देशभक्त बटुकेश्वर दत्त : एक महान क्रांतिकारी

आषाढ कृ. ५ (२०.७.२०११) बटुकेश्वर दत्त स्मृतिदिन

बटुकेश्वर दत्त (नवंबर १९०८ – १९ जुलाई १९६५) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे । स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त सर्वप्रथम ८ अप्रैल, १९२९ को राष्ट्र से परिचित हुए, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोटके पश्चात् बंदी बनाए गए ।

जन्म

बटुकेश्वर दत्त का जन्म १८ नवम्बर, १९१० को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला नानी बेदवान में (बंगाल में) हुआ था; परंतु पिता ‘गोष्ठ बिहारी दत्त’ कानपुर में नौकरी करते थे । बटुकेश्वरने १९२५ में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता एवं पिता दोनों  का देहांत हो गया । इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद के संपर्व में आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’के सदस्य बन गए । सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया । इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा ।

क्रांतिकारी जीवन

८ अप्रैल, १९२९ को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में (वर्तमान का संसद भवन) भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्यकी अधिनायकता का विरोध किया । बम विस्फोट बिना किसी को हानी पहुंचाए केवल पर्चोंके माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था ।

कारागृह जीवन

इस घटना के पश्चात् बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को बंदी बनाया गया । १२ जून, १९२९ को इन दोनों को आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया । दंड सुनाने के उपरांत इनको लाहौर फोर्ट कारागृह में भेजा गया । यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र अभियोग चलाया गया । उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन का विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के आदेशपर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई । अंग्रेजी राज के उत्तरदायी पुलिस अधिकारी को मारकर इस मृत्यु का प्रतिशोध चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था । इस कार्यवाही के परिणामस्वरूप लाहौर षडयंत्र अभियोग चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी । बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी भेज दिया गया । कारागृह में ही उन्होंने १९३३ और १९३७ में ऐतिहासिक भूख हडताल की । सेल्यूलर कारागृह से १९३७ में बांकीपुर केंद्रीय कारागृह, पटना में लाए गए और १९३८ में मुक्त कर दिए गए । काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त पुनः बंदी बनाए गए और चार वर्षों के पश्चात् १९४५ में मुक्त किए गए ।

बटुकेश्वर दत्त : जिन्हें स्वतंत्रता के उपरांत मिली केवल उपेक्षा

देशकी स्वतंत्रता के लिए अनंत दुःख झेलने वाले क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त का जीवन भारत की स्वतंत्रता के उपरांत भी दंश, यातनाओं, और संघर्षों की गाथा बना रहा और उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह अधिकारी थे ।
उन्होंने बिस्कुट और डबल रोटी का एक छोटासा उद्योगालय (कारखाना) खोला; परंतु उसमें बहुत हानि उठानी पडी और वह बंद करना पडा । कुछ समय तक यात्री (टूरिस्ट) प्रतिनिधि एवं बस परिवहन का काम भी किया; परंतु एक के पश्चात् एक कामों में असफलता ही उनके हाथ लगी ।

बीमारी में उपेक्षा के शिकार बटुकेश्वर दत्त

बटुकेश्वर दत्त के १९६४ में अचानक व्याधिग्रस्त होने के पश्चात् उन्हें गंभीर स्थिति में पटना के शासकीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया । इस पर उनके मित्र चमनलाल आजादने एक लेख में लिखा, ‘क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्माने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है । खेद की बात है कि जिस व्यक्तिने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की चिंता नहीं की और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में चिकित्सालय में पडा एडियां रगड रहा है और उसे कोई पूछनेवाला तक नहीं है ।’

इसके पश्चात सत्ता के गलियारों में हडकंप मच गया और चमनलाल आजाद, केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर से मिले । पंजाब शासनने एक सहस्र रुपए का धनादेश बिहार शासन को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री के. बी. सहायको लिखा कि यदि वे उनका वैद्यकीय उपचार कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली अथवा चंडीगढ में वैद्यकीय उपचार का व्यय वहन करने को तत्पर हैं ।

बिहार शासन क्रियाशील हो गयी और पटना वैद्यकीय महाविद्यालय में (मेडिकल कॉलेज) डॉ. मुखोपाध्यायने दत्त का उपचार चालू किया; परंतु उनकी स्थिति बिगडती गयी; क्योंकि उन्हें सही उपचार नहीं मिल पाया था और २२ नवंबर १९६४ को उन्हें दिल्ली लाया गया ।

दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, मैने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि, मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज बनकर स्ट्रेचर पर लाया जाऊंगा । उन्हें सफदरजंग चिकित्सालय में भर्ती किया गया । पीठ में असहनीय पीडा के उपचार में लिए जाने वाले कोबाल्ट ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल एम्स में थी; परंतु वहां भी कमरा मिलने में विलंब हुआ । २३ नवंबर को पहली बार उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और ११ दिसंबर को उन्हें एम्समें भर्ती किया गया ।

तदनंतर पता चला कि, दत्त बाबू को कैंसर है और उनके जीवन के चंद दिन ही शेष बचे हैं । भीषण पीडा झेल रहे दत्त अपने मुखपर वह पीडा कभी भी न आने देते थे । पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्तसे मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए । छलछलाए नेत्र और मंदस्मित के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए । बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि, मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के पास में किया जाए ।

जीवन के अंतिम क्षण

लाहौर षडयंत्र अभियोग के किशोरीलाल अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें उन्होंने पहचाना था । उनकी बिगडती स्थिति देखकर भगत सिंह की मां विद्यावती को पंजाब से कार से बुलाया गया । १७ जुलाई को वह कोमामें चले गये और २० जुलाई १९६५ की रात एक बजकर ५० मिनट पर दत्त बाबू इस संसार से विदा हो गये । उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के पास हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया ।