श्री गणेश चतुर्थी

मित्रो, प्रदूषणमुक्त एवं शास्त्रानुसार गणेशोत्सव मनाकर श्री गणेश की कृपा संपादन करे !

         विद्यार्थी मित्रो, भगवान श्री गणेश सर्व हिंदुओं के आराध्य देवता हैं । इसके साथ ही भगवान गणेश बुद्धी के देवता भी हैं । वे यदि हमें बुद्धी नहीं देते, तो हम अभ्यास कर ही नहीं सकते । गणपति सभी को आनंद देनेवाले देवता हैं । मित्रो, ऐसे देवता का उत्सव हमें शास्त्र के अनुसार मनाना चाहिए, तभी हमपर गणपति देवता की कृपा होगी । मित्रो, जब गणेशोत्सव आता है; तो हमें आनंद होता है न ? आज हम शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं तथा गणपति के नामों का अर्थ एवं गणेशोत्सव के अनाचार कैसे बंद करें, यह देखेंगे ।

१. सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाने के पीछे की पार्श्वभूमि

१ अ. लोगों में संकीर्णता दूर होकर ‘मेरा गांव मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार  मनपर अंकित करना : मित्रो, लोकमान्य तिलकद्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाना आरंभ किया गया । हम पहले घर-घर गणपति बैठाते थे और आज भी वह परंपरा चली आ रही है । तब भी लो. तिलकद्वारा सार्वजनिक उत्सव क्यों आरंभ किया गया ? वह इसलिए कि हमारी संकीर्णता घर तक ही सीमित न रहे, अपितु पूर्ण गांव एवं नगर में सर्व लोग अपना भेदभाव एवं लडाई-झगडे भुलाकर एकत्र आएं और सभी में संघ भावना बढे । ‘मेरा घर मेरा गणपति’ इसकी अपेक्षा ‘मेरा गांव और मेरा गणपति’, यह व्यापक विचार प्रत्येक के मनपर अंकित हो, इसके लिए यह उत्सव सार्वजनिक किया गया ।

१ आ. संगठितता बढाना : उस समय अंग्रेज अत्याचार कर रहे थे । ऐसी स्थिती में हम सभी संगठित रहें, यही लोकमान्य तिलक का उद्देश्य था । आज देश के सामने आतंकवाद के साथ-साथ अनेक समस्याएं हैं और उन्हें दूर करने के लिए हम सभी को संगठित रहना चाहिए ।

२. धर्मशिक्षा न होने के कारण शास्त्र ज्ञात न होने से अनेक अनाचारों का समावेश होना

         मित्रो, गणेशोत्सव शास्त्र के अनुसार मनाना चाहिए, तब ही हमपर गणपति की कृपा होगी । हमें धर्म की शिक्षा न दी जाने के कारण ‘गणेश’के नाम का भावार्थ भी नहीं ज्ञात है, गणेशपूजन शास्त्र के अनुसार कैसे मनाएं, यह भी ज्ञात नहीं; इसलिए आज अपने उत्सवों में अनेक अनाचार हो रहे हैं । उन्हें रोकने से ही हमपर गणपति की कृपा होनेवाली है ।

२ अ. शास्त्रानुसार गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?

२ अ १. उत्सव के लिए बनाए जानेवाली श्री गणेश की झांकी अथवा साज-सज्जा

२ अ १ अ. साज-सज्जा सात्विक तथा पर्यावरण के लिए घातक न होनेवाली होनी चाहिए : मित्रो, हम गणपति आने से दो दिन पूर्व सजावट करते हैं । सजावट सात्विक और पर्यावरण के लिए घातक नहीं होनी चाहिए । भगवान गणेशजी का मंडप बांस से बनाएं । उसकी साज-सज्जा के लिए केले के तने का उपयोग कर सकते हैं । नैसर्गिक वस्तुओं का अधिकाधिक उपयोग करने से उन वस्तुओं को विसर्जित कर सकते हैं और उनसे पर्यावरणपर घातक परिणाम भी नहीं होता है । इसके साथ ही यदि उनमें से टिकाऊ वस्तुएं यदि घर में रह जाएं, तब भी उनमें आए हुए गणेश तरंगों के  चैतन्य का लाभ गणेशोत्सव के उपरांत भी घर के सभी सदस्यों को प्राप्त होता है और घर का वातावरण आनंदमय रहता है ।

२ अ १ आ. कागदी पताका का उपयोग करना : साज-सज्जाके लिए कागदकी पताकाओंका उपयोग कर सकते हैं । इससे साज-सज्जा अच्छी होती है । तदुपरांत कागद विसर्जित कर सकते हैं ।

२ अ १ इ. आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं : आम के पत्तो का बंदनवार का अधिकाधिक उपयोग करें । इस कारण वातावरण की गणेश तरंगों का अधिकाधिक लाभ होता है एवं किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है ।

२ अ २. अयोग्य प्रकार की तथा पर्यावरण के लिए घातक साज-सज्जा टालना

२ अ २ अ. थर्मोकोल के कारण प्रदूषण में वृदि्ध होना : आजकल हमें शास्त्र ही ज्ञात न होने के कारण साज-सज्जा के लिए थर्मोकोल का अत्यधिक उपयोग किया जाता है । थर्मोकोल पानी में विसर्जित करनेपर वह पानी में घुलता नहीं । जलाने से वातावरण में प्रदूषित वायु छोडी जाती हैं । इससे हम एक-प्रकार से प्रदूषण ही बढाते हैं । मित्रो, यह गणपति को अच्छा लगेगा क्या ? हमें प्रदूषणमुक्त साज-सज्जा करनी चाहिए अथवा नहीं ?

२ अ २ आ. विद्युत दीपों का अनावश्यक उपयोग करना : वर्तमान में हम साज-सज्जा के लिए रोशनाई का अत्यधिक उपयोग करते हैं । अनेक रंगीन दीपकों का उपयोग, उसी प्रकार बडे प्रमाण में बिजली की मालाओं का उपयोग करते हैं । इससे बिजली का अनावश्यक उपयोग होता है और बिजली व्यर्थ होती है । इससे गणेश तरंगों का अधिक लाभ नहीं होता है ।

         मित्रो, बिजली बचाना, यह अपना राष्ट्रीय कर्तव्य है । इससे हमपर भगवान गणेश की कृपा ही होनेवाली है । मित्रो, इस गणेशोत्सव में हमें बिजली का अत्यंत अल्प उपयोग कर के राष्ट्र की ऊर्जा बचानी है । हम देख ही रहे हैं कि अनेक गावों में बिजली नहीं है । शहरों में भी अनेक घंटे बिना बिजली के रहना पडता है । तब राष्ट्र के एक दक्ष नागरिक के रूप में राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाना आवश्यक है । यही गणेशजी को अच्छा लगेगा ।

२ अ २. श्री गणेशजी की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?

२ अ २ अ. मूर्ति अतिभव्य नहीं होनी चाहिए :  मित्रो, श्री गणेशजी की मूर्ति १ से २ फुट की होनी चाहिए । मूर्तिशास्त्र ज्ञात न होने से २० से २५ फुट की मूर्ति लाई जाती है । ऐसी भव्य मूर्ति की योग्य निगरानी करना भी कठिन होता है । इस मूर्ति का विसर्जन करते समय उसे ढकेला जाता है, इससे देवता का अनादर होता है । अपने गणेशजी का ऐसा अनादर होते देख हमें अच्छा लगेगा क्या ? नहीं न ? इसलिए बडी मूर्ति लाने के लिए विरोध करना चाहिए ।

२ अ २ आ. ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति की अपेक्षा प्रदूषण विरहित चिकनी मिट्टी की मूर्ति लाएं : अपने धर्मशास्त्र में बताए अनुसार गणेशमूर्ति चिकनी मिट्टी की होनी चाहिए । वह प्रदूषण विरहित होती है । आजकल हम ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की मूर्ति लाते हैं । वह शीघ्र पानी में नहीं घुलती है एवं मूर्ति के अवशेष पानी के बाहर आ जाने से मूर्ति का अनादर होता है । क्या ऐसा अनादर होने देना चाहिए ? नहीं न ? फिर हमें ही लोगों का प्रबोधन करके चिकनी मिट्टी की ही मूर्ति लाने के लिए आग्रह करना चाहिए ।

२ अ २ इ. कागद की लुगदी से बनाई गई मूर्ति का उपयोग करना अयोग्य : कागद की लुगदी से बनाई गई मूर्ति भी न लाएं; वह इसलिए कि शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टी की मूर्ति में वातावरण में विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागद में नहीं है । अर्थात पूजक को श्री गणेशजी की तरंगों की पूजा करने से लाभ नहीं होगा ।

२ अ २ ई. रासायनिक रंगों की मूर्ति न लाकर नैसर्गिक रंगों का उपयोग की हुई मूर्ति का उपयोग करें : मूर्ति रंगने के लिए रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है; परंतु शास्त्रानुसार नैसर्गिक रंगों का उपयोग करना चाहिए । जिससे मूर्ति विसर्जित करनेपर उन रंगों के कारण प्रदूषण नहीं होगा । अपने धर्मशास्त्रने पर्यावरण का सखोल विचार किया है । मित्रो, हमें लोगों को बताना चाहिए कि नैसर्गिक रंगों का उपयोग की हुई मूर्ति का ही उपयोग करें; वह इसलिए कि इसी से पर्यावरण की रक्षा होगी ।

२ अ २ उ. श्री गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप है, उसी रूप में मूर्ति बनाएं : मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में नहीं बनानी चाहिए । आजकल किसी भी आकार की मूर्ति बनाई जाती है । यह योग्य है क्या ? किसी नेता अथवा किसी संत के रूप में मूर्ति बनाते हैं । हमें इसका विरोध करना चाहिए । मित्रो, अपने माता-पिताजी को अलग रूप में दिखाया जाना आपको अच्छा लगेगा क्या ? श्री गणेशजी जैसे मूल रूप में हैं, वैसी ही मूर्ति होनी चाहिए, तब ही श्री गणेशजी की शक्ति उस मूर्ति में आएगी एवं हमें उस शक्ति लाभ होगा । इसलिए हमें ऐसी मूर्ति लाने का विरोध करना चाहिए । करेंगे न ?

२ अ ३. श्री गणेशजी की मूर्ति घर में लाते समय कैसा भाव होना चाहिए ?

२ अ ३ अ. ‘वास्तव में भगवान घर आएंगे’, ऐसा भाव होना चाहिए : मूर्ति घर में लाते समय हमें ऐसा भाव रखना चाहिए कि वास्तव में भगवान हमारे घर आनेवाले हैं । मूर्ति लाते समय नामजप करें । तब हम श्री गणेशजी के नाम का जयघोष कर सकते हैं, और भजन गा सकते हैं ।

         आजकल हम देख रहे हैं कि श्री गणेशजी को लाते समय सिनेमा के गीत लगाए जाते हैं । ऐसे गीत लगाने तथा उनकी तालपर चित्र-विचित्र हावभाव करते हुए नाचना अत्यंत अयोग्य है । ऐसे में अनावश्यक बोलना तथा पटाखे लगाना भी अयोग्य है ।

         मित्रो, ऐसे वर्तन से गणपति को अपने घर आने समान प्रतीत होगा क्या ? नहीं न ? फिर गणपति को लाते समय भगवान को अच्छा लगे, ऐसा व्यवहार रखना चाहिए, तभी उनकी कृपा होगी और भगवान को अपने घर आने की इच्छा होगी ।

२ अ ४. अपने घर में भगवान श्री गणेशजी के आगमन के उपरांत उनका लाभ कैसे लें ?

२ अ ४ अ. गणपति का नामजप और प्रार्थना करना : श्री गणेशजी के घर आनेके उपरांत उनका नामजप करना चाहिए । उनसे बोलने का प्रयत्न करना चाहिए । उनसे प्रार्थना एवं मानसपूजा करनी चाहिए । गणपतिजी का गुणगान करनेवाले भजन कहने चाहिए । सुरमें तथा भावपूर्ण आरती गाएं ।

         कुछ बच्चे पत्ते खेलने में, क्रिकेट मैच देखने तथा धारावाहिक देखने में मग्न हो जाते हैं । धारावाहिक में हत्या, मारपीट इत्यादि प्रसंगों से अपना मन भगवान के स्मरण से दूर चला जाता है । बच्चो, हमें इसे टालना चाहिए, तब ही गणपति की कृपा संपादन कर पाएंगे !

२ अ ४ आ. चिल्लाते हुए आरती करने से भगवान का अपमान होता है इसलिए भावपूर्ण तथा आर्तता से आरती करें : हम देवताओं की आरती करते हैं । आरती अर्थात भगवान को आर्तता से पुकारना । यदि ऐसा है तो मित्रो, हम आरती भावपूर्ण तथा आर्तता से करते हैं क्या, इसका विचार करें । चिल्लाते हुए आरती करना, बीच में ही कोई शब्द ऊंचे स्वर में एवं विचित्र आवाज में बोलना, सिनेमा के गीतों की चालपर आरती बोलना इत्यादि टालें । अपने सामने प्रत्यक्ष श्री गणेशजी ही हैं । उन्हें यह अच्छा लगेगा क्या ? मित्रो, तुम्हें कोई चिल्लाते हुए आवाज दे, तो तुम्हें अच्छा लगेगा क्या ? तो फिर भगवान को कैसे अच्छा लगेगा ? ऐसा करना भी एक प्रकार से भगवान का अनादर ही हुआ, इसलिए उसे टालना चाहिए ।

२ अ ५. कौन से कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए ?

२ अ ५ अ. राष्ट्रप्रेम तथा भगवान के प्रति भक्तिभाव जागृत करनेवाले कार्यक्रम होने चाहिए : गणपति लाने के उपरांत प्रवचन, कीर्तन, भजन, भक्तिभाव जागृत करनेवाली नाटिका, क्रांतिकारियों के जीवन के प्रसंग बतानेवाले व्याख्यान, राष्ट्रप्रेम जागृत करनेवाले कार्यक्रम आयोजित करें । सिनेमा के गीतोंपर नृत्य करना, सिनेमा के गीत-गायन के कार्यक्रम, संगीत कुर्सी इत्यादि कार्यक्रम न रखते हुए गणपति स्तोत्रपठन की स्पर्धा आयोजित करें । मित्रो, जिन कार्यक्रमों से भगवान के विषय में भक्तिभाव जागृत नहीं होगा, ऐसे कार्यक्रम रखना अयोग्य ही है । ऐसे कार्यक्रमों में सहभागी न हों । अन्यथा हम भी पाप के भागीदार होकर गणपति की अवकृपा के ही पात्र होगे ! हम भगवान से ही प्रार्थना करेंगे, ‘हे गणेश भगवानजी, मुझे ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहने की शक्ती आप ही दें ।’

३. गणेशजी के विविध नाम तथा उनका अर्थ

मुदग्ल ऋषिने ‘गणेशसहस्रनाम’ लिखा है । उसमें गणपति के ह़जार नाम दिए गए हैं ।  गणपति के कुछ नामों का अर्थ आगे दिया गया है ।

१. वक्रतुंड : सामान्यतः वक्रतुंड का अर्थ ‘वक्र मुंह या सूंडवाला’ लगाया जाता है; परंतु यह गलत है । ‘वक्रान् तुण्डयति इति वक्रतुण्ड: ।’, अर्थात ‘वक्र (बुरे) मार्गपर चलनेवालों व बोलनेवालों को दंड देकर सीधे मार्गपर लानेवाले को वक्रतुंड कहते हैं ।’

२. एकदंत या एकशृंग : यह नाम इसलिए कि गणपति का एक ही दंत अखंड है (दूसरा टूटा हुआ है) । दो दंतों में से दाहिना दंत अखंड होता है, बायां दंत टूटा हुआ होता है ।

अ. दाहिनी बा़जू सूर्यनाड़ी की होती है । सूर्यनाड़ी तेजस्वी होती है, इसलिए ऐसे तेजस्वी भागका दंत कभी भी खंडित नहीं हो सकता ।

३. कृष्णपिंगाक्ष : कृष्ण + पिंग + अक्ष, इस प्रकार यह शब्द बना है । कृष्ण अर्थात सांवला, पिंग अर्थात धूमवर्ण (धुएं समान) व अक्ष अर्थात आंख । सांवला पृथ्वीके संदर्भ में है, धूमवर्ण मेघ के संदर्भ में है । पृथ्वी व मेघ जिसकी आंखें हैं, अर्थात वह जो पृथ्वीपर व मेघ में जो कुछ भी है, उसे संपूर्ण रूप से देख सकता है ।

४. गजवक्त्र : गज अर्थात मेघ । इसे द्यु (देव) लोकोंका प्रतिनिधि मानते हैं । वक्त्र अर्थात मुंह । गजवक्त्र अर्थात वह जिसका मुंह द्युलोक समान (विराट) है ।

५. लंबोदर : यह शब्द ‘लंब’ (अर्थात बड़ा) व ‘उदर’ के मेल से बना है ।

अ. लंबोदर शब्द का अर्थ संत एकनाथने कुछ ऐसा दिया है – चराचर सुष्टि आपके उदर में विचरती है, इसलिए आपको लंबोदर कहते हैं ।

६. विघ्नहर्ता : ‘हमारी पढाईमें आनेवाली बाधाएं श्री गणपति दूर करते हैं । हम यदि उनसे लगन से प्रार्थना करते हैं, तो वे हमारी सर्व बाधाएं दूर करते हैं; वह इसलिए कि वे विघ्न दूर करनेवाले ही हैं ।

७. बुदि्धदाता : श्री गणपति हमें साति्त्वक बुदि्ध देते हैं । वे हमें सतत योग्य विचार करना सिखाते हैं । अच्छे विचार हमें आनंद देते हैं । इसलिए हमें श्री गणपति से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे गणेश भगवानजी, मुझे सद्बुदि्ध दें ।’

८. विनायक : श्री गणपति भगवान सभी के ‘नायक’, अर्थात नेता हैं । विद्यार्थियों के जीवन में ‘नेतृत्व’ यह गुण महत्त्वपूर्ण है । श्री गणपति की कृपा संपादन कर के यह गुण भी आत्मसात करना चाहिए ।

९. मंगलमूर्ति : मं अर्थात परिपूर्ण व ग्लु-गायते अर्थात शांत अथवा पवित्र करना । मंगल वह है जो अंदर से व बाहर से पवित्र करता है । ऐसी मंगलकारी मूर्ति को मंगलमूर्ति कहते हैं । मंगलमूर्ति की उपासना करनेपर हम मंगलमय होते हैं । मंगल अर्थात पवित्र, अर्थात जिसमें कोई भी विकार नहीं हैं । अपने में दोष तथा अहं दूर करके पवित्र, आनंदमय होना है । इसके लिए भगवान श्री गणेशजी से प्रार्थना करेंगे, ‘हे भगवानजी, मुझमें विद्यमान दोष तथा अहं दूर करने की शक्ति एवं बुदि्ध दें तथा आपके समान मंगलमय बनाएं ।’

४. विद्यापति श्री गणपति की कृपा संपादन करने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है

         मित्रो, हम सभी विद्यार्थी हैं । विद्यार्थी  अर्थात सतत ज्ञान ग्रहण करने के लिए प्रयत्न करनेवाला । विद्या ग्रहण करनी हो, तो विद्यापति श्री गणपति की कृपा संपादन किए बिना हम ज्ञान नहीं ग्रहण कर सकते हैं । श्री गणेशचतुर्थी अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण दिन है । उसी प्रकार जिस बुद्धी से हम ज्ञान ग्रहण करते हैं, उसके बुद्धीदाता भी श्री गणपति हैं । बुद्धी सात्विक हुए बिना ज्ञान का आकलन नहीं होता; इसलिए विद्यार्थी मित्रो, हमें भी भगवान गणेश की अधिकाधिक कृपा संपादन करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । वास्तव में इन दिनों पृथ्वीपर गणेशतत्त्व बडे प्रमाण में आता है । उसका हम सभी को लाभ उठाना चाहिए ।’

५. महाराष्ट्र के अष्टविनायक तथा उनके स्थान

१. मोरेश्वर : मोरगांव, जनपद पुणे

२. बल्लाळेश्वर : पाली, जनपद रायगड

३. वरदविनायक : महड, रायगड

४. चिंतामणि : थेऊर, जनपद पुणे

५. गिरिजात्मज : लेण्याद्री, जनपद पुणे

६. विघ्नेश्वर : ओझर, जनपद पुणे

७. श्री गणपति : रांजणगांव, जनपद पुणे

८. गजमुख : सिद्धटेक, जनपद अहमदनगर

– श्री. राजेंद्र पावसकर (अध्यापक), देवद संकुल, पनवेल.