‘पर्यावरणीय युद्धतंत्र’के आवाहन !

‘गत कुछ वर्षों से शत्रुराष्ट्रों को हराने हेतु शत्रु की नैसर्गिक साधनसंपत्ति अधीन में लेने के साथ ही पर्यावरण को भी किसी शस्त्र समान प्रयोग किया जाता है !

विएतनाम के घने जंगलों और खेतोंपर धान्य नष्ट करने के लिए और जंगलों को उजाडने के लिए विषैली औषधियों के फव्वारे मारे गए । वहां के वातावरण में परिवर्तन करके कृत्रिम वर्षा करने के लिए प्रयत्न किए गए !

आगे दिए समान ‘पर्यावरणीय युद्धतंत्र’से भविष्य में प्रचंड मानवी संहार हो सकता है –

अ. उल्कों का मार्ग पलटकर शत्रु के प्रदेशपर उसका वर्षाव किया जा सकता है ।

आ. पृथ्वी से लगभग ८० किलोमीटर के बाद का संपूर्ण वायुमंडल आयान मंडल कहलाता है । शत्रुदेश के आकाश के आयानमंडल में (‘आयनोस्फियर’में ) अवरोध निर्माण कर उस देश की संपर्क यंत्रणा को अवरुद्ध कर सकते हैं ।

इ. नदियों के प्रवाह पलट जाएंगे । जिससे शत्रु को पीने के पानी की कमी होने की संभावना हो सकती है ।

ई. शत्रु के प्रदेशों की नदियां और सागर में रासायनिक अथवा नाभिकीय (न्युक्लीयर)अस्त्रों के द्वारा विष मिला सकते हैं ।

उ. शत्रु के सागरी किनारों के निकट समुद्र में विद्युत चुंबकीय तत्त्वों में परिवर्तन कर भूचुंबकीय आकर्षण के कारण प्रचंड लहरें निर्माण कर के शत्रु के समुद्र किनारेपर स्थित राज्यों को विध्वंस किया जा सकता है ।

ऊ. नए रसायनिक अणूप्रकल्प, खनिज तेल के कुंए और बडे बांध, यह भविष्य काल में पर्यावरणीय युद्धतंत्र में के महत्त्वपूर्ण स्थान हैं ।

– आर्थर वेस्टिंग, युद्धतंत्र एवं पर्यावरण तज्ञ.

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