व्यसनाधीन होने के दुष्परिणाम क्या हैं ? व्यसनमुक्त कैसे बनें ?

वर्तमान में अनेक व्यावहारिक, ऐहिक कारणों के लिए, विशेषतः चिंतामुक्त होने के लिए अथवा मनोरंजन के लिए मनुष्य विभिन्न व्यसनों का आधार लेता है । मनुष्य ‘व्यसन’ क्यों करता है ? आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अनुसार कुछ आध्यात्मिक कारण से जीवन में अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं । ऐसी ही कुछ समस्याओं के उदाहरण निम्नानुसार हैं ।

व्यसन के कारण प्रतिदिन होनेवाले व्यावहारिक दुष्परिणाम

दैनंदिन जीवन में आनेवाली समस्यओं के कुछ उदाहरण हैं – परीक्षा के  समय ही स्वास्थ्य बिगडना, प्रामाणिकता से पढाई करने के पश्चात् भी अपेक्षित सफलता न मिलना, नौकरी न मिलना, घर में झगडे होना, विवाह न होना, विवाह हुआ तो भी पति-पत्नी में मतभेद होना, कोई भी शारीरिक दोष पति-पत्नी में न होते हुए भी संतान न होना, संतान मतिमंद अथवा विकलांग होना, अपमृत्यु, व्यवसाय न चलना, दरिद्रता, शारीरिक रोग इत्यादि ।

व्यसन के शारीरिक दुष्परिणाम

सिगरेट पीना, शराब पीना, मादक पदार्थों का सेवन करना, मावा (सुगंधित तंबाखू) इत्यादि खाने से दांत, गला, फेफडे, हृदय, पेट, मूत्रपिंड, श्वसन व्यवस्था तथा पाचन व्यवस्था में विकार निर्माण होने से कर्करोग तथा अन्य भयंकर रोग होते हैं ।

व्यसन के मानसिक दुष्परिणाम

व्यसनों से मन तथा बुद्धि अकार्यक्षम होती है तथा मानसिक कष्ट होते है । व्यसनों के लिए अधिक रुपए व्यर्थ होते हैं; इसलिए कहा जाता है कि, ‘व्यसन अर्थात् मोल लिया हुआ दु:ख है ।’

व्यसन के आध्यात्मिक दुष्परिणाम

व्यसनों से मनुष्य का तमोगुण बढता है । इस कारण मनुष्य की ओर अनिष्ट शक्ति शीघ्र आकृष्ट होकर, शरीर में एकत्रित होती हैं तथा मनुष्यपर अधिकार प्राप्त करती हैं । अनिष्ट शक्तियां उस मनुष्य को अनेक प्रकार से कष्ट देती हैं । साथ ही उससे दुष्कृत्य भी कराती हैं ।

व्यसनमुक्त होने के लिए यह करें !

‘व्यसन दूर करना कठिन होता है’, यह पराभूत मानसिकता को छोड दें । तथा विजिगिषू वृत्ति को अपनाए कि ‘व्यसनों के विचारों से लडकर व्यसनरूपी शत्रु को नष्ट करना है ।’ अपने मन को खंबीर बनाने हेतु ‘साधना’ करें ! ‘साधना’का अर्थ क्या है ? तो विद्यार्थी प्रतिदिन ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप कम से-कम १०८ बार लिखें । ज्येष्ठ व्यक्ति ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप प्रतिदिन १ घंटा करें । इसके साथ ही बृहस्पतिवार को भगवान दत्तजी के मंदिर में जाकर भावपूर्ण नमस्कार करते हुए ७ परिक्रमा करें ।

नामजप यहा सुने !

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