श्री गणेश पूजन में प्रयुक्त विशेष वस्तुएं एवं उनका शास्त्रीय आधार

गणपति को दूर्वा अर्पित किए जाने के विविध कारण

१. दूर्वा

दूर्वा

पौराणिक कारण : ‘गणपति से विवाह करने की कामना से एक अप्सराने ध्यानमग्न गणपाति का ध्यानभंग किया । जब गणपति विवाह के लिए तैयार नहीं हुए, तब अप्सराने गणपति को श्राप दिया । इससे गणपति के मस्तक में दाह होने लगा, जिसे कम करने के लिए गणपतिने मस्तकपर दूब धारण की; इसलिए गणपति को दूब चढ़ाते हैं ।’

आयुर्वेद के अनुसार कारण : आयुर्वेद भी बताता है कि, ‘दूब की रस से शरीर का दाह कम होता है ।’

आध्यात्मिक कारण : पूजा का एक उद्देश्य ऐसा भी होता है कि, जिस मूर्ति की हम पूजा करते हैं, उसके देवत्त्व में वृद्धि हो व चैतन्य के स्तरपर हमें उसका लाभ हो । इसलिए उस देवता को उनका तत्त्व अधिक से अधिक आकृष्ट करनेवाली वस्तुएं चढ़ाना उपयुक्त होता है । दूर्वा में श्री गणेशतत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता सर्वाधिक होती है, अत: श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाते हैं ।

दूर्वा कैसी हो ? : गणपति को चढ़ाई जानेवाली दूर्वा कोमल हो । इसे बालतृणम् कहते हैं । जीर्ण होनेपर वे एक प्रकार की घास जैसी हो जाती हैं । दूर्वा की पत्तियां ३, ५, ७ की विषम संख्या में हों ।

दूर्वा की संख्या कितनी होनी चाहिए ? : विषम संख्याएं शक्ति से संबंधित होती हैं ।अधिकतर विषम संख्या में (न्यूनतम ३ अथवा ५, ७, २१ इत्यादि) अर्पण करते हैं । विषम संख्या के कारण मूर्ति में अधिक शक्ति आती है । गणपति को विशेषत: २१ दूर्वा अर्पण करते हैं ।

२. गुढल (लाल फूल)

गुढ़ल (लाल फूल)

लाल रंग की वस्तुएं : गणपति का वर्ण लाल है; उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है । इस लाल रंग के कारण वातावरण से गणपति के पवित्रक मूर्ति में अधिक मात्रा में आकृष्ट होते हैं व मूर्ति के जागृतिकरण में सहायता मिलती है । क्योंकि यह समझना कठिन है, इसलिए ‘गणपति को लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन प्रिय हैं’, ऐसा कहकर यह विषय प्राय: समाप्त कर दिया जाता है । गणपति को गंध अनामिकाद्वारा (छोटी उंगली के पासवाली उंगली से) उंगली से लगाएं ।गणपति को जास्वंद अथवा लाल रंग के पुष्प आठ अथवा आठ की गुणा में चढाएं । पुष्प चढाते समय फूलों की डंठल भगवान की ओर होनी चाहिए तथा गणपति को आठ प्रदक्षिणा लगाएं ।

३. मोदक

मोदक

अ. ‘मोद’ अर्थात आनंद व ‘क’ का अर्थ है छोटासा भाग । अत: मोदक अर्थात आनंद का छोटासा भाग । मोदक का आकार नारियल समान, अर्थात ‘ख’ नामक ब्रह्मरंध्र के खोल जैसा होता है । कुंडलिनी के ‘ख’ तक पहुंचनेपर आनंद की अनुभूति होती है । हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है ।

आ. ‘मोदक ज्ञान का प्रतीक है, इसलिए उसे ज्ञानमोदक भी कहते हैं । आरंभ में लगता है कि ज्ञान थोड़ासा ही है (मोदक का ऊपरी भाग इसका प्रतीक है ।); परंतु अभ्यास आरंभ करनेपर समझ आता है कि ज्ञान अथाह है । (मोदक का निचला भाग इसका प्रतीक है ।) जैसे मोदक मीठा होता है, वैसे ही ज्ञान से प्राप्त आनंद भी ।’

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ, ‘श्री गणपति ‘