महाशिवरात्रि

shiv

        ‘विद्यार्थी मित्रों, माघ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को `महाशिवरात्रि’ है । हम प्रतिवर्ष समान `महाशिवरात्रि’का उत्सव मनानेवाले हैं । पाठशालाओं में हमें हिंदू धर्म के देवताओं की जानकारी कोई भी नहीं देता । इसलिए हम अपने देवताओं के विषय में जानकारी किसी को भी निश्चित रूप से नहीं बता सकते । हिंदुओं के देवताओं के विषय में कोई भी कुछ भी बोलता है । उसमें देवताओं का उपहास किया जाता है । हम केवल सुन लेते हैं; परंतु उसका दृढता से उत्तर नहीं दे सकते । इसलिए महाशिवरात्रि के अवसरपर सभीको ‘शिव’ देवता के विषय में शास्त्रीय जानकारी ज्ञात होना आवश्यक है । अपने देवताओं का उपहास तथा अनादर रोकना ही देवता की खरी भक्ति करने जैसा है । देवताओं के विषय में जानकारी किसी को भी दृढता से नहीं बता सकते । हिंदुओं के देवताओं के विषय में कोई भी कुछ भी बोलता है । उसमें देवताओं का उपहास किया जाता है । हम केवल सुन लेते हैं; परंतु उसका दृढतापूर्वक उत्तर नहीं दे सकते । इस हेतु महाशिवरात्रि के अवसरपर सभी को ‘(उस उस देवता का नाम लिखें)’ इस देवता के विषय में शास्त्रीय जानकारी ज्ञात होना आवश्यक है । हमारे देवताओं का उपहास तथा अनादर रोकना, ही ईश्वर की खरी भक्ति करने जैसा है ।

         निम्नलिखित लेख में शिवजी की जानकारी, उनका कार्य, उनकी उपासनापद्धति तथा शिवजी की भक्ति करने से होनेवाले लाभ इत्यादि के विषय में सूत्र देखेंगे ।

१. ‘शिव’ शब्दका अर्थ

         ‘शिव’ शब्द का अर्थ ‘मंगलमय तथा कल्याणस्वरूप’ है ।

२. शिवजी को प्रार्थना करना क्यों आवश्यक है ?

         हिंदू धर्म के देवता प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में आनंद तथा शांति मिलने हेतु शक्ति देते हैं; परंतु इसके लिए हमें देवताओं की उपासना (अर्थात प्रार्थना) करनी चाहिए । प्रार्थना, देवताओं को प्रसन्न करने का सहज एवं सरल साधन है । शिवजी को भी प्रार्थना करने से वे शीघ्र प्रसन्न होकर कृपा करते हैं ।

३. शिवजी के प्रचलित नाम तथा उनका भावार्थ

३ अ. महादेव : शिवजी में परिपूर्ण पवित्रता तथा ज्ञान है । इसलिए हम उन्हें ‘महादेव’ कहते हैं । मित्रों, ऐसे महादेव की उपासना करने से हम भी परिपूर्ण बन सकते हैं ।

३ आ. त्रिनेत्र : शंकरजी को ‘त्रिनेत्र’ भी कहते हैं । भूतकाल, वर्तमानकाल तथा भविष्यकाल की सभी घटनाएं देख सकनेवालों को ‘त्रिनेत्र’ कहा जाता है ।

३ इ. कर्पूरगौर : शिवजी का रंग कर्पूर जैसा है; इसलिए उन्हें ‘कर्पूरगौर’ कहते हैं ।

४. शिवजी के मस्तकपर स्थित चंद्ररेखा तथा व्याघ्रांबर की विशेषताएं

४ अ. चंद्ररेखा की विशेषता तथा उससे संबंधित गुण : शिवजी के मस्तकपर चंद्ररेखा है । वह चंद्ररेखा शिवजी की ममता, क्षमाशीलता तथा वात्सल्य गुण दर्शाती है । उन गुणों का आगे विश्लेषण किया गया है ।

४ अ १. ममता : ममता अर्थात प्रेम ! हमारे मन में अन्यों के लिए बहुत प्रेम होना चाहिए । आज के बच्चे एक दूसरे को विकृत पद्धति से मारते हैं । मखौल उडाते हैं । यह ममता है क्या ? नहीं न ? हमें सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए । सभी की सहायता करना चाहिए । छोटे-बडों से नम्रता से बोलना चाहिए । ऐसा करने से शिवजी की कृपादृष्टि हमपर निरंतर बनी रहेगी ।

४ अ २. क्षमाशीलता : किसी मित्र से चूक होनेपर हमें उसे क्षमा करनी चाहिए । वर्तमान में बच्चे छोटे-छोटे कारणों से तुरंत मार-पीट करते हैं । जिसमें क्षमाशीलता है, वह शांति से अपनी चूक बताता है तथा स्वयं को ही सुधारने का प्रयास करता है । ऐसे बच्चोंपर शिवजी की कृपा शीघ्र होती है । सभी को इस हेतु प्रयास करने चाहिए ।

४ अ ३. वात्सल्य : वात्सल्य अर्थात सभी को मां के समान प्रेम करना ! यह शिवजी का गुण है तथा हमें उसे आत्मसात करने का प्रयास करना आवश्यक है । हम अपने निकट के मित्र से अधिक प्रेम करते हैं; परंतु अन्योंपर वैसा नहीं करते । ऐसा दुजाभाव शिवजी के पास नहीं है । वे सभी से समान मात्रा में प्रेम करते हैं ।

४ आ. व्याघ्रांबर : बाघ क्रूरता का प्रतीक है । ऐसे क्रूर बाघ को मारकर शिवजीने उसका आसन बनाया है । बच्चों, हमारे दुर्गुण ही हमें क्रूर बनाते हैं । वे हमें आनंदी तथा आदर्श जीवन से दूर ले जाते हैं । ऐसे दुर्गुणों को नष्ट कर हमें अपना जीवन आनंदी बनाना है ।

५. शिवजी की आध्यात्मिक विशेषताएं

५ अ. महातपस्वी तथा महायोगी : निरंतर नामजप करनेवाले ‘शिवजी’ ही एकमात्र देवता हैं, जो निरंतर ध्यानमुद्रा में तथा आसनस्थ होते हैं ।

         हमें देवता चाहिए अथवा देवता जैसा बनना है, तो निरंतर उनका  नामस्मरण करना चाहिए । नामस्मरण करने से दुर्गुण नष्ट होकर  हम भी आनंदी हो सकते हैं; परंतु उसके लिए निरंतर नामजप करने का प्रयास करना चाहिए । कुछ बच्चे एक-दूसरे को अपशब्द कहते हैं, माता-पिता के नाम से चिढाते हैं इत्यादि अनुचित कृत्य करते हैं । निरंतर नामजप करने से हमारी वाणि में मिठास तथा नम्रता आती है तथा हम सभी के प्रिय बन सकते हैं । इस हेतु इस शिवरात्रि को सभी नामजप करने का निश्चय करें ।

५ आ. दूसरे के सुख के लिए कोई भी पीडा भोगने के लिए सिद्ध : समुद्रमंथन से उत्पन्न हुआ विष संपूर्ण विश्व को जला रहा था । कोई भी देवता उसे स्वीकार करने हेतु सिद्ध नहीं थे । उस समय शिवजीने उस विष को स्वीकार किया तथा पचाया भी । अन्यथा विश्व का विनाश हो जाता । शिवजीने उस विष को ग्रहणकर संपूर्ण विश्व को विनाश से बचाया ।

५ आ १. ‘दूसरों के लिए पीडा सहन करना’, यह व्यापक विचार बच्चों में निर्मित हो, तो ही सभी समस्याएं हल होकर राष्ट्र तथा समाज आनंदी होकर शिवजी की कृपा होगी : शिवजी दूसरों के कल्याण के लिए कोई भी पीडा भोगने के लिए सदैव सिद्ध होते हैं । हमें भी अन्यों के तथा राष्ट्र के कल्याण के लिए सर्वस्व का त्याग करना चाहिए । आज हम क्या देखते हैं ? प्रत्येक ‘मैं और मेरा परिवार’, ऐसी स्वार्थी वृत्ति से आचरण कर रहा है । कोई भी राष्ट्र एवं समाज का विचार नहीं करता । समाज में दूसरों के लिए पीडा सहने की नहीं अपितु अन्यों को पीडा देने की वृत्ति बलवत्तर है । पाठशाला में बच्चे अन्यों को मारने, धमकाने के कृत्य करते हैं । ऐसोंपर शिवजी की कृपा होगी क्या ? ‘दूसरों के लिए पीडा सहना’, यह व्यापक विचार बच्चों में निर्मित होनेपर ही सर्व समस्याएं हल होंगी तथा राष्ट्र एवं समाज आनंदी बनेगा । छत्रपति शिवजी महाराजजीने स्वराज्य के लिए बहुत पीडा सही; क्योंकि अन्यों के लिए कोई भी पीडा सहन करने की वृत्ति उनमें थी । यही खरा त्याग है ।

         महाशिवरात्रि के अवसरपर बच्चे निश्चय करें, ‘अन्यों को दुःख होगा, ऐसी कोई भी कृति मैं नहीं करूंगा ।’ इस हेतु शिवजी के चरणों में प्रार्थना करेंगे, `हे महादेव, इससे पूर्व मेरेद्वारा किसी को दुःख पहुंचा हो,  तो मुझे क्षमा करें । इस महाशिवरात्रि से अन्यों के तथा राष्ट्र के कल्याण हेतु कोई भी पीडा सहन करने की शक्ति तथा बुदि्ध आप ही मुझे दें, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।’

५ इ. क्रोधी- किसी के द्वारा ध्यान खंडित करनेपर नामजप से निर्मित शक्ति से सामने विद्यमान सभी भस्मसात करना तथा स्वयं ही ध्यान तोडनेपर वैसा न होना : ‘शिव’ अर्थात क्रोधी’, ऐसी हमारी धारणा है । प्रत्यक्ष में वैसा है क्या ? आपने सुना होगा, ‘शिवजी के तीसरा नेत्र खोलनेपर सर्व भस्मसात होता है ।’ जो देवता अन्यों के लिए विष पचा सकते हैं, वे ऐसा करेंगे क्या ? नहीं न ? शिवजी निरंतर ध्यानावस्था में नामजप करते हैं । नामजप करने से बहुत शक्ति निर्मित होती है । कोई उनका ध्यान खंडित करे, तो वे तीसरा नेत्र खोलते हैं । नामजप से निर्मित शक्ति से सामने का सबकुछ भस्मसात होता है । वे स्वयं अपना ध्यान तोडें, तो कुछ नहीं; क्योंकि उस शक्तिपर उनका नियंत्रण रहता है ।

५ ई. भक्ति से सहज प्रसन्न होनेवाले : सभीद्वारा भावपूर्ण प्रार्थना तथा नामजप करने से शिवजी तुरंत प्रसन्न होंगे । इस हेतु हम उनकी अधिकाधिक भक्ति करेंगे ।

५ उ. भूतों के स्वामी : शिवजी भूतों के स्वामी हैं । देवता सूक्ष्म एवं वायूरूप में रहते हैं, उसी प्रकार अनिष्ट शक्तियां (भूत) होते हैं । कुछ बच्चों को भय लगना, नींद में बुरे सपने आना, जैसे कष्ट होते हैं । रात्रि में अनिष्ट शक्तियोंं का संचार अधिक होता है । शिवजी अनिष्ट शक्तियों के स्वामी हैं । हम प्रतिदिन सोने से पूर्व शिवजी का ५ मिनट नामजप करें, तो कोई भी बुरा स्वप्न नहीं आएगा । नामजप करते समय हम देवताओं को बुलाते हैं । आज से सभी रात्रि में सोने से पूर्व शिवजी का नामजप करें । हम बुरी शक्तियों के स्वामी, अर्थात शिवजी को बुलाएं, तो नौकर अर्थात बुरी शक्तियों का उनके आगे कुछ नहीं चलता ।

६. शिवजी का कार्य

६ अ. विश्व का कार्य (उत्पत्ति, स्थिती एवं लय) देखना : मित्रों, शिव-पार्वती को ‘विश्व के माता-पिता’ कहते हैं । विश्व का संहार होनेपर नवनिर्मिती के लिए शिवजी शक्ति देते हैं । भारतीय संस्कृति में हम `मातृदेवो भव’ तथा ‘पितृदेवो भव’ ऐसा कहते हैं । माता-पिता हमारे लिए देवता समान हैं । उनके माध्यम से देवता ही हमारी रक्षा करते हैं । बच्चों, विचार करो, ‘हम माता-पिता से ‘वे देवता हैं’, ऐसा भाव रखकर आचरण करते हैं क्या ?, उन्हें नियमित नमस्कार करते हैं क्या ?’ आज से सभी माता-पिता को शिव-पार्वती समान मानकर प्रत्येक कृति उस भाव से करने का प्रयास करें ।

७. शिवजी का एक रूप – नटराज

७ अ. नृत्य ईश्वर भक्ति का एक साधन होने से उससे सभी को आनंद एवं शांति मिलना : शिवजी के दो रूप हैं । एक समाधिरूप तथा दूसरा नृत्यरूप । समाधिरूप यह निर्गुण हैतथा नृत्यरूप सगुण है । शिवजीने हमें नृत्यकला दी; इसलिए हम उन्हें ‘नटराज’ कहते हैं । हमारी संस्कृति के अनुसार नृत्य ईश्वर भक्ति का एक साधन है । नृत्यसे हमें देवताओं की शक्ति मिलती है । नृत्य देखनेवाले तथा करनेवाले को आनंद एवं शांति मिलती है ।

७ आ. विदेशी बीभत्स नृत्य न करना ही खरी शिवभक्ति होना : आज हम पश्चिमी लोगों का अंधानुकरण कर रहे हैं । ‘पॉप’ एवं ‘रिमिक्स’ जैसे विदेशी नृत्य कर समाज को तथा स्वयं को दुःख ही दे रहे हैं । विदेशी नृत्य करना अर्थात नटेश्वर का (शिवजी का) अपमान ही है । ऐसे वीभत्स नृत्य कर हमपर शिवजी की अवकृपा ही होगी । आज से सभी निश्चय करें, ‘मैं कभी भी विदेशी  नृत्य नहीं करूंगा एवं कोई कर रहा हो, तो उनका प्रबोधन करूंगा ।’ ऐसा करने से ही शिवजी की कृपा होगी तथा वही खरी शिवभिक्त है ।

८. मूर्तिविज्ञान

८ अ. डमरू : शिवजी के हाथ में डमरू होता है । डमरू के नाद से संपूर्ण विश्व की उत्पत्ति हुई है तथा ५२ अक्षरों की मूल ध्वनि इससे ही निर्मित हुई है ।

८ आ. त्रिशूल : उत्पत्ति, स्थिती एवं लय इन तीनों अवस्थाओं का प्रतीक है त्रिशूल । उत्पत्ति अर्थात निर्मिती, स्थिती अर्थात स्थिरता रखना एवं लय अर्थात नाश । प्रत्येक प्रसंग की ये तीन अवस्थाएं होती हैं, उदा. हमारा जन्म होता है अर्थात उत्पत्ति । उसके उपरांत हम कुछ वर्ष जीवन जीते हैं, इसे ‘स्थिती’ कहते हैं एवं अंत में मृत्यु होती है अर्थात ‘लय’ होता है ।

८ इ. परशू : यह अज्ञान के नाश का प्रतीक है । शिवजी अज्ञान का नाश करते हैं । अज्ञान के नाश से ही आनंद मिलता है ।

९. शिवजी की उपासना पद्धति

९ अ. भस्म लगाना : शिवजी की उपासना करनेवाले भस्म के तीन पट्टे माथेपर आडे लगाते हैं । यह तीन पट्टे  ज्ञान, पवित्रता तथा उपासना का प्रतीक है । उसी प्रकार इन्हें ‘शिवजी के तीन नेत्र’ भी संबोधित किया जाता है ।

९ आ. रुद्राक्ष की माला गले में पहनना : ‘शिवपूजा करते समय गले में रुद्राक्ष की माला अवश्य पहनें । रु + अक्ष इन दो शब्दों से ‘रुद्राक्ष’ इस शब्द की निर्मिती हुई है । (रु + अक्ष, अर्थात जो सबकुछ देख तथा कर सकता है, (उदा. तीसरा नेत्र) उसे ‘रुद्राक्ष’ कहते हैं । अक्ष अर्थात आस । नेत्र एक ही अक्षके चारों ओर घूमता है; इसलिए उसे भी अक्ष कहते हैं । रुद्राक्ष विश्व के देवताओं की प्रकाश तरंगों का मानव के शरीर की नाद तरंगों में तथा नाद तरंगों का प्रकाश तरंगों में रूपांतर करते हैं । इससे देवताओं की तरंगें मानव ग्रहण कर सकता है तथा मानव के विचारों का देवता की भाषा में रूपांतर होता है, अर्थात रुद्राक्ष किसी दुभाषिए जैसा कार्य करता है ।)

९ इ. शिवजी को त्रिदल बेल चढाना : कौमार्य, यौवन तथा वृद्धावस्था से  परे जाकर ‘हम आनंदस्वरूप आत्मा ही हैं’, इसकी प्रतीती आए, इस उद्देश्य से हम शिवजी को त्रिदल चढाते हैं । त्रिदल अर्थात सत्त्व, रज एवं तम यह तीनों गुण शिवजी को अर्पण करने का प्रतीक है ।

१०. शिवजी की पूजा कैसे करें ?

१० अ. शिवजी को बिल्वपत्र चढाने की पद्धति : शिवपिंडीपर बिल्वदल उसका डंठल अपनी ओर हो इस प्रकार औंधा चढाते हैं । इस प्रकार बेल चढाने से उसमें से शिवजी की अधिक शक्ति प्रक्षेपित होकर बेल चढानेवाले को उसका लाभ होता है ।

१० आ. फूल : शिवजी को रजनीगंधा, जाई, जूही तथा मोगरे के फूल १० के गुणाकार में चढाएं ।

१० इ. अगरबत्ती : केवडा, चमेली अथवा हीना इत्यादि गंधों की अगरबत्तियां दो की संख्या में लेकर आरती करें ।

१० ई. इत्र : शिवजी की उपासना के लिए केवडे के इत्र का उपयोग करते हैं ।

१० उ. परिक्रमा कैसे लगाएं ? : शिवपिंडी को अर्धगोलाकार परिक्रमा लगाएं ।

         आज हमने शिवजी की उपासना क्यों तथा कैसे करें ?, उपासना के लिए कौनसी वस्तुएं चाहिए ?, इस विषय में जानकारी प्राप्त की । हिंदू धर्म के देवताओं के विषय में शास्त्रीय जानकारी सभी को होनी चाहिए; क्योंकि देवताओं का महत्व ज्ञात होनेसे ही हमारी देवतापर भाव एवं श्रद्धा बढती है । देवताओं के विषय में प्रेम निर्मित होता है तथा हम योग्य उपासना करने लगते हैं ।’

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.