अनुचित प्रतिक्रिया के स्‍थान पर उचित प्रतिक्रिया आने हेतु स्‍वसूचना पद्धति

अ. स्‍वसूचना पद्धति की उपयुक्‍तता

अनेक प्रसंगों में बालक कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करता है अथवा उसके मन में प्रतिक्रिया उभरती है । अनुचित प्रतिक्रिया स्‍वभाव में विद्यमान दोषों के कारण आती है, जबकि उचित प्रतिक्रिया स्‍वभाव में विद्यमान गुणों के कारण आती है । निरन्‍तर कुछ सप्‍ताह स्‍वसूचना देने से मन में अनुचित प्रतिक्रिया के स्‍थान पर उचित प्रतिक्रिया उभरती रहे, तो अन्‍तर्मन में विद्यमान दोष का संस्‍कार घटता है । उसके स्‍थान पर गुण का संस्‍कार निर्मित होकर स्‍वभाव में सकारात्‍मक परिवर्तन होता है । एक-दो मिनट से अल्‍प समय के प्रसंग में अनुचित प्रतिक्रिया के स्‍थान पर उचित प्रतिक्रिया उत्‍पन्‍न हो, इसके लिए इस स्‍वसूचना पद्धति का उपयोग करते हैं ।

आ. स्‍वसूचना की वाक्‍यरचना

‘जब… प्रसंग मैं … क्रिया / विचार कर रहा होऊंगा, तब … ऐसी उचित क्रिया / विचार करने का महत्त्व मेरे ध्‍यान में आएगा एवं … ऐसी क्रिया / विचार मैं करूंगा ।’

इ. स्‍वसूचना की इस पद्धति से दूर होनेवाले स्‍वभावदोष

दूसरों पर टीका-टिप्‍पणी करना, चिडचिडापन, क्रोध, झगडा करना, पश्‍चात्ताप न होना, हठधर्मिता, शंका करना इत्‍यादि ।

ई. स्‍वसूचनाओं के उदाहरण

प्रसंग १ – चि. रामदास बहुत देरतक बाहर खेल रहा था, जिसके कारण उसकी पढाई नहीं हुई थी । इसलिए उसके पिताजी बोले, ‘‘रामदास, खेलना-कूदना बहुत हो गया, चलो अब पढाई करो ।’’ रामदास को खेलना था; उसे पढाई नहीं करनी थी । इसलिए जब पिताजी ने उसे पढाई करने का भान करवाया, तो उसे बुरा लगा ।

स्‍वभावदोष – बुरा लगना

स्‍वसूचना – पिताजी के खेलना छोड पढाई करने के लिए कहने पर जब मुझे बुरा लगेगा, तब मुझे भान होगा कि ‘पढाई कर मैं अच्‍छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाऊं, इसलिए पिताजी मुझे खेलना छोड पढने के लिए कह रहे हैं’, और मैं तुरन्‍त पढने बैठूंगा ।

प्रसंग २ – शिक्षक ने चि. समर्पण को कक्षाप्रमुख बनने के लिए कहा, तब समर्पण के मन में प्रतिक्रिया आई कि ‘अपनी पढाई सम्‍भालकर कक्षाप्रमुख बनना, मेरे लिए सम्‍भव नहीं है; क्‍योंकि इतने बच्‍चों को सम्‍भालना मेरी क्षमता के परे है’, और उसने शिक्षक से कहा ‘कक्षाप्रमुख बनना मेरे बसकी बात नहीं है ।’

स्‍वभावदोष – आत्‍मविश्‍वास का अभाव

स्‍वसूचना – जब शिक्षक मुझे कक्षाप्रमुख के रूप में दायित्‍व लेने के लिए कहेंगे तब मुझे भान होगा कि ‘यह मेरे व्‍यक्‍तित्‍व विकास का उत्तम अवसर है’, और इसे ध्‍यान में रख, मैं शिक्षक का कहना मानूंगा ।

प्रसंग ३ – बाहर खेलते रहने के कारण चि. प्रेमानंद देर से घर पहुंचा, जब उसके पिताजी ने पूछा, ‘कहां गए थे ?’ तब उसने पिताजी को क्रोध से उत्तर दिया ।

स्‍वभावदोष – क्रोध करना एवं उद्दण्‍डता

स्‍वसूचना – देर से घर पहुंचने पर जब पिताजी यह पूछेंगे कि ‘कहां गए थे’ और मुझे क्रोध आएगा, तब मुझे भान होगा कि ‘वे मेरी भलाई के लिए तथा मेरी चिन्‍ता होने के कारण ऐसा पूछ रहे हैं’, और मैं उन्‍हें नम्रता से उत्तर दूंगा कि ‘मैं खेल रहा था ।’

प्रसंग ४ – चि. नित्‍यानंद को परीक्षा में अपेक्षित अंक न मिलने पर उसके मन में हीन भावना उत्‍पन्‍न हुई थी ‘मेरी बौद्धिक क्षमता ही अल्‍प है । मैं जीवन में कभी सफल नहीं हो पाऊंगा; तो इतना पढने का क्‍या लाभ ?’

स्‍वभावदोष – हीन भावना उत्‍पन्‍न होना

स्‍वसूचना – परीक्षा में अपेक्षित अंक न होने से जब मेरे मन में ऐसी भावना उत्‍पन्‍न होगी कि ‘मैं जीवन में कभी सफल नहीं हो
पाऊंगा; इतनी पढाई करने का क्‍या लाभ ?’, तब ‘असफलता ही सफलता की पहली सीढी है’, इस सुवचन का स्‍मरण कर मैं पुन: उत्‍साह से पढाई आरम्‍भ करूंगा ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !

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