‘पुण्यश्लोक’ अहिल्याबाई होलकर

अहिल्याबाई होलकर

मराठों के इतिहास में अनेक पराक्रमी सरदार हुए हैं । उनमें से होलकर घराने की अहिल्याबाई का नाम आज भी अनेकों के मुखपर हैं । अहिल्याबाई को ‘पुण्यश्लोक’ भी कहा जाता है; क्योंकि उन्होंने जो भी सामाजिक कार्य किए वे आज भी अनेकों के लिए आदर्श हैं । घर और राज्य का कारभार देखने में प्रवीण अहिल्याबाई होलकर का साम्राज्य मध्यप्रदेश में था; किंतु वे मूलतः मराठवाडा की थीं । बीड जनपद में चौंडी उनका मूल गांव है । माणकोजी शिंदे-पाटील की अहिल्या नाम की यह बालिका बाल्यावस्था से ही साहसी थी । उसमें राज्य करने हेतु आवश्यक सर्व गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान थे ।

एक बार चौंडी गाव में बडे बाजीराव पेशवा की सेना का पडाव था । छोटी अहिल्या अपनी माता के साथ सीना नदी के तटपर स्थित एक देवालय में दर्शन हेतु गई थी । वहां नदी की रेत में खेलते हुए अहिल्याने रेत का एक शिवलिंग बनाया । उतने में ही सैन्यदल का एक घोडा बिदक गया । बिदका घोडा अपनी दिशा में आते देख अहिल्या की सखियां डरकर भाग गई किंतु अहिल्या तिलमात्र भी नहीं डगमगाई । उसने जो शिवलिंग बनाया था उसपर वह औंधी लेट गई और उसका रक्षण किया ।

तभी पीछे से आ रहे श्रीमंत बाजीरावने कुछ ऊंचे स्वर में अहिल्या से पूछा, ‘‘बच्ची, यदि तुझे घोडे ने कुचल दिया होता तो ?’’ तब अहिल्या अपनी दृष्टि उनकी ओर फेरकर बोली, ‘‘यह शिवलिंग मैंने बनाया है और हमारे बडों  का कहना है कि हम जो बनाएं उसकी प्राण देकर भी रक्षा करनी चाहिए । मैंने भी वही किया । उसका ऐसा ठोस उत्तर सुनकर बाजीराव बहुत प्रसन्न हुए । तभी उनके साथ आए सरदार मल्हारराव होलकरने छोटी अहिल्या को अपनी पुत्रवधू बनाने का निर्णय ले लिया । उसके अनुसार ही मल्हाररावने उन्हें अपनी वधू बनाया और अहिल्याबाईने मल्हारराव का निर्णय सार्थक ठहराते हुए होलकर वंश की कीर्ति सर्व दिशाओं में फैलाई ।