स्वयं में ‘मितव्ययी’ इस गुण की वृद्धी करें !

भगवानजी की कृपा से मनुष्य को अनेक सुविधाएं उपलब्ध हुई हैं । इन सुविधाओं का अपव्यय टालकर, आवश्यकतानुसार उपयोग करना, इसी को ‘मितव्ययी’कहते है ।

बच्चो, मां-पिताद्वारा आपको मनचाही वस्तुएं प्राप्त होती हैं । इसी कारण आप पैसों के मूल्य से अभिज्ञ है; परंतु बडे होकर आप स्वयं पैसा कमाने लगेंगे, तब आपको उसका खरा मूल्य समझ में आयेगा । इसीलिए आपने मनपर ‘मितव्यय’ इस गुण का संस्कार अभी से प्रारंभ होना चाहिए, क्या यह सत्य नहीं ?

अ. ‘मितव्यय’ बनने से होनेवाले लाभ

१. राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा होना : पानी, बिजली, पेट्रोल, डिजल इनकी सबकी गणना राष्ट्रीय संपत्ति में होती है । इनका सोच-समझकर उपयोग करने से राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा होती है ।

२. प्रकृति का संतुलन बनाएं रखना : हमारेद्वारा अत्यधिक मात्रा में पेडों को काटा गया है । इससे प्रकृति का संतुलन बिगड चुका है । इस कारण तापमान में वृद्धी होना, समयपर वर्षा का न होना, हिम का अत्यधिक मात्रा में पिघलना इत्यादी समस्याएं निर्माण हो चुकी हैं । यदि कागद (कागज) जैसी वस्तुओं का भली भांति रूप से उपयोग करनेपर ही वनसंपत्ति की बचत होगी एवं प्रकृति का संतुलन भी बना रहेगा ।

आ. स्वयं में ‘मितव्ययी’ इस गुण की वृद्धी करने के लिए निम्नलिखित सूत्रोंका पालन करें

आ १. पानी

१. मुंह धोना, स्नान करना (नहाना), वस्त्र एवं बर्तन मांजना आदि कृत्यों में आवश्यकता न होनेपर नलको बंद रखें ।

२. पानी लेने के उपरांत ‘नल ठीक बंद किया है ना’, इसकी जांच करें ।

३. कुछ लोग पीने के लिए गिलास भरकर पानी लेते है तथा कुछ घूंट पीकर बचा पानी फेंक देते है । इससे पानी का अपव्यय होता है । इसे टालने के लिए जितना आवश्यक हो उतना ही पानी बर्तन में लें ।

आ २. बिजली

१. कक्ष में अनावश्यक पंखे (फेन) तथा बत्तियां (लाईट) बंद करें ।

२. कक्ष के सभी पंखे एवं बत्तियों को, ‘वस्तुतः इनको आरंभ रखना कितना आवश्यक है’, इसकी पुष्टि करें।

३. स्नानगृह एवं शौचालय के बाहर आनेपर वहां की बत्ती अवश्य बंद करें ।

४. दूरदर्शन संच (टीवी), आकाशवाणी संच (रेडिओ), संगणक (कम्प्युटर) इत्यादी बिजली के उपकरणों को आवश्यकता न होनेपर बंद रखें ।

आ ३. साबुन

१. कपडा धोना, बर्तन मांजना एवं नहाने के लिए उपयुक्त साबुन का उचित रूप से उपयोग करें ।

२. साबुन की टिकिया को उपयोग करने पश्चात उसे खडा कर रखें; जिससे टिकिया का क्षय अल्प होगा ।

३. शेष टुकडों को एकति्रत कर उसका हाथ धोने में, कंघी साफ करने में एवं फर्श साफ करने जैसे कार्यों के लिए उपयोग में लाएं ।

आ ४. कागद

१. पाठशाला में पुस्तकों के पन्नों को फाडना, पन्नोंपर आडी-तिरछी रेखाएं बनाना, बही के बीच के पन्नों को कोरा रखना इत्यादी कृत्य न करें ।

२. वायुयान (हवाई जहाज) तथा जलयान (जहाज) बनाने के लिए बही के कोरे पन्नों का उपयोग न कर निरुपयोगी कागदों को उपयोग में लाएं ।

३. एक पृष्ठ से (एक ओर से) कोरे रहनेवाले कागदों को न फेकें, उनको एकति्रत कर कच्ची टिप्पणी के लिए उपयोग में लाएं ।

४. अगली कक्षा में उत्तीर्ण होकर जाने के उपरांत गत वर्ष की बही के पन्नों को संग्रहित कर उसकी नई बही बनाएं । इस प्रकारकी बही वैयक्तिक टिप्पणियों के लिए उपयोग में लाएं ।

आ ५. पैसे

१. पेन,पेन्सील, (लेखन साहित्य), इरेजर, रंगपटल, चप्पल आदि वस्तु खरीदते समय पुरानी वस्तूओं का संपूर्ण उपयोग हुआ है ना, इसकी जांच करें । यदि वस्तू उपयोग में लाने योग्य हो तो, नई न खरीदें ।

२. कटे-फटे हुए कपडों को फेंक देने की अपेक्षा उसे योग्य प्रकार से सिलकर लंबे समय तक उपयोग में लाएं ।

३. यदि पुराने कपडों से उब कर उनको फेकने की अपेक्षा किसी निर्धन (गरीब) बच्चे को दें ।

४. दप्तर, कंपासपेटी जैसी वस्तुएं संभालकर एवं व्यवसि्थत उपयोग में लाएं । जिससे ये वस्तुएं ४-५ वर्षों तक भी उपयोग में लाई जा सकती हैं ।

५. संपूर्ण वर्ष पुस्तकों को संभालकर रखें । जिससे ये पुस्तकें आगे चलकर आपके छोटे भाई-बहनों के लिए उपयुक्त होंगी अथवा किसी निर्धन (गरीब) छात्र को दें ।

६. नवीन वस्तुएं खरीदते समय ‘उसकी वस्तुतः कितनी आवश्यकता है’ इसका विचार करें ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ, ‘सुसंस्कार तथा अच्छी आदतें’

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