सूचनासत्र का स्‍वरूप कैसे होना चाहिए ?

बच्‍चो, अपने स्‍वभावदोष दूर करने के लिए एक बार में ३ स्‍वसूचना देनी होती हैं । इस प्रक्रिया को ‘सूचनासत्र’ कहते हैं । स्‍वसूचना एकाग्रता से एवं परिणामकारक ढंग से दे पाना, यह एक प्रकार से अभ्‍यास ही है; इसलिए इस प्रक्रिया को ‘अभ्‍याससत्र’ भी कहते हैं । आरम्‍भ में कौनसे स्‍वभावदोषों पर सूचनाएं देनी हैं, उन सूचनाओं को बन्‍द कर दूसरी सूचना कब आरम्‍भ करनी है, दिन में कितनी बार सूचनाएं देनी हैं इत्‍यादि का विचार सूचनासत्र में होता है । सूचनासत्र का स्‍वरूप आगे स्‍पष्‍ट किया है ।

१. स्‍वभावदोषों का चयन

अ. ‘स्‍वभावदोष सारणी’से तीव्र स्‍वभावदोष पहचानें

प्रत्येक में अनेक स्‍वभावदोष होते हैं । जो स्‍वभावदोष तीव्र हैं, उन्‍हें पहले दूर करना महत्त्वपूर्ण है । तीव्र स्‍वभावदोष ‘स्‍वभावदोष सारणी’से पहचानें । मान लो, किसीकी सारणी में ‘आलस्‍य’ इस दोष से सम्‍बन्‍धित अनेक प्रसंग हों, तो समझ लो कि उसमें ‘आलस्‍य’ यह दोष तीव्र है । यदि वह बालक विविध प्रसंगों में बार-बार चिढ रहा हो, तो समझ लें कि उसमें ‘चिडचिडापन’ यह दोष भी तीव्र है ।

आ. स्‍वभावदोष दूर करने की प्रधानता कैसे निश्‍चित करें ?

१. प्रथम प्रधानता : तीव्र स्‍वभावदोषों में से जिन दोषों के कारण अन्‍योंको अधिक कष्‍ट हो सकता है, ऐसे दोष दूर करने को दें । मान लो, किसी बच्‍चे में ‘अव्‍यवस्‍थितता’ एवं ‘उद्दण्‍डतासे बोलना’ ये दो दोष तीव्र हैं, तो ‘अव्‍यवस्‍थितता’ इस दोष के कारण उस बच्‍चे को अन्‍योंकी तुलना में स्‍वयं को ही अधिक कष्‍ट होगा; परन्‍तु ‘उद्दण्‍डता से बोलना’ इस दोष के कारण दूसरों के मनको चोट पहुंचने से दूसरों को कष्‍ट होगा, साथ ही उनमें दूरी भी निर्माण होगी । इसलिए उस बालक को ‘उद्दण्‍डता से बोलना’ यह दोष दूर करने के लिए प्रथम प्रधानता देनी चाहिए।

२. दूसरी प्रधानता : तीव्र स्‍वभावदोषों में से जिन दोषों के कारण अपने मन की अधिक शक्‍ति व्‍यय (खर्च) होती है, ऐसे दोष दूर करने को दूसरी प्रधानता दें । मान लो, किसी में मूलत: ‘अव्‍यवस्‍थितता’ एवं ‘निरर्थक विचार करते रहना’ ये दो दोष तीव्र हैं । ‘अव्‍यवस्‍थितता’ इस दोष के कारण कोई वस्‍तु स्‍थान पर नहीं मिलेगी, तो कुछ समय के लिए ही झुंझुलाहट होगी एवं मन की शक्‍ति व्‍यय (खर्च) होगी; परन्‍तु ‘निरर्थक विचार करते रहना’ इस दोष के कारण मन की शक्‍ति निरन्‍तर अकारण व्‍यय (खर्च) होती रहेगी । इसके लिए वह बालक ‘निरर्थक विचार करते रहना’ यह दोष दूर करने को प्रधानता दे ।

२. सूचना सत्रों की संख्‍या

बच्‍चो, चुने हुए दोषों की तीव्रता के अनुसार स्‍वसूचना सत्रों की संख्‍या निश्‍चित करें । दिन में न्‍यूनतम (कम से कम) तीन बार तथा अधिक से अधिक जितने बने उतने सूचनासत्र करें ।

३. सूचनासत्र करने के विषय में कुछ सूचनाएं

अ. सूचनासत्र करने का नियोजन करें, उदा. सवेरे एक सूचनासत्र, दूसरा विद्यालय के मध्‍यकालीन अवकाश में, तीसरा विद्यालय से घर लौटने पर, चौथा रात को भोजन के पूर्व तथा पांचवां सूचनासत्र सोने से पूर्व ।

आ. यथासम्‍भव सूचनासत्रों का निश्‍चित समय निर्धारित करें ।

इ. दो सूचनासत्रों में न्‍यूनतम (कम से कम) १५ मिनट का अन्‍तर रखें ।

ई. सूचनासत्र करने के लिए सुविधाजनक एवं शान्‍त स्‍थान पर बैठें । सम्‍भव हो, तो पूजाघर के सामने बैठना सबसे उत्तम है । उसी प्रकार यह भी देखें कि मच्‍छर, कीडे आदि का उपद्रव न हो; अन्‍यथा मन एकाग्र नहीं होता ।

४. सूचनासत्र की कालावधि

प्रत्येक सूचनासत्र ८ मिनटों का होना चाहिए’ यह सर्वसाधारण नियम है; परन्‍तु यह कालावधि अल्‍प (कम) अथवा अधिक हो, तो भी कोई बात नहीं । यह कालावधि निम्‍नानुसार उपयोग में लाएं ।

मिनट : सेकण्‍ड
१. कुलदेवता या उपास्‍यदेवता से प्रार्थना करना (टिप्‍पणी १) ०:१५
२. कुलदेवता या उपास्‍यदेवता का नामजप करना (टिप्‍पणी २) ०:४५
३. प्रगति की स्‍वसूचना एक बार देना (टिप्‍पणी ३) ०:१५
४. पहली स्‍वसूचना (टिप्‍पणी ४) पांच बार देना २:००
५. पुनः नामजप करना ०:१५
६. दूसरी स्‍वसूचना पांच बार देना २:००
७. पुनः नामजप करना ०:१५
८. तीसरी स्‍वसूचना पांच बार देना  २:००
९. अन्‍त में कृतज्ञता (टिप्‍पणी ५) व्‍यक्‍त करना ०:१५
कुल ८:००

टिप्‍पणी १ – प्राथना साधारणतः ऐसी होनी चाहिए – ‘हे भगवान, मैं अब सूचनासत्र कर रहा हूं । आपकी कृपा से मेरा मन एकाग्र होने दें एवं मैं जो सूचना देने जा रहा हूं, उसे मेरे अन्‍तर्मनतक पहुंचने दें । मेरे …, …, … ये दोष दूर होने दें, यही आपके चरणों में प्राथना है !’

टिप्‍पणी २ – यदि कुलदेवता श्री अंबादेवी हों, तो ‘श्री अंबादेव्‍यै नम: ।’ यह नामजप करें । नामजप करने से मन के अनावश्‍यक विचार घटकर मन एकाग्र होता है । मन एकाग्र होनेके कारण दी गई स्‍वसूचनाएं अन्‍तर्मनतक पहुंचती हैं ।

टिप्‍पणी ३

अ. स्‍वसूचना देना, अर्थात स्‍वसूचना के शब्‍दों की ओर ध्‍यान देते हुए मन ही मन में कहना । स्‍वसूचना ५ बार देना, अर्थात सूचना एक के पश्‍चात एक, पांच बार कहना । किंतु ‘स्‍वसूचना पद्धति ३ (प्रसंग का अभ्‍यास)’ इस सूचनापद्धति पर आधारित स्‍वसूचना लम्‍बी होने के कारण उसे एक सूचनासत्र में एक ही बार दें ।

आ. ‘स्‍वसूचना पद्धति ४’ में बताए अनुसार नामजप की भी स्‍वसूचना देनी हो, तो तीन के स्‍थान पर दो स्‍वभावदोषों पर स्‍वसूचना दें ।

इ. अपने स्‍वभावदोष दूर करने के लिए एक सूचनासत्र में ३ दोषों पर स्‍वसूचना देनी होती है । इनमें से एक स्‍वसूचना ‘स्‍वसूचना पद्धति ३’ पर आधारित हो, तो उस स्‍वसूचना के लिए अधिक समय अर्थात ३-४ मिनट लगते हैं । इसलिए किसी एक ही प्रसंग के लिए ‘स्‍वसूचना पद्धति ३’ पर आधारित स्‍वसूचना लें । सूचनासत्र की शेष दो स्‍वसूचनाएं भिन्‍न दोषों पर भिन्‍न पद्धति से दें ।

मान लो, चि. समर्पण को अगले सप्‍ताह में होनेवाली इतिहास की परीक्षा से भय लग रहा है एवं इस प्रसंग पर वह ‘स्‍वसूचना पद्धति ३’के अनुसार स्‍वसूचना दे रहा हो, तो शेष दो स्‍वसूचनाएं वह अन्‍य सूचना पद्धतियों पर आधारित दे ।

टिप्‍पणी ४ – सामान्‍यरूप से कृतज्ञता इस प्रकार व्‍यक्‍त करें – ‘हे भगवान, आपकी ही कृपा से स्‍वभावदोष जानेके लिए मैं स्‍वसूचना दे सका । इसलिए मैं आपके चरणों में कृतज्ञ हूं ।’

५. सूचनासत्र नियमित करें

बच्‍चो, किसी स्‍वभावदोष की तीव्रता अधिक हो, तो उस स्‍वभावदोष पर सूचना देना प्रारम्भ करने के उपरान्‍त उसमें सुधार होने में दो अथवा अधिक सप्‍ताह लगते हैं । शरीर का रोग ठीक होनेमें जैसे कुछ समय लगता है, वैसा ही यहां भी है । इसलिए आरम्‍भम यदि दोषों में सुधार अल्‍प दिखाई दे अथवा दिखाई न दे, तब भी सूचनासत्र करने से पीछे न हटें ।

६. सूचनासत्र करते समय मन एकाग्र न हो रहा हो अथवा स्‍वसूचना के शब्‍दों का विस्‍मरण हो रहा हो, तो क्‍या करें ?

ऐसी स्‍थिति में स्‍वसूचनाएं कागदपर लिखें और प्रत्येक स्‍वसूचना को ५ से १० बार पढें अथवा देखकर / बिना देखे उसे ५ से १० बार लिखें । पढने की अपेक्षा लिखना एकाग्रता साधने में अधिक सहायक है ।

७. स्‍वसूचना में अन्‍तर्भूत स्‍वभावदोष से सम्‍बन्‍धित चूक अथवा प्रसंग कब परिवर्तित करें ?

अ. प्रक्रिया के लिए एक स्‍वभावदोष चुनने पर उस दोष से होनेवाली चूकें अथवा दोष से सम्‍बन्‍धित प्रसंगों की सूची बनाकर, उस प्रत्येक चूक पर अथवा प्रसंग पर न्‍यूनतम १ सप्‍ताह नियमितरूप से स्‍वसूचना दें ।

आ. एक सप्‍ताह के उपरान्‍त उस स्‍वभावदोष में कोई सुधार दिखाई न दे, तो पूर्व की ही सूचना आगे चालू रखें । यदि कुछ सुधार दिखाई दे रहा हो, तो उसी स्‍वभावदोष से सम्‍बन्‍धित दूसरी चूक पर अथवा प्रसंग पर स्‍वसूचना दें । मान लीजिए, ‘अव्‍यवस्‍थितता’ इस स्‍वभावदोष से सम्‍बन्‍धित ‘कपडे अलमारी में व्‍यवस्‍थित न रखना’ इस प्रसंग को लेकर एक सप्‍ताहतक स्‍वसूचना देने पर उस क्रिया में यदि सुधार दिखाई देने लगे, तो अगले सप्‍ताह में ‘अव्‍यवस्‍थितता’ इस स्‍वभावदोष से ही सम्‍बन्‍धित ‘विद्यालय से लौटने पर बस्‍ता व्‍यवस्‍थित न रखना’ इस प्रसंग को लेकर स्‍वसूचना दें ।

इ. कुछ दिनों के पश्‍चात यदि पहली स्‍वसूचना से सम्‍बन्‍धित चूक पुन: हो जाए, तो पुनः पहली स्‍वसूचना दें ।

८. सूचनासत्र के स्‍वभावदोषों को कब परिवर्तित करें ?

अ. किसी दोष के कारण होनेवाली कुछ चूकों पर / प्रसंगों पर स्‍वसूचना देने से कुछ कालावधि के उपरान्‍त (उदा. चार सप्‍ताहों के उपरान्‍त) वह स्‍वभावदोष घटने लगता है । इस समय स्‍वसूचना देने के लिए दूसरा स्‍वभावदोष चुनें ।

आ. एक सप्‍ताह स्‍वसूचना देनेके उपरान्‍त भी किसी स्‍वभावदोष से सम्‍बन्‍धित चूक में यदि कोई सुधार दिखाई न दे, तब भी वही स्‍वसूचना अगले तीन-चार सप्‍ताहतक देते रहें । तब भी यदि उसमें कोई सुधार न दिख रहा हो, तो यह समझें कि ‘वह स्‍वसूचना ग्रहण करने में अधिक मानसिक विरोध है ।’ ऐसेमें वह स्‍वसूचना देना रोकें और अन्‍य किसी स्‍वभावदोष पर स्‍वसूचना देना आरम्‍भ करें ।

इ. कुछ सप्‍ताह के उपरान्‍त पहलेवाले स्‍वभावदोष पर पुनः स्‍वसूचना दें। इस बीच कोई ऐसा स्‍वभावदोष चुनकर उसपर स्‍वसूचना दें जो ‘सहज ही दूर किया जा सके ।’ ऐसे दोष दूर होने से मन पर आया तनाव कुछ मात्रा में घट जाता है और मनकी ऊर्जा ऐसे स्‍वभावदोष दूर करने के लिए उपलब्‍ध हो जाती है; जिनके लिए अधिक मानसिक विरोध है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !

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