माता-पिता एवं घर के बडे व्यक्तियों को झुककर नमस्कार करें !

माता-पिता एवं घर के बडे व्यक्तियों को झुककर नमस्कार करें !

भारतीय परंपरानुसार संध्या के समय दिया-बाती के उपरांत घर से बाहर निकलते समय, यात्रा से घर लौटनेपर, नए कपडे परिधान करनेपर, ऐसे विविध प्रसंगों में घर के बडों के पैर छूने की रीति है । एकप्रकार से यह आशीर्वाद लेने की ही पद्धति है । बच्चो, आगे दिया हुआ लेख पढकर नमस्कार करने की कृति के पीछे का शास्त्र समझ लें एवं उस अनुसार आचरण कर सुखी हों !

माता-पिता, उसी प्रकार घर में अपनों से सभी बडे-बूढों को झुककर, अर्थात उनके चरण स्पर्श करके नमस्कार करें ।

कुछ बच्चों को मां-पिताजी को झुककर नमस्कार करने में लज्जा आती है । बच्चों के लिए मां दिनभर में १० बार नीचे झुकती है । बाहर खेलते समय बच्चोंद्वारा पडोसी की कुछ हानि हो गई, तो पडोसीद्वारा सुनाई गई खरी-खोटी (अपमान) पिताजी सहन करते हैं । ऐसे माता-पिता को झुककर नमस्कार करने में क्यों लाज आनी चाहिए ? बच्चो, आज से करेंगे न सभी माता-पिता को झुककर नमस्कार ?

केवल माता-पिताजी को ही नहीं, अपितु दीदी-भैयासहित घर के सभी बडों को भी झुककर नमस्कार करें । बच्चों, जहां-जहां बडप्पन हो, फिर वह आयु, ज्ञान, कला किसी में भी हो, वहां-वहां आपका मस्तक झुकना ही चाहिए ।

बडों को झुककर नमस्कार क्यों करें ?

बडों को झुककर नमस्कार करने से उनके प्रति आदरभाव व्यक्त होता है, उसी प्रकार अपने में नम्रता आती है । ‘झुककर नमस्कार करना’, यह गर्व (अहंकार) अल्प(कमी) करने का सरल उपाय है ।

 ‘बाढ में वृक्ष बह जाते हैं; परंतु छोटे पौधे रह जाते हैं ।’ अर्थात जिसमें नम्रता है, सदैव वही टिकता है ।

माता-पिता को नमस्कार करने में लज्जा नहीं आनी चाहिए !

`मातृदेवोभव । पितृदेवो भव । (अर्थात माता-पिता देवता समान हैं ।)’, ऐसी हमारी महान हिंदू संस्कृति की सीख है । `माता-पिता तथा गुरू की सेवा करना, सबसे उत्तम तपस्या है’, ऐसा `मनुस्मृति’ ग्रंथमें कहा गया है । भक्त पुंडलिक की इस तपस्या के कारण ही भगवान विट्ठल उसपर प्रसन्न हुए थे । बच्चों, पुंडलिक का आदर्श सामने रखकर माता-पिता की आज्ञा का पालन मनःपूर्वक करें तथा लीन भाव से उनकी सेवा करना, हमारा कर्तव्य ही है ।

तुष्टायां मातरि शिवे तुष्टे पितरि पार्वति ।
तव प्रीतिर्भवेद्देवि परब्रह्म प्रसीदति ।।२६।।
– महानिर्वाणतंत्र

भावार्थ : माता-पिता के संतुष्ट होने से परमेश्वर भी प्रसन्न होत; हैं । इस हेतु बच्चों, माता-पिता द्वारा बताया हुआ मन से सुनों । उनके काम में उन्हें मदद करो । उन्हें देवता समान मानकर उनकी सेवा करो ।

प्रत्येक बच्चे को माता-पिता का कृतज्ञ होना चाहिए । हमें किसी भी सामान्य व्यक्ति के समक्ष विनम्र होना चाहिए । हमें अन्यों से मान सम्मान के साथ ही आचरण करना चाहिए । प्रत्येक मात-पिता ने अनेक कष्ट सहे हैं तथा त्याग किया होता है । यदि शिक्षक अथवा माता-पिता ने बच्चे को दंड दिया तो भी बच्चों को उस हेतु कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । वे हमारे ऊपर क्रोधित क्यों हुए, इसका बच्चों को चिंतन करना चाहिए । `निश्चित ही हमारी कोई चूक होगी’, ऐसा सूज्ञ विचार उसे करना चाहिए । क्योंकि क्रोध करने से माता-पिता अथवा शिक्षक का व्यक्तिगत कोई लाभ नहीं होता । अपना बच्चा सुधरे, उसका आचरण आदर्श हो तथा लोग उसे अच्छा कहे इन बातों की ललक के पीछे वह क्रोध होता है । अन्यों के बच्चों को माता-पिता क्रोध नहीं करते । अपने बच्चे के प्रेम के लिए यह क्रोध होता है एवं इसलिए बच्चों को इस बारे में मन में क्रोध न रखकर माता-पिता तथा शिक्षकों का आभार ही मानना चाहिए । इस दुनिया में मुफ्त ऐसा कुछ भी नहीं मिलता । हमारे माता-पिता हमारे लिए मिठाई, खिलौने, अन्न, वस्त्र आदि सर्व वस्तुएं प्रेम से लाकर देते हैं । उसके बदले में बच्चे उन्हें क्या देते हैं ? वे पैसे तो दे नहीं सकते । कम से कम बच्चे माता-पिता का आदर तो करें । घर के बडों के प्रतिदिन चरण स्पर्श कर उनके आशीर्वाद लें । किसी ने हमें कुछ दिया, तो हम उनका आभार मानते हैं । आदरपूर्वक आभार मानने की अथवा कृतज्ञता व्यक्त करने की पारंपरिक भारतीय पद्धति अर्थात झुककर नमस्कार करना है । कुछ बच्चों को अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने में लज्जा आती है । हमारी मां हमारा मल-मूत्र साफ करना, कपडे धोना, हमारी पसंद का भोजन बनाना, खाना खिलाने के लिए दिन में कितनी ही बार हमारे लिए नीचे झुकती है । बच्चे की चूक के कारण अनेक बार माता-पिता को लज्जा से सिर नीचे झुकाना पडता है । इन सब बातों का ऋण चूकाना संभव ही नहीं है । ऐसे में कम से कम माता-पिता को झुककर नमस्कार करने में बच्चों को लज्जा नहीं आनी चाहिए ।

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ, ‘सुसंस्कार तथा अच्छी आदतें’