खुदीराम बोस

 

भारत के सबसे युवा क्रांतिकारी के रूप में परिचित खुदीराम बोस अपनी आयु के केवल १९ वें वर्ष में ही वीरगति को प्राप्त हुए । उनका जन्म बंगाल में स्थित मेदिनीपुर जिले के बहुवेनी गांव में दि. ३ दिसंबर १८८९ को हुआ था । बाल्यावस्था में ही माता (लक्ष्मीप्रियादेवी) तथा पिता (त्रैलोक्यनाथ) की मृत्यु होने के कारण बडी बहन अनुरूपादेवी तथा उनके पति अमृतलाल ने उनका पालन पोषण किया ।

ब्रिटिश शासन ने वर्ष १९०३ में बंगाल प्रांत का विभाजन करना निश्चित किया । सामान्य जनों में अत्यंत निराशा की लहर फैल गई । खुदीराम को भी बंगाल के विभाजन का यह निर्णय अन्यायकारी लगा, उनके मन में देश के लिए कुछ करने के विचार बारंबार आने के कारण मिदनापुर में थोडी-बहुत शिक्षा लेने के पश्चात् उन्होंने सशस्त्र क्रांति के मार्ग को स्वीकार किया । सरकार के विरूद्ध आंदोलन करनेवालों को पकडकर कठोर दंड दिए जाने लगे । कुछ ही दिनों में मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट का, जो क्रांतिकारियों को अमानुषिक दंड देते थे, वध करने का दायित्व क्रांतिकारियों के नेता बारीद्रकुमार एवं उपेंद्रनाथ को दिया तथा उनकी सहायता के लिए प्रफुल्लचंद्र चक्रवर्ती को नियुक्त किया । वे दोनों ही मुजफ्फरपुर आए एवं मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड पर ध्यान रखकर अवसर की प्रतीक्षा करने लगे । मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड का वध करने के उपरांत ही उन्होंने शासन के विरोध का संकल्प लिया । बंकिमचंद्र चट्टोपाध्यायजी के आनंदमठ उपन्यासमें वंदे मातरम गीत के माध्यम से उन्होंने लोगों में नवजीवन का संचार किया ।

खुदीराम ने किंग्जफोर्ड के वधका दायित्व स्वीकार किया । दि. १ अप्रैल १९०५ के दिन किंग्जफोर्ड की गाडीपर बम फेंककर उसका वध करना निश्चित हुआ एवं उसके अनुसार एक बम फेंका गया; परंतु वह बम गलती से दूसरी गाडीपर फेंके जाने से उस गाडी में सवार दो महिलाओं की मृत्यु होगई एवं किंग्जफोर्ड बच गया । खुदीराम एवं उनके सहायक तत्काल वहां से भाग गए । उसी रात खुदीराम चालीस कि.मी. दूर भागकर बेनी रेल स्टेशनपर आ गए । भूख लगने के कारण वह एक दुकानपर चने ले रहे थे, उस समय वहां का स्टेशनमास्टर र्पोटर को कह रहा था, ‘अरे, इस समाचार को पढा क्या?’ मजफ्फरपुर में दो मैडमों की हत्या कर दो लोग फरार हो गए हैं, उनको पकडने के लिए वारंट निकाला गया है । अभी आनेवाली गाडी में कोई मिलता है क्या देखो । खुदीराम ने यह बात सुनते ही एकदम से कहा, ”क्या, किंग्जफोर्ड मरा नहीं ।” निकट के लोगों को उनके इस वक्तव्य से आश्चर्य लगा एवं उन्हें आशंका हुई । तत्काल खुदीराम वहां से भागे । घटना के दूसरे दिन खुदीराम पकडे गए, प्रफुल्लने उनके पकडे जाने से पूर्व ही आत्महत्या कर ली थी । खुदीराम के पास दो पिस्तौलें एवं ३० कारतू सें मिलीं । उनपर धारा ३०२ के अंतर्गत अभियोग चलाकर फांसी का दंड दिया गया । ११अगस्त १९०८ के दिन यह युवक हाथ में गीता लेकर एवं ‘भारतमाता’ की जय कहते हुए हंसते हंसते प्रसन्नतापूर्वक फांसीपर चढ गया । सशस्त्र क्रांति में बम का उपयोग करनेवाला खुदीराम देश का पहला क्रांतिकारी बना ।

भारतीय डाकमुद्रांकपर अंकित खुदीराम बोसजी की प्रतिमा ।