह को बचाने का प्रण किया था । इसलिए बनवीर के आने की पूर्वसूचना मिलते ही उसने राजकुमार उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाया और उसे झूठी पत्तलों से ढक दिया । एक अत्यंत विश्‍वासपात्र सेवक के साथ वह टोकरी महल से बाहर भेज दी । बनवीर को धोखा देने के लिए पन्ना धाय ने उसके पुत्र चन्दन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया । बनवीर अपने हाथ में रक्त से सनी तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया । उसने पन्ना धाय से राजकुमार उदयसिंह के बारें में पूछा । पन्ना धाय ने उदयसिंह के पलंग की ओर हाथ दिखाकर संकेत किया जहां उसने चन्दन को सुलाया था । बनवीर ने पन्ना के पुत्र चन्दन को ही उदयसिंह समझकर मार डाला । पन्ना अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र के वध को स्तब्ध होकर देखती रही । बनवीर को राजकुमार के बारे मे पता न लगे, इसलिए पन्ना धाय बिना आंसू बहाएं वही खडी रही ।

बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र के मृत देह के सीर को सहलाया और मन कठोर कर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पडी ।

स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धाय ने अपना कर्तव्य पूर्ण करने के लिए अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड के राजवंश को बचाया ।

राजपुत्र उदयसिंह को लेकर पन्ना दाय कुम्भलगढ गई । वहां पर उसे और राजपुत्र उदयसिंह को आश्रय मिला । कुछ काल तक किलेदार का भांजा बनकर राजपुत्र उदयसिंह बडे हुए । १३ वर्ष की आयु में मेवाडी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर उनका राज्याभिषेक कर दिया । इस प्रकार स्वामीनिष्ठ पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देने के कारण मेवाड का भविष्य सुरक्षित रह पाया ।

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