वटपूर्णिमा

बच्चो, वटपूर्णिमा के दिन अपने में परोपकारी वृक्षों के गुण लाने का निश्चय करें !

बालमित्रो, महान हिंदू धर्म एवं संस्कृति ने हमें बहुत बडा उत्तरदायित्व दिया है । आदर्श एवं आनंदमय जीवन जीने हेतु तथा चराचर में ईश्वर है, इसका आंतरिक बोध प्रत्येक जीव को निरंतर होता रहे, इस हेतु हमें ऋषिमुनियों ने हिंदू धर्मशास्त्र में अनेक व्रत बताए हैं । पूर्व में इन व्रतों का अचूक पालन करने के लिए प्रत्येक हिंदू परिश्रम करता था । उससे, जो विविध अनुभूतियां होती थीं, उसके कारण उसकी इन व्रतोंपर दृढ श्रद्धा होती थी तथा चराचर में प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का अस्तित्व है, ऐसा भाव उसमें निर्मित होता था । वर्तमान में भी यदि हम वैसी श्रद्धा के साथ आचरण करेंगे, तो हमें भी वैसी अनुभूतियां होकर भाव निर्मित होगा एवं समाज में दिखाई देनेवाला रक्तपात, बलात्कार, विध्वंस, आगजनी, लूटपाट जैसी कोई समस्या शेष नहीं रहेगी ।

बालमित्रो, ज्येष्ठ पूर्णिमा को वटपूर्णिमा यह व्रत मनाते है!इस अवसरपर हमें जीवन के नैतिक मूल्यों का संवर्धन कर संस्कारित, आदर्श तथाआनंदमय जीवन जीना सीखना है ।

१. सौभाग्य अखंड रहें, इस हेतु हिंदू स्त्रियोंद्वारा वटवृक्ष की पूजा होना

हम वर्ष में एक बार वटपूर्णिमा मनाते हैं । उस दिन प्रत्येक विवाहित हिंदू स्त्री अपना सौभाग्य अखंडबना रहे, इस हेतु वटवृक्ष की पूजा करती है । ऋषिमुनियों ने हमें इससे यही संदेश दिया है कि प्रत्येक वृक्ष में देवता हैं तथा उनकी ईश्वर समान पूजा करें !

२. प्रत्येक वृक्ष में ईश्वर का वास है, यह मानना आवश्यक

बालमित्रो, हमें पाठशाला में पर्यावरण का विषय पढाया जाता है । इसमें पेड लगाएं एवं पेड बचाएं !उसी प्रकार वृक्ष हमारा मित्र है, ऐसा बताया जाता है; परंतु क्या हमें इस बात का आंतरिक बोध होता है ? नहीं ना ? पूर्वकाल में पेड लगाओ एवं पेड बचाओ तथा वृक्ष हमारा मित्र है, यह हमारे हिंदू बंधुओं को बताने की आवश्यकता नहीं होती थी । उस समय सभी हिंदुओं की ऐसी श्रद्धा होती थी कि प्रत्येक वृक्ष में ईश्वर है । इसलिए वे प्रतिदिन वृक्षों को नमस्कार करते थे । उनके मन में ऐसा कृतज्ञता का भाव होता था कि वृक्षों के कारण हम जीवित हैं ।

वटपूर्णिमा के अवसरपर आज से ही ईश्वर के चरणों में हम ऐसी प्रार्थना करेंगे कि प्रत्येक वृक्ष में ईश्वर हैं, यह अनुभव हमें नित्य होता रहे ।

३. पर्यावरण का विषय केवल परीक्षा में अंक प्राप्त करने के लिए न पढकर वृक्षों में विद्यमान गुण अपने में लाने के लिए अभ्यास करेंगे !

हमें पाठशाला में पर्यावरण का विषय पढाया जाता है । किंतु, यह विषय क्यों पढाया जाता है, कभी इस बात का विचारआप करते हैं ? आजकल के विद्यार्थी वार्षिक परीक्षा में केवल अंक अर्जित करने के लिए यह विषय पढते हैं, यह उचित है क्या ? नहीं न ! तो आज वटपूर्णिमा के दिन आपको निश्चय करना है कि ‘मैं परीक्षा में केवल अंक बढाने के लिए पर्यावरण विषय की पढाई नहीं करूंगा, अपितु प्रत्येक वृक्ष में देवता हैं, इसका अनुभव लेकर वृक्षों के उपयोगी गुणअपनाने का प्रयास करूंगा ।’

४. वृक्षों में गुण

४ अ. परोपकारी : मित्रो, वृक्ष तेज धूप सहकर अन्यों को छाया देते हैं । वर्षाऋतु में पानी की शीतल और तेज बौछारें सहकर अपने नीचे आनेवाले सभी जीवों की वर्षा से रक्षा करते हैं तथा हमें फल-फूल देते हैं । इनसे हमे यह सीखने के लिए मिलता है कि हमें भी निरंतर दूसरों की सहायता करना चाहिए । हम से लोगों को आनंद मिलना चाहिए । ध्यान रखिए, हमारे धर्म ने कभी ऐसा आचरण करने के लिए नहीं कहा है, जिससे दूसरों को कष्ट हो ।

४ आ. अहंकारशून्य : वृक्ष हमें सदैव कुछ-न-कुछ देते रहते हैं; परंतु उनमें यह सबकरनेका घमंड नहीं होता । सबकुछ ईश्वर ही करते हैं, ऐसा उनका विचार अथवा भावहोता है । परंतु हम क्या करते हैं ? थोडा भी किया, तो घमंडके साथ कहते हैं, मैंने ये
किया, मैंने वो किया । बच्चो, आगेसे हम भी इन वृक्षोंके समान भाव रखकर कार्यकरेंगे कि ईश्वर ही सबकुछ करते हैं ।

४ इ. दूसरों को आनंद देना : वृक्षों से प्राप्त फल-फूल-पत्तों आदि से हम अनेक प्रकार कीऔषधियां बनाते हैं । वृक्षों से हमें बहुत आनंद मिलता है । आगे से हम भी अपने प्रत्येक कार्य से  दूसरों को आनंद देने का प्रयास करेंगे ।

४ ई. नत्रवायु (नाइट्रोजन वायु) सोखकर प्राणि-मात्र के लिए उपयुक्त प्राणवायु(ऑक्सीजन) उपलब्ध करवाना : प्राणि-मात्र के लिए वातावरण में विद्यमान घातकनत्रवायु वृक्ष सोख लेते हैं तथा हमारे लिए उपयुक्त प्राणवायु देते हैं । मनुष्य, प्राणी,पक्षी, कीट तथा लताएं, इन सबको वृक्ष आधार देते हैं । हमें इनके प्रति निरंतर कृतज्ञ होना चाहिए ।

बच्चो, अब बताओ, वृक्षों में ईश्वर हैं अथवा नहीं ?

५. आनंदमय तथा आदर्श जीवन जीने के लिए वृक्षों के समान त्याग करना सीखिए!

हिंदू धर्म में ऐसा कहा गया है कि त्याग में आनंद है । बच्चो, वृक्ष हमें त्याग करना सिखाते हैं । हानि सहकर भी दूसरों को लाभ पहुंचाना और आनंद देना सिखाते हैं ।परोपकार करना, दूसरों की सहायता करना, ये सब गुण हमें वृक्षों से सिखने के लिए मिलते हैं । इसलिए, हिदू धर्मशास्त्र में वृक्षों की पूजा करने के लिए कहा गया है । वृक्षों के गुण हम अपनाएंगे, तो आनंदमय तथा आदर्श जीवन निश्चित जी सकेंगे ।

बालमित्रो, आज से हम सब वृक्ष के सभी गुण अपने में लाकर अपना तथा दूसरों का जीवन आनंदमय बनाने का प्रयास करेंगे । इसके लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि वे हमें शक्ति तथा बुदि्ध दें ।

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी) , पनवेल.

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