हिन्‍दू संस्‍कृतिका सम्‍मान करनेवाले स्‍वामी विवेकानंदजी !

बच्‍चों, भारत के युवा संन्‍यासी का नाम क्‍या है ? आपने योग्‍य सोचा । वह है स्‍वामी विवेकानंदजी । उन्‍होंने विश्‍व के पटल पर भारत और हिन्‍दू धर्म की ध्‍वजा फहराई है, इसमे कोई शंका नहीं है ।

स्‍वामी विवेकानंदजी के जीवन का एक प्रसंग आज हम सुनेंगे ।

स्‍वामी विवेकानंदजी शिकागो गए थे । वहां भी वे केसरिया वेशभूषा पहनते थे । स्‍वामीजी को देखकर कुछ व्‍यक्‍ति उनके सामने आए । वे स्‍वामीजी से बोले, ‘‘हैलो, हाऊ आर यू ?’’(Hello, how are you?) अर्थात आप कैसे हैं ? तब स्‍वामीजी ने हाथ जोडकर कहा, ‘‘नमस्‍कार !’’

उन लोगों लगा कि साधु जैसे दिखनेवाले इस व्‍यक्‍ति को कदाचित अंग्रेजी भाषा नहीं आती । उनमें से एक व्‍यक्‍ति को थोडी बहुत हिन्‍दी आती थी । उस व्‍यक्‍ति ने स्‍वामीजी से पूछा, ‘‘आप कैसे हैं ?’’ स्‍वामीजी ने उत्तर दिया, ‘‘आय एम फाइन. थैंक यू’’ (I’m Fine. Thank you.)

उन लोगों को बहुत आश्‍चर्य हुआ । उन्‍होंने स्‍वामीजी से पूछा कि ‘जब हमने आपको अंग्रेजी में पूछा, तो आपने हिन्‍दी में उत्तर दिया और जब हमने हिन्‍दी में पूछा, तब आपने अंग्रेजी में उत्तर दिया । इसका क्‍या कारण है ?’’ उसपर स्‍वामी विवेकानंदजी कहने लगे, ‘‘जब आप अपनी संस्‍कृति का सम्‍मान कर रहे थे, तब मैं मेरी संस्‍कृति का सम्‍मान कर रहा था और जब आपने मेरी संस्‍कृति का सम्‍मान किया, तो मैंने आपकी संस्‍कृति का सम्‍मान किया ।’’

इससे यह ध्‍यान में आता है कि स्‍वामी विवेकानंदजी हमारी संस्‍कृति की रक्षा को ही प्रधानता देते थे ।

जो व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा, मातृभूमि और संस्‍कृति की रक्षा करता है । अपनी संस्‍कृति से जुडा होता है, वह भगवान से जुड जाता है । हम अपने धर्म के प्रति गर्व के रूप में आज से यह प्रयास करना आरंभ करेंगे कि जब हमें कोई मिले, तो हम हाथ जोडकर नमस्‍कार करेंगे । दूरभाष अर्थात फोन पर बात करने के आरंभ मे नमस्‍कार बोलेंगे । इससे कारण हमारे और सामनेवाले व्‍यक्‍ति के मन पर भी हिन्‍दू धर्म की महानता अंकित होगी और साथ ही हम सभी पर भगवान की भी कृपा होगी ।