ईश्वरीय अवधान में निरंतरता का आनंद

बालमित्रो, एक बार निर्धनता से ग्रस्त एक व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत दु:ख है, ऐसा प्रतीत हुआ । वह इस चिंता में था कि यह दु:ख दूर कैसे करें । उसने सुना कि संत कबीर नामक कोई बहुत महान संत हैं एवं उनके मार्गदर्शन से अनेक व्यक्तियों के दु:ख नष्ट हुए हैं । अपना दु:ख उन्हें बताने के लिए वह उनके पास गया । कबीर का घर एवं उनका रहन सहन अत्यंत साधारण था । यह देखकर वह व्यक्ति आश्चर्यचकित हुआ । उसने अपने समक्ष आए कबीरजी को वंदन कर नम्रता से कहा, ‘‘मैं अत्यंत दीन एवं दु:खी हूं । अत: इसपर कोई उपाय हो तो कृपा कर मुझे मार्गदर्शन करें ।”

बिना कुछ बोले कबीर उस व्यक्ति को अपने साथ लेकर गांव में घूमने निकले । उस व्यक्ति को यह समझ नहीं आ रहा था कि मैं यहां मार्गदर्शन लेने आया हूं परंतु कबीर मुझे घुमाने क्यों लेकर जा रहे हैं । घूमते-घूमते वे एक कुएंके निकट रुके । उस समय पानी के नल नहीं होते थे । लोगों को कुएं अथवा नदी से पानी लाना पडता था । मार्ग भी अच्छे नहीं होते थे । ऊबड खाबड, गड्ढोंवाले अथवा पथरीले होते थे । एक कुएंपर कुछ महिलाएं कपडे धो रही थीं, तो कुछ घर ले जाने के लिए छोटी-छोटी गगरियों में पानी भर रही थीं । पानी भरने के उपरांत उनमें से कुछ महिलाओं ने अपने सिरपर एक के ऊपर एक ऐसी पानी से भरी तीन गगरियां रखीं तथा आपस में बातें करते हुए जाने लगीं । कबीर ने उस व्यक्ति को वह दृश्य दिखाया एवं बोले, ‘‘सिरपर पानी से भरी तीन गगरियों के होते हुए भी कैसे बातें करती हुई जा रही हैं । उन्हें इस बात का भय नहीं है कि गगरियां नीचे गिरकर फूट जाएंगी । हम उन्हें इसका कारण पूछेंगे ।”

अपने सिरपर पानी से भरी गगरी ले जा रही कुछ महिलाओं के निकट जाकर कबीर ने पूछा, ‘‘बहनो, सिरपर गगरी रखकर तुम इस प्रकार हाथ छोडकर बातें करते हुए जा रही हो, तुम्हें सिर से गगरी के गिरकर फूटने का भय नहीं लगता ?” इसपर एक स्त्री ने हंसते हुए कहा कि गगरी कैसे फूटेगी ? हम बातें कर रही हैं परंतु हमारा संपूर्ण ध्यान उन गगरियोंपर होता है । ऐसा कहते हुए वे चली गर्इं ।

यह सुनकर कबीर को क्या कहना है, यह उस व्यक्ति को ध्यान में आ गया । बाह्यरूप से हम कोई भी काम कर रहे हों, परंतु अंतर्मन से निरंतर ईश्वर के अवधान में रहें । निरंतर ईश्वर का नाम लेने से हमारा प्रत्येक कृत्य ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो रहा है, ऐसा विचार होने से हमें शांति तथा समाधान मिलता है । उसे यह भी ज्ञात हुआ कि इतनी प्रतिकूल परिस्थिति में भी संत कबीर आनंद में कैसे रहते हैं । उस व्यक्ति का आनंदी मुख देखकर कबीर को भी समाधान हुआ ।

बच्चो, हम कोई भी काम रहे हो, तो भी अंतर्मन से निरंतर ईश्वर का चिंतन अर्थात नामस्मरण ही करते रहें । निरंतर नामस्मरण करने से अपना कृत्य ईश्वर की इच्छा के अनुसार होकर अपने को शांति एवं समाधान मिलता है ।