अनुचित क्रिया का भान एवं उसपर नियन्त्रण प्राप्त करने के लिए स्‍वसूचना पद्धति

बच्‍चो, स्‍वभावदोष दूर करने के लिए मन को स्‍वसूचनाएं देनी पडती हैं ।

१. ‘स्‍वसूचना’का क्‍या अर्थ है ?

स्‍वयं द्वारा हुई अनुचित क्रिया, मन में आया अनुचित विचार एवं व्‍यक्‍त हुई अथवा मन में उभरी अनुचित इत्‍यादि में परिवर्तन होकर उनके स्‍थान पर उचित क्रिया अथवा उचित उत्‍पन्‍न होने के लिए स्‍वयं को ही अपने अन्‍तर्मन को (चित्त को) जो उचित सूचना देनी पडती है, उसे ‘स्‍वसूचना’ कहते हैं । केवल सरल शब्‍दों में ही बताना हो, तो स्‍वयं से हुई अनुचित बातों के लिए अपने अन्‍तर्मन को (चित्तको) उचित बात करने का उपाय सुझाना ही ‘स्‍वसूचना’ है । मन को उचित दृष्‍टिकोण समझाना ही ‘स्‍वसूचना’ है । इसमें बालक अपने बाह्य मन द्वारा अन्‍तर्मन को आवश्‍यक सूचना देता है ।

बच्‍चो, मान लो कि ‘आलस्‍य’ इस दोष के कारण आप देर से उठते हैं और इससे आगे के कार्यों में देर होती है । जिसके परिणामस्‍वरूप पाठशाला अथवा अनुशिक्षावर्ग (ट्यूशन/कोचिंग)के लिए विलम्‍ब होने से मन में चिडचिडाहट होती है । यह टालने के लिए ‘आलस्‍य’ यह दोष दूर करने का करना चाहिए । इस हेतु ‘मैं सुबह घण्‍टी (अलार्म) बजने पर अथवा मां के पुकारने पर तुरन्‍त उठ जाऊंगा ।’, ऐसा मन को बार-बार सूचित करना पडता है । यह बार-बार सूचित करना ही ‘स्‍वसूचना’ है ।

२. स्‍वसूचना पद्धति १ : अनुचित क्रिया का भान एवं उसपर नियन्‍त्रण

अ. स्‍वसूचना पद्धति की उपयुक्‍तता

इस पद्धति के अनुसार स्‍वसूचना देने से बालक को अनुचित विचार, भावना एवं अनुचित क्रिया का भान होता है तथा वह उसे नियन्‍त्रित कर पाता है ।

आ. स्‍वसूचना की वाक्‍यरचना

‘…. इस स्‍वभावदोष के कारण जब मुझसे … क्रिया हो रही होगी / मेरे मन में … विचार अथवा भावना आएगी, तब मुझे इसका भान होगा एवं … क्रिया करने का / …. विचार करने का … महत्त्व मेरे ध्‍यान में आएगा और मैं … क्रिया करूंगा / … विचार करूंगा ।’

इ. स्‍वसूचना की इस पद्धति से दूर होनेवाले स्‍वभावदोष

इस पद्धति का उपयोग कर आगे दिए स्‍वभावदोष एवं अनुचित क्रियाएं दूर कर सकते हैं – एकाग्रता का अभाव, उतावलापन, हडबडाना, अव्‍यवस्‍थितता, समय का पालन न करना, आलस्‍य, अत्‍यधिक विचार करना (बुद्धि का अनावश्‍यक उपयोग), अन्‍योंका ध्‍यान आकर्षित करना, स्‍वार्थी वृत्ति, निर्णयक्षमता का अभाव, नीतियुक्‍त आचरण न करना, शंकालु वृत्ति, गर्वीलापन, घमण्‍डी वृत्ति, कल्‍पना लोक में रम जाना आदि स्‍वभावदोष । साथ ही नख कुतरना, तोतलापन, आठ वर्ष की आयु के उपरान्‍त भी बिछौना गीला करना इत्‍यादि अनुचित क्रियाएं ।

ई. स्‍वसूचनाओं के उदाहरण

प्रसंग १ – चिरंजीव गुरुदास गणित की पढाई करते समय दो-दो मिनट में इधर-उधर देख रहा था ।

स्‍वभावदोष – यहां ऊपरी रूपसे ‘एकाग्रता का अभाव’ यह स्‍वभावदोष दिखाई देता है, परन्‍तु मूल स्‍वभावदोष है ‘पढाई की गम्‍भीरता न होना’ । आरम्‍भ में एक-दो सप्‍ताह ‘एकाग्रता का अभाव’ इस दोष पर स्‍वसूचना देने के उपरान्‍त ‘पढाई की गम्‍भीरता न होना’ इस दोष पर स्‍वसूचना देने की आवश्‍यकता है ।

स्‍वसूचना

१. ‘एकाग्रता का अभाव’ स्‍वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्‍वसूचना – गणित की पढाई करते समय जब मैं दो-दो मिनट में यहां-वहां देखूंगा, तब मुझे भान होगा कि ‘एकाग्रता से पढाई करने पर ही वह अच्‍छे से मेरे ध्‍यान में रहेगी’ और मैं अपनी पढाई एकाग्रतासे करूंगा ।

२. ‘पढाई की गम्‍भीरता न होना’ इस स्‍वभावदोष के लिए दी जानेवाली स्‍वसूचना – गणित की पढाई करते समय जब मैं दो-दो मिनट में इधर-उधर देखूंगा, तब मुझे भान होगा कि ‘मुझे गणित में सौ प्रतिशत अंक प्राप्त करने हैं’ और मैं गणित की पढाई पर ध्‍यान केन्‍द़्रित करूंगा ।

प्रसंग २ – कु. अर्चनाने विद्यालय से घर लौटने पर अपना बस्‍ता पलंग पर फेंक दिया ।

स्‍वभावदोष – अव्‍यवस्‍थितता

स्‍वसूचना – विद्यालय से घर लौटने पर जब मैं अपना बस्‍ता पलंग पर फेंकने लगूंगी, तब मुझे इसका भान होगा एवं ‘बस्‍ता साक्षात विद्या के देव हैं’, ऐसा समझकर मैं उसे अच्‍छेसे अपने पढाई के पटल पर (मेज पर) रखूंगी।

प्रसंग ३ – चि. देवीदास घर में ऐसे ही बैठा था । मां ने उसे पासकी दुकान से धनिया-मिर्च लाने के लिए कहा । तब उसने पढाई का बहाना बनाकर मां को मना कर दिया ।

स्‍वभावदोेष – आलस्‍य

स्‍वसूचना – जब भी मां मुझे दुकान से धनिया-मिर्च लाने के लिए कहेंगी और मैं लाने में आलस करूंगा, तब मुझे भान होगा कि ‘मां को भोजन बनाने में समस्‍या आएगी’ और मैं तुरन्‍त धनिया-मिर्च लाने जाऊंगा।

प्रसंग ४ – कु. आरती विद्यालय में पढते समय सोच रही थी कि ‘मां ने घर में खाने के लिए क्‍या बनाया होगा ।’

स्‍वभावदोेष – निरर्थक विचार करना

स्‍वसूचना – जब मैं विद्यालय में पढाई के समय यह सोचूंगी कि ‘घर में मांने खाने के लिए क्‍या बनाया होगा’, तब मुझे भान होगा
कि ‘विद्यालय में पढाए जा रहे विषय पर ध्‍यान देने से ही मेरी पढाई अच्‍छेसे होगी’ और मैं तुरन्‍त कक्षा में सिखाए जा रहे विषय की ओर ध्‍यान दूंगी ।

प्रसंग ५ – विद्यालय में हिन्‍दी की कक्षा में कु. प्रार्थना ‘विद्यालय के स्नेहसम्‍मेलन में मैंने अच्‍छे कपडे पहने हैं बढिया बाल बनाए हैं तथा सभी लोग मेरी प्रशंसा कर रहे हैं,’ इन्‍हीं विचारों में खोई हुई थी ।

स्‍वभावदोष – कल्‍पनालोक में रमना

स्‍वसूचना – हिन्‍दी की कक्षा में जब मैं स्नेहसम्‍मेलन के विचारों में खोई हुई होऊंगी, तब मुझे भान होगा कि ‘अभी पढाया जा रहा पाठ परीक्षा की दृष्‍टि से महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उसकी ओर ध्‍यान देना आवश्‍यक है’ और मैं तुरन्‍त पढाए जा रहे पाठ पर ध्‍यान दूंगी ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘स्वभावदोष दूर कर आनन्दी बनें !

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