कठिन प्रतीत होनेवाले प्रसंग का सामना करने हेतु स्‍वसूचना पद्धति

१. स्‍वसूचना पद्धति की उपयुक्‍तता

इस पद्धति में बालक कुछ समय नामजप कर अपना मन स्‍थिर करता है । तदुपरान्‍त ‘कठिन प्रतीत होनेवाले प्रसंग का मैं सफलतापूर्वक सामना कर रहा हूं’, ऐसी कल्‍पना कर मन ही मन उस प्रसंग का सामना करने का अभ्‍यास करता है । इससे प्रत्यक्ष घटना के समय बालक के मन पर तनाव नहीं आता और वह आत्‍मविश्‍वास से प्रसंगा का सामना कर पाता है ।

इस सूचना में ऐसी कल्‍पना करनी होती है कि सब कुछ सकारात्‍मक अथवा हमें जैसा अपेक्षित है वैसा ही हो रहा है । भले ही सूचना में कल्‍पना किए अनुसार प्रत्यक्ष में न हो, तब भी सूचना देने के कारण मन प्रसंग का सामना करने में सक्षम बनता है ।

सूचना की अन्‍तिम पंक्‍ति इस प्रकार होनी चाहिए – मुझे जिस बातकी चिन्‍ता थी, वैसा कुछ नहीं हुआ है; इसलिए मैं अगली बार से
आत्‍मविश्‍वास रखूंगा ।

एक-दो मिनट से अधिक समयके प्रसंगों में अनुचित प्रतिक्रिया से बचने के लिए इस पद्धति का उपयोग करते हैं ।

२. स्‍वसूचना पद्धति से दूर होनेवाले स्‍वभावदोष

‘क्‍या परीक्षा में भली-भांति उत्तर लिख पाऊंगा’, ऐसी चिन्‍ता होना, मौखिक परीक्षा, भेंटवार्ता (इंटरव्‍यू), वाद-विवाद प्रतियोगिता इत्‍यादि प्रसंगों से भय लगना आदि ।

३. स्‍वसूचना के उदाहरण

प्रसंग – चि. सदानंद को अगले सप्‍ताह (सोमवार को) होनेवाली इतिहास की परीक्षा का भय था ।

स्‍वभावदोष – भय लगना

स्‍वसूचना – सदानंद आगे दी गई सूचना का मन ही मन अभ्‍यास करे – ‘सोमवार को इतिहास की परीक्षा है । मेरी तैयारी हो गई है । मैं शान्‍ति से इतिहास की बही पढ रहा हूं । अब ‘मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं किसी भी प्रश्न का उत्तर अच्‍छे से लिख सकूंगा ।’ मैं समय से परीक्षाभवन में पहुंच गया हूं । पहली घण्‍टी बज गई है । मैं शान्‍ति से अपने स्‍थान पर आंखें बन्‍द करके बैठा हूं । अब दूसरी घण्‍टी बज रही है । शिक्षक मेरे हाथों में प्रश्नपत्र दे रहे हैं । प्रत्येक प्रश्न एवं उसके अंक देखकर ‘कौनसे प्रश्न का उत्तर लिखूं’, इसका मैं विचार कर रहा हूं । प्रश्नपत्र के सर्व प्रश्न सरल हैं। मैं उचित उत्तर लिख रहा हूं । अन्‍तके १० मिनट शेष रह गए हैं, यह सूचित करने के लिए घण्‍टी बज रही है । मैं उत्तर-पुस्‍तिका के सर्व पृष्‍ठ पढकर यह जांच रहा हूं कि ‘मैंने सर्व प्रश्नों के उत्तर उचित प्रकार से लिखे हैं न ।’ अब अन्‍तिम घण्‍टी बज रही है । मैं उत्तरपुस्‍ति का पर्यवेक्षक के हाथ में दे रहा हूं । मैं अब घर आया हूं एवं घर में सभी को बता रहा हूं कि ‘आज की प्रश्नपत्रि का अत्‍यन्‍त सरल थी ।’ ‘आज की प्रश्नपत्रि का सरल होने के कारण मेरा आत्‍मविश्‍वास बढा है । मैं अब विश्राम करूंगा एवं तदुपरान्‍त कल के विषय की पढाई उत्‍साह से आरम्‍भ करूंगा’, यह विचार कर अब मैं पलंग पर सो रहा हूं ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !