अहंकार आनेपर, दुःख आता है !

१. रथोत्सवके समय रथका एक पहिया टूट जानेसे चिंतित श्रद्धालुओंको विकल्पस्वरूप कोई भी वाहन न मिलना

एका गांवमें रथोत्सवके चलते श्रद्धालू वह रथ एक गांवसे दूसरे गांवमें गाते बजाते ले जा रहे होते हैं । मध्य  रास्तेमें ही रथका एक पहिया टूट जाता है, जिससे श्रद्धालू चिंतित हो जाते हैं । रथमें विराजमान भगवानको दूसरे गांव कैसे पहुंचाएं ?, यह समस्या श्रद्धालुओंके सामने उत्पन्न हो जाती है । विकल्पस्वरूप श्रद्धालू बैलगाडी, घोडागाडी ढूंढते हैं; परन्तु कोई वाहन उपलब्ध नहीं होता ।

२. श्रद्धालुओंने मार्गके एक गधेको सजाकर, उसपर भगवान रखकर दूसरे गांवकी ओर प्रस्थान करना तथा कुछ लोगोंद्वारा गधेको ही भक्तिभावसे हार डालना प्रारम्भ करना  

मार्गमें श्रद्धालुओंको कचरा खानेवाला एक गधा दिखाई दिया । सभी लोग उसे चंदन, तेल इत्यादि लगाकर नहलाते हैं, उसपर रेशमी वस्त्र डालकर उसे सजाते हैं तथा उसपर भगवान बैठाते हैं । उत्सव पुनः प्रारम्भ होता है तथा सभी लोग दूसरे गांवकी ओर प्रस्थान करते हैं । कुछ श्रद्धालू गधेपर बैठे हुए भगवानको हार अर्पित करने लगते हैं । कुछ समय पश्चात भगवानको हार अर्पित करनेका स्थान शेष नहीं रहता; इसलिए लोग भक्तिभावसे गधेको ही हार पहनाने लगते हैं ।

३. मानसम्मान प्राप्त होनेसे आनन्दित गधेद्वारा उसकी पीठपर बोझ है, ऐसा मानकर देह झटकनेसे भगवान नीचे गिरना तथा क्रोधसे भडके हुए श्रद्धालुओंद्वारा गधेको मार पडना

मार्गसे जाते हुए गधा विचार करता है कि आजतक जो कभी नहीं मिला, वह राजवैभव आज मुझे कैसे मिल रहा है ? श्रद्धालू भगवानकी आरती कर रहे थे; परन्तु गधा यह मानने लगा कि वह आरती उसके लिए ही है, इसलिए वह अधिक प्रसन्न हो गया । कुछ समय पश्चात उसके मनमें विचार आया कि मुझे यह राजवैभव स्वीकार है; परन्तु मेरी पीठपर कुछ बोझ है । यह विचार आनेपर उसने स्वयंका शरीर झटका । इसलिए उसकी पीठपर विराजमान भगवान नीचे गिर जाते हैं । यह देखकर श्रद्धालू क्रोधसे भडकते हैं तथा गधेको पीटते हैं ।
तात्पर्य : जबतक हमपर ईश्वर अथवा गुरुकी कृपा है, हमारे निकट उनका वास है, तबतक हमें मानसम्मान तथा समाजसे प्रेम प्राप्त होता है । जिस समय अहंकार बढता है, उस समय हमारी स्थिति गधेसे पृथक नहीं होती; इसलिए भगवानको भूलना नहीं चाहिए । अहंरहित रहना चाहिए । सभी मानसम्मान भगवानके चरणोंमें अर्पण करना चाहिए ।

– संग्राहक : श्री. उमेश गौडा (३०.८.२०१३)