तत्त्वनिष्ठ लोकमान्य तिलकजी !

तिलकजी अत्यंत बुदि्धमान विद्यार्थी थे । उनकी स्मरणशक्ति अत्यंत प्रखर थी । अपने पिता गंगाधर पंतद्वारा उन्होंने संस्कृत भाषाके पाठ पढे । यदि वे संस्कृत का एक श्लोक कंठस्थ करते, तो उन्हें अपने पिता से एक पैसा मिलता था । इस प्रकार से उन्होंने लगभग २०० पैसे अर्जित किए थे । पाठशाला जाने के पूर्व ही अनेक पाठ उनसे मुखोद्गत रहते थे । उनकी किसी भी विषय को कंठस्थ करने की गतिको देखकर उनके अध्यापक भी अचंबित होते थे ।

एक बार कक्षा में अध्यापक ने व्याकरण संबंधि एक प्रश्न पूछा । प्रश्न में ‘संत’ यह शब्द अनेक बार आया था । तिलकजी ने वह शब्द तीन भिन्न-भिन्न प्रकार से लिखा । संत, सन्त आणि सनत. अध्यापक ने पहले शब्द को अचूक ठहराते हुए अन्य दो शब्दों को चूक ठहराया । उस समय तिलकजी ने अपने लिखे हुए तीनों शब्द किस प्रकार योग्य है, यह अध्यापक को समझाया । इतना ही नहीं तो दृढता से अपना कथन कैसे योग्य है, यह समझाने के लिए उदाहरण भी दिया । तब शिक्षक ने उनका कथन योग्य है यह मान्य किया ।

तिलकजी जब महाविद्यालय के (कॉलेज के) प्रथम वर्ष में थे, तब एक वर्ष परीक्षा न देकर केवल व्यायाम कर उन्होंने अपना शरीर सुदृढ बनावाया । वे उत्तम मल्ल थे । उत्तम तैरते भी थे । पाठशाला में अध्ययन करते समय ही वे इस बात से सचेत थे कि अपने देशपर अंग्रेजों का राज है, अपना नहीं ! अपनी शिक्षा समाप्त करनेपर अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए वे प्रभावी प्रयत्न करने लगे ।

बचनप से ही उनमें जो अंगीभूत गुण थे, वे अंग्रेजों के विरोध में लढते हुए उन्हें उपयोगी सिद्ध हुए । कारागृह का अत्यंत कठिण जीवन तथा राजकिय भागदौड भरे जीवन के कष्ट वे केवल अपने उत्तम शरीर स्वास्थ्य के कारण ही सहन कर सके ! मंडाले के कारागृह में उनके द्वारा ‘गीतारहस्य’ ग्रंथ का लेखन किया गया ।

अपने सत्य पक्ष को प्रमाणित करने की उनकी तत्त्वनिष्ठ प्रवृत्ती बचपन से ही रही थी; इसलिए वे भारतपर अन्याय करनेवाले अंग्रेजों के विरोध में विशाल आंदोलन खडा कर सके ! लोकमान्य बाल गंगाधर तिलकजी भारत के एक आदर्श सुपुत्र के रुप में पहचाने गए ।

बच्चो, इस कथा से हमें तिलकजी की तत्त्वनिष्ठता का परिचय होता है । इसके साथ हि कोई भी कार्य करने के लिए शरीर स्वास्थ्य का उत्तम होना तो आवश्यक है । इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए । यदि शरीर बलवान होगा, तो ही हम किसी भी प्रकार की क्रांति कर सकते है । वर्तमान में हमारे राष्ट्र एवं धर्म की स्थिति अच्छी नहीं है । इसलिए यदि अन्यों से झूंझना है, तो शारीरिक बल के साथ आध्यात्मिक बल की भी आवश्यक्ता है ! इसलिए आईए, हम नामजप, प्रार्थना और कृतज्ञता आदि के साथ लढने के लिए सिद्ध होंगे !

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