बालमित्रो, यह बहुत पुराने समय की बात है । जगन्नाथपुरी में कर्मा बाई नामक एक माताजी रहती थीं । वह भगवान श्रीकृष्ण की परम उपासक थी । वह बचपन से ही भगवान कृष्ण की पूजा करती थी तथा उनकी अपने पुत्र के रूप में सेवा करती थी । वह ठाकुरजी से सदैव बातें करती रहती थी । माई ने भगवान श्रीकृष्णजी को अपना पुत्र मान लिया था और वह उनके साथ एक पुत्र जैसा ही व्यवहार करती थीं । एक दिन कर्मा बाई ने सोचा कि आज तो मैं अपने कान्हा को फल मेवा के स्थान पर अपने हाथ से कुछ अच्छा भोजन बनाकर खिलाऊं । माई ने अपने मन की इच्छा जगन्नाथ प्रभु को बताई । भगवान तो भक्तों का भाव देखते हैं । प्रभु जी बोले – मां ! जो भी बनाया हो वही खिला दो, बहुत भूख लगी है ।
उस दिन कर्मा बाई ने खिचडी बनाई थी । माई ने ठाकुरजी को खिचडी खाने को दे दी । प्रभु बडे चाव से खिचडी खाने लगे और कर्मा बाई यह सोचकर भगवान को पंखा झलने लगीं कि कहीं गर्म खिचडी से मेरे ठाकुर जी का मुंह ना जल जाए । संसार को अपने मुख में समाने वाले भगवान को कर्मा बाई एक माता की तरह पंखा कर रही थीं और भगवान भक्त की भावना में भाव विभोर हो रहे थे ।
भक्त वत्सल भगवान ने कहा, ‘मां ! मुझे तो खिचडी बहुत अच्छी लगी । मेरे लिए आप प्रतिदिन खिचडी ही पकाया करें । मैं तो यहीं आकर खाया करुंगा ।’
अब तो कर्मा बाई जी प्रतिदिन सुबह उठतीं और सबसे पहले खिचडी बनातीं, और अपने सारे कामों को बाद में करती थी । भगवान भी सुबह खिचडी खाने के लिए दौडे चले आते । आते ही कहते, ‘मां ! जल्दी से मेरी प्रिय खिचडी लाओ ।’ प्रतिदिन का यही क्रम बन गया । भगवान सुबह-सुबह आते, खिचडी का भोग लगाते और फिर चले जाते ।
एक बार एक महात्मा कर्मा बाई के पास आए । महात्मा ने उन्हें सुबह-सुबह खिचड़ी बनाते देखा तो नाराज होकर कहा, ‘माता जी, आप यह क्या कर रही हो ? सबसे पहले नहा धोकर पूजा-पाठ करनी चाहिए । लेकिन सुबह उठते ही आपको तो पेट भरने की चिन्ता सताने लगती है ।’
कर्मा बाई बोलीं, ‘क्या करूं ? महाराज जी ! संसार जिस भगवान की पूजा-अर्चना कर रहा होता है, वही सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं । उनके लिए ही तो सब काम छोडकर पहले खिचडी बनाती हूं ।’
महात्माजी ने सोचा कि शायद कर्मा बाई तो पागल हो गई है । यह तो ऐसे बोल रही है जैसे भगवान इसकी बनाई हुई खिचडी के ही भूखे बैठे हुए हों । वह कर्मा बाई को समझाने लगे, ‘माता जी, तुम भगवान को अशुद्ध कर रही हो । सुबह स्नान के बाद पहले रसोई की सफाई करो । उसके बाद भगवान के लिए भोग बनाओ ।’
अगले दिन कर्मा बाई ने महात्माजी के बताए अनुसार ही किया । जैसे ही सुबह हुई भगवान आए और बोले, ‘मां ! मैं आ गया हूं, खिचडी लाओ ।’
कर्मा बाई ने कहा, ‘प्रभु ! अभी में स्नान कर रही हूं, थोडा रुको । थोडी देर बाद भगवान ने फिर आवाज लगाई । जल्दी करो, मां ! मेरे मन्द़िर के पट खुल जायेंगे, मुझे जाना है ।
वह फिर बोलीं, ‘अभी मैं रसोई की सफाई कर रही हूं, प्रभु ! भगवान सोचने लगे कि आज मां को क्या हो गया है ? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ । फिर जब कर्मा बाई ने खिचडी परोसी तब भगवान ने जल्दी-जल्दी में झटपट खिचडी खाई ।
परंतु आज की खिचडी में प्रतिदिन जैसा भाव और स्वाद आता था वैसा आज भगवान को नहीं लगा । फिर भी जल्दी-जल्दी में भगवान बिना पानी पिये और बिना मुंह धोए ही मंदिर की ओर भागे ।
भगवान ने बाहर महात्मा को देखा तो समझ गए, ‘अच्छा, तो यह बात है । मेरी मां को उलटी-सीधी पट्टी इसी माहात्मा ने पढाई है ।’
अब यहां ठाकुरजी के मन्द़िर के पुजारी ने जैसे ही मंदिर के पट खोले तो देखा भगवान के मुख पर खिचडी लगी हुई है । पुजारी बोले, ‘प्रभु जी ! ये खिचडी आप के मुख पर कैसे लग गयी है ?
भगवान ने कहा, ‘मैं प्रतिदिन अपनी मां कर्मा बाई के घर पर खिचडी खाकर आता हूं । आप मां कर्मा बाई जी के घर जाओ और जो महात्मा वहां ठहरे हुए हैं, उनको समझाओ । उसने मेरी मां को कैसी गलत पट्टी पढाई है ?
पुजारी ने महात्मा जी से जाकर सारी बात कही कि भगवान तो भाव के भूखे हैं । यह सुनकर महात्मा जी घबराए और तुरन्त कर्मा बाई के पास जाकर कहा, ‘माता जी ! क्षमा करो, ये नियम धर्म तो हम सन्तों के लिये हैं । आप तो जैसे पहले खिचडी बनाती थी, वैसे ही बनाएं । आपके भाव से ही ठाकुर जी खिचडी खाने के लिए आते रहेंगे ।’
प्रतिदिन खिचडी बनाने और प्रभु द्वारा खाने का क्रम चलता रहा । कर्मा बाई बूढी हो गई थीं; परंतु तब भी वह प्रभु के लिए प्रतिदिन खिचडी बनाती थी । एक दिन कर्मा बाई की मृत्यु हो गई और भगवान के लिए खिचडी बनाने का क्रम टूट गया । उस दिन पुजारी ने मंदिर के पट खोले तो देखा कि भगवान की आंखों में आंसू हैं और प्रभु रो रहे हैं ।
पुजारी ने रोने का कारण पूछा तो भगवान बोले, ‘पुजारी जी, आज मेरी मां कर्मा बाई इस लोक को छोडकर मेरे निज लोक को विदा हो गई है । अब मुझे कौन खिचडी बनाकर खिलाएगा ?
पुजारी ने कहा, ‘प्रभु जी ! आपको कभी भी मां की कमी महसूस नहीं होने देंगे । आज के बाद आपको सबसे पहले खिचडी का भोग ही लगेगा ।’ इसलिए आज भी जगन्नाथ भगवान को खिचडी का भोग लगाया जाता है ।
बच्चो आपके ध्यान में आया न, भगवान और उनके भक्तों की ये अमर कथाएं अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं । प्रभु केवल सच्चे और पवित्र भाव के भूखे हैं । आप भी इन कथाओं के माध्यम से भक्ति के रस को चखते हुए आनन्द के सरोवर में डुबकी लगाइए ।