४० सहस्र भारतीय स्त्री-पुरुषों के सहयोग से स्थापित ‘आजाद हिंद सेना’ !

आजाद हिंद सेना के ‘स्थापना दिवस’ के अवसरपर…..

अंग्रेजों के विरोध में लडने हेतु नेताजी सुभाषचंद्र बोसद्वारा ४० सहस्र भारतीय स्त्री-पुरुषों के सहयोग से ‘आजादहिंद सेना’ की स्थापना की गई थी । ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ ऐसा आवाहन किया गया था ।

सुभाषचंद्र बोसद्वारा मां-पिता की आज्ञानुसार भारतीय नागरिक सेवा की (इंडियन सिविल सर्विसेज की) परीक्षा में चौथे स्थानपर उत्तीर्ण होना तथा जालियांवाला बाग जैसे हत्याकांड से अस्थिर होकर देश की सेवा से त्यागपत्र देना ।

२३.१.१८८७ को कटक शहर के एक वकील जानकीदास बोस के घर सुभाषचंद्र बोस का जन्म हुआ । मां-पिता की आज्ञानुसार १९२० में सुभाषचंद्रबोस भारतीय नागरिक सेवा की (इंडियन सिविल सर्विसेज की) परीक्षा में चौथे स्थानपर उत्तीर्ण हुए । वे देश की सेवा में सहयोगी हुए परंतु भारत में घट रही तात्कालिक घटनाओं के कारण,विशेष रूप से जालियांवाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओं के कारण, वे अस्थिर हो गए ।१९२१ में उन्होंने देश की सेवा से त्यागपत्र दे दिया ।

स्थान बद्धता में अंग्रेजों की दृष्टि से बचकर सुभाषचंद्र बोस का काबुल से जर्मनी जाना ।वहां से अन्य भाषाओ में ‘रेडियो’ संदेशों का प्रसारण करना ।

अपनी स्थान बद्धता में,२६.१.१९४१ को सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजों की दृष्टि से बचकर भाग निकले । काबुल एवं मास्को मार्ग से उन्होंने जर्मनी में प्रवेश किया। उन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी, बंगाली, तमिल,तेलगू, गुजराती एवं पुश्तू, इन भाषाओंमें प्रतिदिन रेडियो संदेश प्रसारित किए ।दक्षिण एशिया में जापान के आक्रमण के डेढ वर्ष उपरांत उन्होंने जर्मनी छोडी । उन्होंने १९४३ में जर्मन एवं जापानी पनडुब्बियों की सहायता से टोकियो में प्रवेश किया ।

जापान की सहायता से ४० सहस्रभारतीयों की ‘आजाद हिंद सेना’ की नींव डालना । भारतागमन पर ‘तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ ऐसा आवाहन करना।

४ जुलाई को उन्होंने पूर्व एशिया के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व ग्रहण किया । ५ जुलाई को, जापान की सहायता से ४० सहस्र (हजार) भारतीय स्त्री-पुरुषों के योगदान से ‘आजाद हिंदसेना’की स्थापना की । २१ अक्टूबर १९४३ को(?) भारतीय सरकार की स्थापना की गई। ‘आजाद हिंद सेना’द्वारा जापानी सेना के साथ रंगून मार्ग से भारत की ओर प्रयाण किया गया । १८.३.१९४४ को इस सेनाद्वारा भारतीय भूमिपर प्रवेश किया गया । ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ एवं ‘चलो दिल्ली’ ये उनकी घोषणाएं थीं तथा ‘जय हिंद’ उनकी युद्धघोषणा थी ।’

संदर्भ : दैनिक ‘नवप्रभा’

आजाद हिंद सेना का लोकप्रिय होना ।

१९४५ में जर्मनी एवं जापान युद्ध में हार गए । तब ‘आजाद हिंद सेना’के सिपाही पकडे गए । १९४६ को उनपर अपराध प्रविष्ट किया गया । तब तक ‘आजाद हिंद सेना’अत्यंत लोकप्रिय हो गयी थी । सुभाषचंद्रबोस का छायाचित्र घर-घर में लगावाया गया ।

अंग्रेजों  की सेना में विद्रोह

१९४६ में ‘रॉयल इंडियन नेवी’ तथा‘रॉयल इंडियन एअर फोर्स’द्वारा विद्रोह किया गया । अंग्रेज शासनद्वारा की गईगुप्त जांच-पडतालद्वारा ज्ञात हुआ, किअंग्रेज सरकार के अधिकतर भारतीय सिपाहियों को ‘आजाद हिंद सेना’ के प्रति सहानुभूति (अनुकम्पा) है तथा वे उनपर चल रहे विविधि कार्य के विरोध में हैं ।अंग्रेजों को जब यह ज्ञात हुआ, कि जिन सिपाहियों के आधारपर (बलपर) वे भारतपर राज(शासन) करना चाहते हैं, वे ही उनके पक्ष में नही हैं; तब अंग्रेजों के सामने अन्य कोई भी विकल्प नहीं रहा । उन्होंने अपना बोरिया-बिस्तर समेटना आरंभ कर दिया ।

– श्री. जितेंद्र जोशी (अभय भारत, १५अगस्तसे १४ सितंबर २००९)

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