श्रीपाद श्रीवल्लभ

भगवान दत्तात्रेय के प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभ के विषय में अत्यल्प बातें ज्ञात हैं । इस पार्श्वभूमिपर गणेश चतुर्थी के अवसरपर श्रीपाद श्रीवल्लभ के अलौकिक कार्य तथा उनके इस जन्मक्षेत्र पीठापुरम के संदर्भ में संक्षिप्त ब्यौरा ।

चौदह विद्या एवं चौंसठ कलाओं के अधिपति श्रीगणेश एवं भगवान दत्तात्रेय के आद्य अवतार श्रीपाद श्रीवल्लभ इन दोनों का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन का ही है । उत्पत्ति, स्थिति एवं लय इन तीनों शक्तियों के सार्मथ्य के परे विशिष्ट चतुर्थ तत्व जिन्हें ज्ञात है ऐसे ‘‘परमात्मा” के नाम से इन दोनों का उल्लेख किया जाता है । गणपति अथर्वशीर्ष में सत्व, रज तथा तम इन तीन गुणों के परे स्थूल सूक्ष्म एवं आनंद इन तीन देहों के परे तथा भूत, वर्तमान एवं भविष्य इन तीन कालों के परे श्रीगणेश का वर्णन किया गया है । श्रीपाद श्रीवल्लभ श्रीगणेशस्वरूप होने से उनके लिए भी यही वर्णन उचित होगा । भगवान श्री दत्तात्रेय जगदोद्धार के लिए इ. स. १३२० में आंध्र प्रदेश के पूर्व गोदावरी जनपद में पीठापुरम क्षेत्र में अप्पल राज शर्मा एवं सुमति के पुण्य दाम्पत्य की कोख से श्रीपाद श्रीवल्लभ के नाम से प्रकट हुए । सरस्वती गंगाधर रचित ‘श्रीगुरुचरित्र’ नामक मराठी ग्रंथ में उनके विषय में बहुत अल्प जानकारी उपलब्ध है । दत्तभक्त तथा सामान्य लोगों को कारंजा क्षेत्र के श्री नृसिंह सरस्वती तथा अक्कलकोट क्षेत्र के स्वामी समर्थ दत्तगुरु के ये दो अवतार ज्ञात हैं । परंतु प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभ के विषय में बहुत अल्प ज्ञात है । इस पार्श्वभूमिपर संक्षेप में लिया गया यह ब्यौरा उद्बोधक तथा अनेक व्यक्तियों के ज्ञान में वृदि्ध करनेवाला होगा, ऐसी अपेक्षा है ।

अप्पल राजन तथा सुमति नामक दत्तभक्त दंपति को चार बच्चे थे । परंतु उनमें से दो बच्चों की मृत्यु हो गई थी । शेष दो बच्चों में से एक अंधा तथा एक अपंग था । दुर्भाग्य के इस दशावराता संसार में एक दिन भरी दोपहर में घर के समक्ष एक अतिथि आकर भीक्षा मांगने लगे । उस दिन उस दंपति के घर श्राद्ध था । सुमति घर में अकेली थी । ‘माते भिक्षा दो’ ऐसी आवाज सुनकर वह बाहर आई । वास्तविक श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोज से पूर्व भोजन नहीं परोसते थे पूर्वापार ऐसी रूढि थी । परंतु अतिथि भिक्षुक का तेज:पुंज रूप देखकर सुमति सबकुछ भूल गई तथा उसने भीक्षा दी । अतिथिने प्रसन्न होकर जो चाहिए उसे मांगने का आशीर्वाद दिया । अपने दोनों पुत्रों की अवस्था से दुखी सुमति ने ‘आपके जैसे तेजोमय पुत्र की मैं अपेक्षा करती हूं,’’ ऐसी विनती की । यति वेष में आए ‘‘श्री दत्तात्रेयने” माते मैं ही आपकी कोख से जन्म लूंगा’ ऐसा कहा । दिए हुए आश्वासन के अनुसार जन्म लिया बालक अर्थात दत्त अवतारी श्रीपाद श्रीवल्लभ था । पीठापुरम में १६ तथा कुरवपुर में १४ वर्ष इस प्रकार केवल ३० वर्ष की अवधि में अद्भूत लीलाचरित्र दिखाकर उन्होंने इह-पर लोक के सभी को शाश्वत सुख प्रदान किया । उनकी बाललीलाएं प्रत्यक्ष भगवान बालकृष्ण की लीला जैसी अत्यंत मधुर तथा अद्भूत हैं । आगे जप, तप, ध्यान, तपस्या इन सभी का फल स्वयं न लेकर सृषि्ट को देते हुए अपने भक्तों की आश्वी व्याप्ति से बाहर निकलने के लिए उन्होंने अपना तपोबल सहस्त्रगुना बढाया । अपने दिव्य अगम्य तथा मानव की दृष्टि से अनाकलनीय लीलाओंद्वारा जनता जनर्दान के उद्धार के लिए उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया । पानी के ऊपर चलना, अपंग व्यक्ति की अपंगता दूर करना, उपस्थित व्यक्तियों के लिए बनाया भोजन अल्प होकर भी वह सभी के लिए पर्याप्त होकर शेष रहना, लंबी यात्रा में भी दूध, दही, मक्खन खराब न होकर अच्छा रहना, अंधे व्यक्ति को दृष्टि प्राप्त होना, मृत जीव को जीवनदान देना ऐसे कितने ही प्रकार की चमत्कारी लीलाओं से उनका जीवन भरा हुआ दिखाई देता है । इन दिव्य लीलाओं में प्रमुखता से संत-सज्जनों का संरक्षण, कर्ममार्ग का आचरण, गर्वहरण, दृष्टाओं का निर्दालन, अस्पृश्यता निवारण, सत्कर्म का प्रचारण, भूदान तथा अन्नदान का महत्व, नामस्मरण की महिमा, भूत-पिशाच की बाधाओं का निर्मूलन आदि अनेक बातों का संदेश उन्होंने तत्कालीन समाज को दिया ।

छह सौ नब्बे वर्षपूर्व आंध्र प्रदेश के पीठापुरम में इस दिव्य बालक ने बाल आयु अर्थात सोलह वें वर्ष में सकल शास्त्र में विशेषत: वेदान्त में प्रवीणता प्राप्त की । उसके उपरांत समस्त मानवजाति के कल्याण के लिए भारत भ्रमण किया । गोकर्ण महाबळेश्वर बद्रीनाथ श्रीशैल्य, ऐसा घूमते हुए तथा ब्रह्माविद्या का प्रचार करते हुए वे कुरवपुर आए एवं वहां तपश्चर्या की । पीठापुरम के मंदिर में श्रीपाद श्रीवल्लभ की सुंदर मूर्तियों के पवित्र दर्शन से भक्तों के नेत्रों को तृप्त किया । वहां भक्त अभिषेक कर सकते हैं । मंदिर के प्रांगण में औदुंबर वृक्ष हैं जहां दत्त भगवान की पादुकाएं हैं । पीठापुरम के पवित्र तीर्थक्षेत्र में अत्यंत प्राचीन कुक्कुटेश्वर का पत्थर का मंदिर है । उसके सामने एक तालाब है ।

गांव के बाहर ऊंची पहाडीपर अन्नवरम में श्री सत्यनारायण मंदिर तथा अनधालक्ष्मी मंदिर दोनों ही प्रेक्षणीय हैं । श्रीपाद श्रीवल्लभ आशि्वन वद्य द्वादशी को देह समाप्ति के पश्चात कुरवपुर में कृष्णामाई के पाट में अदृश्य हो गए । पीठापुरम पूर्वकाल से ही सिद्ध क्षेत्र है ! गयासुर की देहपर देवताओं ने यज्ञ किया उस समय उसका मस्तक गया में था तथा पैर पीठापुर में थे । इसलिए इस क्षेत्र को पादगया भी कहते हैं । संपूर्ण भारत देश में काशी में बिंदू-माधव, प्रयाग में वेणी-माधव, रामेश्वर में सेतु- माधव, ति्रवेंद्रम में सुंदर-माधव तथा पठापुरम में कुंती -माधव ऐसे माधव के पांच मंदिर हैं । पांडव माता कुंती ने यहां माधव की पूजा की । वही यह स्थान है । इस स्थान को दक्षिण काशी भी कहते हैं ।

पीठापुरम कैसे जाएंगे ?

श्रीपाद श्रीवल्लभ के जन्मस्थान के रूप में पीठापुरम क्षेत्र का महत्व अनन्य साधारण है । यह स्थान आंध्र में है । मुंबई-पुणे से जानेवालों के लिए कोणार्क एक्स्सप्रेस, यह गाडी अधिक सुविधाजनक है । सामलकोट स्टेशनपर उतरें । वहां से रिक्शा से आधे घंटे में पीठापुरम जा सकते हैं । दूसरा मार्ग है-प्रथम हैदराबाद जाएं । वहां से गोदावरी एक्स्प्रेस से पीठापुरम जा सकते हैं । इंदौर, भोपाल तथा नागपुर से जानेवाला मार्ग अर्थात मद्रास की ओर जानेवाली गाडी से प्रथम विजयवाडा उतरें । वहां से वॉल्टेयर की ओर जानेवाली गाडी से सामलकोट तथा पीठापुरम इन दोनों स्थानोंपर जा सकते हैं ।