निळकंठ कृष्णन् – पाकिस्तानी युद्धनौका ‘गाझी’की आखेट करनेवाले भारतीय नौकाधिपती !

१६ दिसंबर अर्थात बांग्लादेश मुक्ति का और भारतद्वारा पाकपर विजयप्राप्ति का दिन !

इस ऐतिहासिक विजयदिन को ४१ वर्ष हुए हैं । इस युद्ध में सेनादल के कंधे से कंधा मिलाकर नाविक दल भी लडा । पाकिस्तान की युद्धनौका गाझी को पानी में डूबा देने का सफल पराक्रम भारतीय नाविक दलने किया । इस युद्धनीति में नौकाधिपती कृष्णन्का महत्त्वपूर्ण योगदान था । उनके विषय में इतिहास बतानेवाला यह लेख…

१. भारतीय नाविक दल ने किया अपूर्व कर्तव्य का पालन !

‘इ.स. १९७१ के बांग्लादेश युद्ध में भारतीय नाविक दल ने पाकिस्तान की गाझी पनडुब्बी को डूबाकर और कराची के धक्केपर (बंदरगाह में) छोटी; किंतु वेगवान क्षेपणास्त्र नौकाओंने आक्रमण कर अपूर्व कर्तव्य (पराक्रम) निभाया ।

२. नाविक दल की ओर से छोटी क्षेपणास्त्र नौकाओं के प्रयोग का अभ्यास करवाया जाना और इसका लाभ आगे कराची बंदरगाह के आक्रमण के लिए होना

नाविक दल के लिए छोटी क्षेपणास्त्र नौकाएं अत्यंत उपयुक्त सिद्ध हो सकती हैं, यह बात बांग्लादेश युद्ध के कुछ वर्ष पहले ही नाविक दल की विकास-योजना बनानेवाले नावाधिपती (एडमिरल) कृष्णन्के ध्यान में आई थी और उन्होंने सुरक्षा विभाग से ऐसी नौकाएं खरीदने की जोरदार अनुशंसा (सिफारीश) की थी । इतना ही नहीं, तो आगे जाकर ये नौकाएं खरीदने के लिए प्रारंभिक चर्चा उन्होंने ही रशियन नाविक दल के प्रमुख ग्रँड एडमिरल गॉर्शकॉव्ह से की थी । तदुपरांत मुंबई में नाविक दल के पश्चिम विभाग के प्रमुख रहते हुए उन्होंने ही नाविक दलद्वारा ये नौकाएं चलाने का अभ्यास करवाया था । इसका लाभ आगे कराची बंदरगाह के आक्रमण में हुआ ।

३. दांवपेच सफल होने से गाझी विशाखापट्टणम् धक्के में आते ही वहांपर पहले से ही तैनात भूसुरंगों की आखेट होना

यही बात पाकिस्तान के गाझी पनडुब्बी की ! इ.स. १९७१ के युद्ध में ‘विक्रांत’ नामक भारत की विमानवाहक नौका इस पनडुब्बी का लक्ष्य होगी, इस बात को कृष्णन्ने पहचाना था । उस समय वे विशाखापट्टणम्में नाविक दल के पूर्व विभाग के प्रमुख थे और ‘विक्रांत’ उनके ही अधिपत्य में थी । ‘विक्रांत’पर आनेवाले संभावित संकट को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उसे विशाखापट्टणम् धक्के से अनेक किलोमीटर की दूरीपर बंगाल की खाडी में खडा किया था; किंतु आभास ऐसा बनाया था कि वह विशाखापट्टणम् धक्के में ही है । उद्देश्य यह था कि ‘विक्रांत’ को खोजते हुए गाझी विशाखापट्टणम् धक्के में आएं । उनका यह दावपेच सफल हुआ । गाझी विशाखापट्टणम् धक्के में आई और वहांपर पहले से ही तैनात भूसुरंगों की आखेट हुई ।

४. नौकाधिपती कृष्णन् युद्ध के दावपेचों के विशेषज्ञ होने से उन्हें भारतीय नाविक दल की विकास-योजना सिद्ध करने का काम सौंपा जाना

नावाधिपती कृष्णन् नाविक दल के युद्ध के दांवपेचों में विशेषज्ञ अधिकारी थे । दूसरे महायुद्ध में नाविक दल से टक्कर लेनेवाली ‘अचिलेस’ (जो आगे चलकर ‘आयएनएस दिल्ली’ के नाम से भारतीय नाविक दल में सम्मिलीत हुई) और ‘सफॉक’ नामक ब्रिटिश युद्धनौकाओंपर उन्हें सीधे युद्ध का ही अनुभव मिला था । इसलिए आगे भारतीय नाविक दल की विकास-योजना बनाने का काम उनपर सौंपा गया । तब उन्होंने नाविक दल में पनडुब्बीयां, विमानवाहक नौकाएं और तत्परता से प्रहार करने की क्षमातायुक्त नौका समाविष्ट करने को प्राथमिकता दी ।

५. बांग्लादेश के युद्ध की संपूर्ण और नियोजनबद्ध योजना नावाधिपती कृष्णन्द्वारा की जाना

बांग्लादेश का युद्ध भारतीय नाविक दल के लिए उल्लेखनीय और प्रशंसनीय, ऐसा पहला काम ! कराची धक्के के एक ही आक्रमण के अतिरिक्त नाविक दल को यह युद्ध प्रमुख रूप से बंगाल की खाडी में ही लडना पडा । बांग्लादेश से पलायन करने का प्रयत्न करनेवाली पाकिस्तानी सेना का सागरी मार्ग रोकना, चितगांव धक्के में भारतीय सेना और युद्ध सामग्री को नौका से उतारना, इस सेना को विक्रांत के विमानोंद्वारा हवाई सुरक्षा प्रदान करना आदि महत्त्वपूर्ण काम नाविक दल को करने पडे । उसकी नियोजनबद्ध और परिपूर्ण योजना नौकाधिपती कृष्णन्ने की थी । इसीलिए पूर्व पाकिस्तान के पाक सेना के  प्रमुख महासेनापती (लेफ्टनंट जनरल) नियाझी शरण में आएं, तब उसकी शरणागती का स्वीकार सेनापती (जनरल) अरोरा के साथ नाविक दल की ओर से नावाधिपती कृष्णन्ने भी किया था ।

६. पाकिस्तानी नाविक दल ने पनडुब्बीयां प्राप्त की थी,इसलिए पनडुब्बीविरोधी हेलिकॉप्टर समाविष्ट करने की अनुशंसा कृष्णन्द्वारा की जाना

भारतीय नाविक दल के पहले हीr पाकिस्तानी नाविक दल ने पनडुब्बीयां प्राप्त की थी । इसलिए नाविक दल के विकास की योजना बनानेवाले कृष्णन् बहुत चिंतित हुए थे । सागरी युद्ध में पनडुब्बीयां अत्यंत घातक सिद्ध हो सकती हैं । इसलिए उन्हें समय से पहले ही ढूंढकर नष्ट करना आवश्यक होता है । इसलिए पनडुब्बी के शोध और विनाश का तकनीक अवगत करना आवश्यक था ।

दूसरे महायुद्ध में पनडुब्बी के युद्ध का अनुभव होने के कारण कृष्णन्ने इसपर सर्व अंगों से विचार कर नाविक दल में पनडुब्बीविरोधी हेलिकॉप्टर समाविष्ट करने की अनुशंसा (सिफारीश) की और भारतीय नाविक दल में सुविख्यात ‘सी किंग’ हेलिकॉप्टर का समावेश हुआ ।’

– श्री. दिवाकर देशपांडे, ए सेलर्स स्टोरी,
लेखक : व्हाइस अ‍ॅडमिरल एन. कृष्णन, (महाराष्ट्र टाईम्स, २६.३.२०११)

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